नैना रो रो नीर बहाये
बैरी सावन बीतत जाये
अंखियन कजरा बोल रहा है
सजनी का जिया डोल रहा है
हिरदय की पीड़ा कहती है
नैनं से नदिया बहती है
दामिनी दमक दमक डरपाए
कोयलिया की हूक सताए
झड़ झड़ लड़ी सावन की लागि
आस दिए की जलती जाये
बैरी सावन बीतत जाये
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (20-08-2021) को "जड़ें मिट्टी में लगती हैं" (चर्चा अंक- 4162) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी 🙏🙏❤
Deleteसावन को बिम्ब बनाकर बहुत भावपूर्ण विरह-गीत रचा है अनुपमा जी आपने।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर गीत
ReplyDeleteसब जल झर झर बरसत जाय,
ReplyDeleteबैरी सावन बीतत जाय।
सुन्दर पंक्तियाँ।
सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर गेय रचना।गुनगुनाने का मन कर गया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteमुग्धता बिखेरती हुई एक सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसावन की फ़ुहार-सा।
सादर
अहा! अति सुन्दर ।
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