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16 January, 2025

शैवालिनी...!!!



उद्भव से अग्रसर होते हुए 

शैवालिनी के प्रवाह का और

बहते हुए मन के भावों का 


अद्भुत तालमेल है...

दोनों में तिरते हुए

समन्वित अनुरक्त प्रकृति का

चेतनामय खेल है...

शब्द की चेतना में उर्जित

भाव बहते हैं प्रबल

ऊर्जा से आसक्त होते 

लहराते हैं प्रतिपल...

वायु का संवेग निर्धारित करता है दिशा दिशा 

बढ़ती जाती तरंगिणी

झूमती लहराती 

निखरती जाती

सागर से मिलने की

उसकी ह्रदयाशा !!!


अनुपमा त्रिपाठी

   'सुकृति '


11 comments:

  1. कल-कल करती तरंगिणी की भाँति
    भाव नदी भी बहती जाती,
    एक समाती सागर में एक अनंत में खो जाती
    सुंदर रचना !

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  2. शब्द की चेतना में उर्जित
    भाव बहते हैं प्रबल
    ऊर्जा से आसक्त होते
    लहराते हैं प्रतिपल...
    गहन चिंतन ....
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 18 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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    Replies
    1. जी ज़रूर सादर धन्यवाद मेरी कविता चयनित करने हेतु!!🙏

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 18 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. बहुत सुन्दर

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