ताना बाना है जीवन का
भुवन की कलाकृति
आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं
अनंत स्मिति.....!!
घड़ी की टिक टिक चलती
शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात
झीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः
शीतल अनिल संग संदेसवाहक आए हैं
सँदेसा लाये हैं
उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं
......ले आए हैं मधुमालती की सुरभि से भरे
कुछ कोमल शब्द मुझ तक
...अनिंद्य आनंद दिगंतर
तरंगित भाव शिराएँ हैं ....!!
गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
सुरभित अंतर
कल्पना दिगंतर
भाव झरते निरंतर
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
बिलकुल ... कुछ और नहीं बस ऐसी ही रचनाओं का सृजन कीजिये .... स्वप्न बुनेंगे तो काव्य यूं ही बहेगा ..... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteमाहौल ऐसा हो तो स्वप्न भी स्वर्णिम सा आये..मन आह्लादित कर जाए. अति सुन्दर.
ReplyDeleteस्वप्न बुनिए और उनको पंख लगने दीजिये , अम्बर में ऊँची उडान विचारों को नई ऊंचाई देंगी . बहुत सुन्दर दी .
ReplyDeleteसुवासित हो रहा है ये स्वप्न भी.. अति सुन्दर..
ReplyDeleteहर दिन बुनता स्वप्न नया मैं,
ReplyDeleteबना क्षितिज की चादर सा मैं।
बहुत ही सुंदर ..... आपके शब्द सम्मोहित करते हैं ....
ReplyDeleteशब्दों का सम्मोहन हैं भावों की सुर सरिता है ,बहुत खूब
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने..
ReplyDeleteवाह सुंदर
ReplyDeleteस्वप्न बुनते रहिये .... सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
सुन्दर भावपूर्ण रचना !!
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
Prakriti ke sur pratidhwanit ho rahe hain.. Ek painting si kavita..
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ...हृदय से ....!!
गुनगुनाती ध्प्पो ओर प्रेम का एहसास ... स्वप्न स्वत: ही आ जाते हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : कोई बात कहो तुम
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुंदर सम्मोहित करते शब्द ....
ReplyDeleteताना बाना है जीवन का ......
ReplyDeleteभुवन की कलाकृति ....
आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं .....
अनंत स्मिति.....
घड़ी की टिक टिक चलती ......
समय जैसे चलता चलता भी ...रुका हुआ ....
शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात ... .....
झीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः ........
शीतल अनिल संग संदेसवाहक आए हैं ....
सँदेसा लाये हैं ....
उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं .....
......ले आए हैं मधुमालती की सुरभि से भरे ...
कुछ कोमल शब्द मुझ तक ....
...अनिंद्य आनंद दिगंतर ....
तरंगित भाव शिराएँ हैं ....!!
गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
सुरभित अंतर ...
कल्पना दिगंतर ....
भाव झरते निरंतर ....
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
रूपकत्व लिए बेहतरीन रचना।
गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
ReplyDeleteसुरभित अंतर ...
कल्पना दिगंतर ....
भाव झरते निरंतर ....
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
ReplyDeleteसुरभित अंतर ...
कल्पना दिगंतर ....
भाव झरते निरंतर ....
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
ReplyDeleteसुरभित अंतर ...
कल्पना दिगंतर ....
भाव झरते निरंतर ....
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
...वाह! कोमल अहसासों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ...
शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात ... .....
ReplyDeleteझीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः ........
शीतल अनिल संग संदेसवाहक आए हैं ....
सँदेसा लाये हैं ....
उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं .....
वाह, प्रकृति ऋतु और मनोभावों का अदभुत संमिश्रण।
स्वप्न में ही जीवन के आशय हैं,बुनना ही होगा
ReplyDeleteखूब स्वप्न बुनिये....तारों जड़े स्वप्न बुनिए....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
अनु
स्वप्न जीने की प्रेरणा हैं स्वप्न तो बुन ' ने ही होगे .उम्दा रचना
ReplyDeleteवाह- बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteगुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
ReplyDeleteसुरभित अंतर ...
कल्पना दिगंतर ....
भाव झरते निरंतर ....
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??
...वाह सम्मोहित करते भाव.....!!!!
अपने विचार देने हेतु आप सभी का हृदय से आभार ....!!!
ReplyDeleteबुना जाता रहे स्वप्न... बना रहे माहौल!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति, हमेशा की तरह!
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteताना बाना है जीवन का
ReplyDeleteभुवन की कलाकृति
आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं
अनंत स्मिति.....!!
अतिसुन्दर।