जब ...
भरी दुपहरी ...
दमके सूरज ...
जलता जल ...
जले जिया ...!!
आकुल मन ...
सूना सा नभ ...
शुष्क हिया ...!!
तब ...
जीवन ठगिनी ...
माया जानी .....
कौन दिशा से ..
आई है री ...
पवन दिवानी ....!!
रही हरि से अंजानी ...!!
थोड़ी ठंडक ...
अब
समझे कौन है...........
आस मेरी वो प्यास मेरी ...
पीर मेरी ...हृद चीर मेरी ...
व्यथा मेरी ,अकथ कथा मेरी ...
जब
तू ही अंजानी ...!!
सुन्दर सृजन.
ReplyDeleteसुन्दर अहसास , सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postअनुभूति : विविधा
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बहुत सुंदर भाव .... भीषण गर्मी के एहसास के साथ थोड़ी ठंडक सी पहुँचाती रचना
ReplyDeleteजब
ReplyDeleteतू ही अंजानी ...!!
भावमय करते शब्द ....
बहुत सुन्दर.......
ReplyDeleteप्यारे से भाव.
सादर
अनु
समझे कौन है...........
ReplyDeleteआस मेरी वो प्यास मेरी ...
पीर मेरी ...हृद चीर मेरी ...
व्यथा मेरी ,अकथ कथा मेरी ...khud ko hi samjhna hoga .......excellent .....
बहुत सुंदर बेहतरीन अभिव्यक्ति ,,,
ReplyDeleteRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
आभार शशि जी ...ह्रदय से ....
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (22-05-2013) के कितनी कटुता लिखे .......हर तरफ बबाल ही बबाल --- बुधवारीय चर्चा -1252 पर भी होगी!
सादर...!
अब
ReplyDeleteसमझे कौन
जब
तू ही अंजानी ...!!
बहुत सुन्दर भाव...
बहुत ही गहन अर्थ लिये हुये, मौसम की तपिश ने रचना को महसूस भी करवा दिया, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामारम.
आपकी शब्द रचना स्पष्ट शब्द थाप छोड़ती है।
ReplyDeletebehatareen ....
ReplyDeleteशुभप्रभात
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
हार्दिक शुभकामनायें
अहा! अति सुन्दर..उस अंजानी ने ही तो हमें कम्पित होना सिखाया है और चलते रहना भी .
ReplyDeleteदीदी, ये आपकी विछरों की गहन दृष्टि ही तो है जो इतनी सुंदरता और सहजता से एक "अंजानी" से भी प्रेम का रिश्ता कायम कर लेता है...बहुत खूब
ReplyDeleteअच्छी रचना ..सादर बधाई के साथ
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...बधाई
ReplyDeleteBahut Badhiya.....bilkul dhara prawah.....is chilchilati dhoop me malayanal ki si sheetal prawah wali kavita Anupama ji.....
ReplyDeletebahut sukhad laga abhi is kavita ko padhna...too beautiful!!
ReplyDeleteआस मेरी वो प्यास मेरी ...
ReplyDeleteपीर मेरी ...हृद चीर मेरी ...
व्यथा मेरी ,अकथ कथा मेरी ...
itte chhote aur khusbsurat se shabd kahan se laate ho aap :)
sach me dhandi byar la gayee ye rachna...
प्यारे से भाव,प्यारे से शब्द......
ReplyDeletepyar bari sikayat liya atti pyari kavita...
ReplyDeletepyar bhari sakayat liya atti pyari kavita.............
ReplyDeletebahut khoob ...sunder abhivyakti
ReplyDeleteअब
ReplyDeleteसमझे कौन है...........
आस मेरी वो प्यास मेरी ...
पीर मेरी ...हृद चीर मेरी ...
व्यथा मेरी ,अकथ कथा मेरी ...
जब
तू ही अंजानी ...!!
Kitna sahee kaha aapne....!
खूबसूरत पहेली ....:))
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना...बधाई
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत आभार ...!!
ReplyDeleteअब समझे कौन जब ... खुद की ही आवाज़ सुन पाना कठिन है .. अंतस ने समझ ली बातें तो मानो सारा मन हल्का हो गया!
ReplyDeleteमनोभावों का सुन्दर चित्रांकन।
सादर
मधुरेश
mohak prstuti anupama ji
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