जीवन का भार ...अपने अपने हिस्से का ...सभी वहन करते हैं ...!!संवेदनशील मन संवेदना से जुड़ा ही रहता है .....कभी लगता है ......जीवन में दुखों का अंत ही नहीं .........!!फिर भी मन के अन्दर एक ज्वलंत जिजीविषा ऐसी हो ,जो बुझने नहीं देती हो मन को तो .......?तो ......बहती है सरिता... मन की सरिता ....''अनुभूति ''लिए ....
पता नहीं ये भी क्या प्रारब्ध रहा ...दोनों माताओं को ...माँ को ,सासू माँ को ..अपने हाथों नहला धुला कर तैयार कर ....अंतिम यात्रा के लिए भेजा ....अपनी माँ को उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक हम बहनों ने कन्धा भी दिया ...मेरे श्वसुर हिंदी के प्रकांड विद्वान थे ....बहुत दुलार मिला उनका भी ...उन्हीं के आशीर्वाद से शायद, हिंदी मेरी इतनी प्रिय हो गयी है ...उन्होंने हिंदी की कई पुस्तकें लिखीं ....आज उन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ....इतना भावविभोर है मेरा मन ...! पूरे परिवार में हर्ष की लहर है ...''पुत्रवधू पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ा रही है ''...!!....मेरे लिए मेरा कविता संग्रह ''अनुभूति ''बहुत बड़ी बात है !!किसी भी पुरस्कार से बड़ी .....
अनुभूति लिए आज जीवन के एक पड़ाव पर खड़ी हूँ मैं ...!!
मेरी अनुभूति के प्रेरक .......जो मेरी प्राणवायु हैं ....मेरे पिता (ऊपर फोटो में ,नीली टाई में )जो मेरे साथ रहते हैं ....हर पल जिनका आशीर्वाद मुझे मिलता ही रहता है ... शायद इसलिए कायम है कुछ बचपना अभी भी मुझमे ......!!मेरे पति ...कर्मठ,शांत ...धीर गंभीर ,बुद्धिजीवी ,मेरी हर कविता में साझेदारी है उनकी ...मेरी हर कविता के प्रथम श्रोता ,... मुस्कुराते मूक प्रशंसक ...प्रथम आलोचक भी ....!!....बिन मांगे ही जिन्होंने सब कुछ दिया ...समय से हर भाव मेरा पल्लवित किया ...!!मेरे दोनों पुत्र .....अभिषेक और अधीश ....जिनकी माँ-माँ सुनने पर आज भी मैं सारी दुनिया भूल जाती हूँ ......!!भरा-पूरा बहुत बड़ा परिवार ....किसी की दीदी ...किसी की मौसी,बुआ ...भाभी,मामी,चाची ताई जी .....रिश्तों में कोई कमी नहीं .....और फिर कुछ ऐसे दोस्त ..मेरे पिता के पीछे बैठी ,मेरी उपस्थित प्रिय सखियाँ ....बहुत हैं जो उपस्थित नहीं भी हो सके ......जो शायद मुझे मुझसे ज्यादा जानते हैं ...कैसे समेटूं अपने भाव .....इतना बिखराव ....बहुत कुछ याद करने का ...लिखने का मन है ....शायद एक ग्रन्थ ही भर जाये
........ह्रदय से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ श्री डी.पी.त्रिपाठी जी ,(विचार न्यास के अध्यक्ष और ''थिंक इण्डिया '' मैगज़ीन के एडिटर इन चीफ तथा N.C.P के चीफ स्पोक्सपर्सन )का ,अपनी इतनी व्यस्तता के बावजूद मुझे आशीर्वाद देने वहां पधारे ...!!श्रीमती एवं श्री राकेश त्रिपाठी जी का ,श्री निहाल अहमद जी का .......देवेश त्रिपाठी जी का ....जिन्होंने अपने स्नेह से अनुभूति को अभिभूत किया ....!!
''एक सांस मेरी ''इसका विमोचन भी उतना ही महत्व पूर्ण है .....!!रश्मि दी के साथ साथ यशवंत जी का भी आभार इसके संपादन में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए ...!!इसमें गुंजन अग्रवाल ,एम्.वर्मा जी,प्रियंका राठौर,डॉक्टर राजेंद्र तेला निरंतर,अंजना दयाल,नीलिमा शर्मा और दुलीचंद कश्यप जी की कविताओं के साथ मेरी भी कविताओं का संग्रह है ...!!
मैं रश्मि दी और अरुण जी को तहे दिल से आभार देना चाहती हूँ ......उन्हीं के सहयोग और सौहाद्र से ही यहाँ तक की यात्रा संभव हो सकी ....!!...!!सलिल जी आपका आभार ''अनुभूति '' को अपने शब्दों में वहां उपस्थित लोगों तक पहुँचाने के लिए...!!मेरे स्वरों की अनुभूति इस अनुभूति में छुपी ही है ..!आपका आभार आपने मुझे गीता पाठ करने का अवसर दिया .... उन छुपे हुए स्वरों को मुखरित होने का अवसर दिया ....!!सभी ब्लोगेर मित्रों का आभार जिनसे पहली बार वहां मुलाकात हुई पर ऐसा लगा ही नहीं जैसे पहली बार मिले .....हरकीरत हीर जी ,वंदना गुप्ता जी,अनु (अंजू ) चौधरी जी ,गुंजन,सुनीता शानू जी ,शिवम् मिश्र जी ,मुकेश सिन्हा जी ,अभिषेक,आनंद द्विवेदी जी ,महफूज़ जी ,एम् .वर्मा जी ,अविनाश वाचस्पति जी ,और भी बहुत सारे ब्लोगेर मित्र जो वहां उपस्थित थे ।सभी से मुलाकात हुई ।मिलकर बहुत अच्छा लगा ..!
इमरोज़ जी से भी मिलाकत हुई |कुछ लोग इस धरा के लगते ही नहीं हैं ...!!ऐसी ही शख्सियत है उनकी ...!!निश्छल ...कोमल ...प्रेम ही प्रेम ....
आनंद भाई आभार ...इस तस्वीर के लिए ...!!
पांच मार्च ...आज मेरी माँ की पुण्य तिथि है । मेरी रचना मेरी दोनों माताओं ...मेरी माँ और सासू माँ दोनों को समर्पित हैं ...क्योंकि दोनों ही बहुत हंसमुख थीं ....!!और दोनों ने रिश्तों को भरपूर जिया ...!!बहुत मृदुभाषी थीं .....कड़वा बोलना जानती ही नहीं थीं ...मुझे याद है ...कैसे हंसकर बहुत सारी कड़वी बातें जैसे पी जाया करती थीं ..शायद उन्हें कुछ बुरा लगता ही नहीं था ......मैं ताज्जुब करती थी सदा उनकी सहनशीलता पर ....उन्हीं दोनों की याद में समर्पित है आज की रचना ....कई बार उनकी याद करते हुए मैं सोचती हूँ ...
हंसकर जीवन कैसे जिया ....?
शब्द शब्द में ....
भाव का जब प्रादुर्भाव हुआ .......
तब शब्दों को नहीं ...
भावों को ही लिया ...
संस्कारों में ...जीवन में ...
अभिव्यक्ति में ....
भावों को ही जिया ...
चुनाव था ,है ,रहेगा सर्वथा यही एक मेरा ...
इस जीवन पथ पर ...
शब्द शब्द ...भाव ही बने ....
शब्द शूल नहीं ...फूल ही बने ...!!
जब शूल नहीं ...
फूल का चुनाव किया ..
जैसे भी हो ...
मन को क्रोध से , विषय से ...
विषाद से विमुख किया ...!!
कहे गए शब्दों से भी ...
खोज-खोज...ढूंढ-ढूंढ .. ,
सुंदर सुसंस्कृत भावों को ही लिया ...
उन्हीं को जिया ...
प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
जब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया ...!!!!!
इस को पढ़ते ही .... .... दोनों माताओं के आशीष का स्पर्श अनुभव कर सकती हूँ ......!!बहुत पहले की लिखी रचना है ये ....जब भी मन उदास होता है इसे पढ़ लेती हूँ .......अपने आप उदासी दूर हो जाती है ...!!
लिखने वाला कुछ भी लिखे ....पढने वाला ही कृति को जीवित करता है ...!!...तो मेरे लिए आप सब के भाव ,आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है ...!!...!!अब तक के .....इस छोटे से लेखन जीवन में त्रुटियाँ अवश्य की होंगी ....जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ....!!आभार पुनः आप सभी का ....
अनुभूति के इस पड़ाव से अत्यंत संतुष्ट ...अगले पड़ाव के लिए ...यात्रा जारी है .............................