ज्यों टूटकर ...
गिरती पीली पात .....
बीतते लम्हें ...
रैन न बीते ....
ये क्षण रहे रीते ....
आस न जाए ...
कुछ तो कहो ....
ऐसे चुप न रहो ....
नदी से बहो .....
संवाद से ही ....
मुखरित होती है ...
संवेदनाएं ....
ठिठक गई ....
मूक सी हुई जब ...
संवेदनाएं ....
संवेदना ही ..
ज्योति है जलाये ...
जीवन खिले ....
मानवता ही ...
परम दया धर्म .....
एक मुस्कान ...
तरंग जैसी .....
छू जाती हैं मन को .....
संवेदनाएं ....
सृजन खिला ... ..
संवेदनशील हो .....
तरंग बना ...
गिरती पीली पात .....
रैन न बीते ....
आस न जाए ...
कुछ तो कहो ....
ऐसे चुप न रहो ....
नदी से बहो .....
संवाद से ही ....
मुखरित होती है ...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhA5NycC2RJmEPpywBH7qBGgOC5-ANj1kucPxayWA6gLDtOfpuZ4aR-C0li3x7Anq1XESlQxpDRAjaLtdDF5uOBRVAOY9VJfEYa7z0xJu68Wox3KM5ClzndLp_fhhsj2tV45ZSp-OGK4eRx/s320/250121_606788029349082_1920077813_n.jpg)
ठिठक गई ....
मूक सी हुई जब ...
संवेदनाएं ....
संवेदना ही ..
ज्योति है जलाये ...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEih0VyMDp1LnUgdqc-Luuw29k3yR6u4ybtVP5NSmdp1-9rykN_Pdvtmu3ej_aMBj8c2uUJeqqbbv1e6e0F8r8AHyJw3Djulp9H9K2Ulzjox3Cy8lAwVW2wd2fmeXMvpVAkWRCxrNE3scJ1C/s320/images+(57).jpg)
मानवता ही ...
परम दया धर्म .....
एक मुस्कान ...
तरंग जैसी .....
छू जाती हैं मन को .....
संवेदनाएं ....
सृजन खिला ... ..
संवेदनशील हो .....
तरंग बना ...
आदरणीया अनुपमा जी, संवेदनाओं से भरी संवेदनशील बेहतरीन रचना के लिए अनेकों बधाई !
ReplyDeleteज्यों टूटकर ...
ReplyDeleteगिरती पीली पात .....
बीतते लम्हें ...
बहुत खूब .
रैन न बीते ....
ReplyDeleteये क्षण रहे रीते ....
आस न जाए ...... बहुत खुबसूरत हायकू
संवाद से ही ....
ReplyDeleteमुखरित होती है ...
संवेदनाएं ....
बेहद सुंदर हाइकू !
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
हृदय से आभार शास्त्री जी .....!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर हाइकु....
ReplyDelete:-)
हर हायकु जानदार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteसंवेदना और संवेदनशीलता के विभीन आयाम , अच्छे लगे .
ReplyDeleteअति सुन्दर कृति.
ReplyDeleteवाह, बेहतरीन हाइकु हैं...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबधाई !
आपकी यह रचना आज बुधवार (16-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 147 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteएक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
हृदय से आभार आपका ....!!
Deleteबहुत सुंदर हायकू .
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-17/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -26 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
हृदय से आभार आपका ....!!
Deleteबहुत सुन्दर हाइकू |
ReplyDeletelatest post महिषासुर बध (भाग २ )
उम्दा हाइकू ..
ReplyDeleteज्यों टूटकर ...
गिरती पीली पात .....
बीतते लम्हें ...
सुन्दर हाइकू....
ReplyDeletebeautiful
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सशक्त भाव अभिव्यक्ति अर्थगर्भित।
संवाद से ही ....
मुखरित होती है ...
संवेदनाएं ...
.संवाद करते से हैं सब के सब हाइकु।
कम शब्दों में गहरी बात।
ReplyDeleteकम शब्दों में गहरी बात।
ReplyDeleteमुखरित भाव तरंग..
ReplyDeleteतरंग जैसी .....
ReplyDeleteछू जाती हैं मन को .....
संवेदनाएं ....
अनुपमजी, गागर में सागर जैसी हैं आपकी यह सूक्ष्म भाव लहरियां..आभार!
वाह , बहुत खूबसूरत हाइकु ...
ReplyDeleteसंवेदनहीन
हो गया है हृदय
खाली खाली सा ।
संवाद नहीं
दरकता है मन
मौन ही मौन ...
हाइकु पढ़ कर कुछ यूं ही खयाल उपजे :)
आभार दी बहुत सुंदर लिखा ....बहुत ही सुंदर ॥
Deleteसारे हाईकू एक से बढ़ कर एक ! बहुत सुंदर अनुपमा जी !
ReplyDeleteकुछ तो कहो ....
ReplyDeleteऐसे चुप न रहो ....
नदी से बहो .....
मन का कोना कोना रिक्त करो
वाह
सुन्दर प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
लोकनायक जयप्रकाश नारायण
हाइकु आप सभी ने पसंद किए ....हृदय से आभार ...!!
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