न दुख है ,
न सुख है .....
परा (प्रकृति)रूपी सत्य और
अपरा (जगत) रूपी असत्य के बीच की
अपरा (जगत) रूपी असत्य के बीच की
एक रेखा ,
स्वयं का ही तो परिपेक्ष है ,
एक सत्य तुम्हारा
वो झूठ मेरा ,
एक सत्य मेरा वो झूठ तुम्हारा
इस तरह सच कहूँ तो
इस तरह सच कहूँ तो
आज तक समझ नहीं पाई
सत्य जीवन का ....!!
न कुछ तेरा न कुछ मेरा ,
न कुछ तेरा न कुछ मेरा ,
झूठ का पसारा ....!!
उस झूठ से ...
सत्य की तलाश ......
मुझ में ही जागृत मेरा प्रकाश,
तब होता अंधकार का विनाश ...!!
कड़ी धूप में ,
मुझमें विस्तार पाता
तुम्हारा छाया रूपी
अस्तित्व,
धूप सी मैं मिटती जाती हूँ ...
और इस तरह मिटकर ही ...
तुमको पाकर
मिलता है मुझे मेरा
अमर्त्य शाश्वत अस्तित्व,
फिर ....
क्या है मेरा ...??
क्या तुम्हारा ……??
बताओ तो ....
....तुमको पाकर भी है वो तलाश ........!!
तुम्हारे साथ चलते हुए ,
स्वयं के भीतर ही ,
वो तलाश .......
वो तलाश तो अब भी जारी है ....
और शायद वही सृजन ,
नवीनता लाता ,
नाद से अनहद तक......... ,
सत्य की तलाश ......
मुझ में ही जागृत मेरा प्रकाश,
तब होता अंधकार का विनाश ...!!
कड़ी धूप में ,
मुझमें विस्तार पाता
अस्तित्व,
धूप सी मैं मिटती जाती हूँ ...
और इस तरह मिटकर ही ...
तुमको पाकर
मिलता है मुझे मेरा
अमर्त्य शाश्वत अस्तित्व,
फिर ....
क्या है मेरा ...??
क्या तुम्हारा ……??
बताओ तो ....
....तुमको पाकर भी है वो तलाश ........!!
तुम्हारे साथ चलते हुए ,
स्वयं के भीतर ही ,
वो तलाश .......
वो तलाश तो अब भी जारी है ....
और शायद वही सृजन ,
नवीनता लाता ,
नाद से अनहद तक......... ,
वो सृजन तो अब भी जारी है ..!!
हाँ ...
वो सृजन तो अब भी तारी है ,
वही सृजन अब भी जारी है। ....!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
हाँ ...
वो सृजन तो अब भी तारी है ,
वही सृजन अब भी जारी है। ....!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "