जो लिख पाना आता तो लिख पाती ,
दो आँखों में गर्व की भाषा जो कह जाती ,
हौले से जो सांझ ढली तो ये जाना ,
सूरज का छिपना होता है
शीतलता का आना ,
ढलकते आंसू में
जो अनमोल व्यथा
सो कौन कहे ?
क्योंकर कोई समझ सका
जब मौन गहे ,
कोई तो कहता है तेरी आस रहे ,
पथ के पथ पर शीर्ष दिगन्तर बना रहे ,
चलते रहने का सुख सबसे बढ़कर है ,
लिख पाऊं कुछ ऐसा जग में मान रहे !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति ''