धूप भी खिली हुई
घूप में खिला हुआ
रँग है बहार का
रँग वो ख़ुमार का
रँग वो ख़ुमार का
अभिराम वो दुलार का,
अभिरुप वो श्रृंगार का
मांग की लाली में जैसे
प्रियतम के प्यार का
रँग वो ख़ुमार का
उड़ेलता हुआ कभी
बिखेरता हुआ कभी
लहर लहर समुद्र पर
किरणों के प्यार का
रँग वो ख़ुमार का
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति ''
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी !!
Deleteबेहद खूबसूरत है ये खुमारी । सुन्दर भाव सृजन ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर भावों का अनूठा सृजन।
ReplyDeleteरंग रँगी वह प्रकृति मनोहर,
ReplyDeleteचढ़ आयी वह सबके ऊपर।
सुन्दर पंक्तियाँ।