कृष्णा की बांसुरी भई
गलियन गलियन
कूल कूल कूजित ,
संग संग
कोकिल के नव गान से ,
भ्रमर की नव राग से ,
ज्योतिर्मय आभा की हुलास से
मयूर के उल्लास से
राधिका के अनुराग से
सृष्टि पूरित !!
चेतना अपरिमित !!!अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
''ज़िंदगी एक अर्थहीन यात्रा नहीं है ,बल्कि वो अपनी अस्मिता और अस्तित्व को निरंतर महसूस करते रहने का संकल्प है !एक अपराजेय जिजीविषा है !!''
कृष्णा की बांसुरी भई
गलियन गलियन
कूल कूल कूजित ,
संग संग
कोकिल के नव गान से ,
भ्रमर की नव राग से ,
ज्योतिर्मय आभा की हुलास से
मयूर के उल्लास से
राधिका के अनुराग से
सृष्टि पूरित !!
चेतना अपरिमित !!!अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
अंखियन कजरा बोल रहा है
सजनी का जिया डोल रहा है
हिरदय की पीड़ा कहती है
नैनं से नदिया बहती है
दामिनी दमक दमक डरपाए
कोयलिया की हूक सताए
झड़ झड़ लड़ी सावन की लागि
आस दिए की जलती जाये
बैरी सावन बीतत जाये
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
वक़्त के साथ सिमटती रही यादें।
किसी अमुआ की फुनगी पर
बुलबुल की तरह ,
किसी नीम की टहनी पर
चुलबुल की तरह ,
चम्पई सुरमई गीतों में
महकती रही यादें
मेरे साथ साथ यूँ ही
चलती रही यादें !!
कभी बादलों के गाँव में
चंदा की तरह ,
कभी आसमान की छाँव में
सूरज की तरह ,
कभी धरती पर चमेली सी
उड़ती ,ठहरती महकती रही यादें
मेरे साथ साथ यूँ ही
मचलती रही यादें !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
पसरे हुए सन्नाटे के बीच
मुझसे बोलता हुआ अनहद
कुछ मुझको दे गया
जड़ से चेतना ,
संवाद से संवेदना ,
का मार्ग प्रशस्त कर ,
लहरों से बोलता हुआ समुद्र
यूँ ही
मुझ तक आ गया !!
इक फलसफा है ज़िन्दगी तेरा इस तरह
गुज़रते जाना
वक़्त है कि चलता है ,रुकता नहीं किसी के लिए ,
दो घड़ी चैन देता है अपनों का यूँज़िन्दगी एक है एक ही रहेगी लेकिन,
तुझ को छू कर मेरी खाइशों का यूँ बिखरते जाना,
रात का रंग सुरमें की तरह सांवरा है ,
भर के आँखों में ख़्वाबों का यूँ संवरते जाना
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "