एक घना आम का वृक्ष है ,उसी की शीतल छाया में जैसे झूला झूल रही हूँ ....तेज ...और तेज पींगें लेती हुई ...!!ऊपर नीला आसमान ....और मेरी पींग और तेज ...!!
विचार कुछ हलके से ...उड़ गए मुझसे आगे ...मैं विचारों के पीछे पीछे उड़ रही हूँ ....सुखद सी अनुभूति होती है ....!!कुछ तो है ...ध्येय जिसके पीछे भाग रही हूँ ...!!
ईश्वर का ध्यान सबसे पहले आता है ...!!
आभार प्रभु ...हमें मिला है ऐसा जीवन ,हम जो चाहें कर तो सकते हैं ...
नारी हूँ मैं किन्तु अबला नहीं ....!!
यही दृढ़ सोच मन कि उड़ान को और सुन्दर बना देती है ...!!
''नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में ,
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में ...!"
जयशंकर प्रसाद जी की ''कामायनी'' की ये पंक्तियाँ कितनी सुन्दर हैं |नारी का मूल्यांकन इससे खूबसूरत शायद ही हो सकता हो ..!!
किन्तु इससे अलग भी विकास की नींव में महिला की अहम भूमिका रही है |और हर उपलब्धि के पीछे महिला का योगदान ज़रूर रहा है ..!अतीत और वर्तमान की तस्वीर देखें तो बदलाव की एक बयार साफ़ नज़र आती है |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPUZAi58ilC1HDPGFmgFc1ks0azMQ3J3fkQd6IdvLwzkCuKrFApvEcIWcEC5DM1FWRQKN7hyphenhyphenWmj0RMKqLyuETvNQRE78oa3pqwpAYzsTiafgRITMreq7F47oAOMDE6n_UiSxpgIdeBiUrg/s400/69264_535809576458625_225483428_n.jpg) |
painting by Shubnam Gill. |
किन्तु बदलाव का यह सफर लंबे संघर्षों और चुनौतियों से भरा रहा है |तथा ये सफर आज भी जारी है |कन्या भ्रूण हत्या ,बलात्कार,दहेज और न जाने कितनी ही और कुंठाएं ...!!
''यह आज समझ तो पाई हूँ ,मैं दुर्बलता मैं नारी हूँ
अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ ''
इस प्रकार सोच लेकर विचलित हो बैठ जाना है या .....अस्फुट रेखा की सीमा में आकार अपनी कला को ,अपनी अभिव्यक्ति को देना है ,अपने स्वत्व को स्थापित करना है .....???
मैं तो यही कहूंगी .....
''असतो माँ सद्गमय
तमसो माँ ज्योतिर्गमय ...''
तम निरंतर छंटता जाता है ...!!उज्जवल प्रकाश है .....!!मैं हूँ ....मेरा अस्तित्व है ...!!मेरी अभिव्यक्ति है ....प्रखर .....मुखर ......
जैसे ...?????
जैसे जीवन है परछाईं रे ....
अहा ,पुरवा(पूर्वा ) सुहानी आई रे ....
झूले की पींग और तेज .....और तेज ....
आईये ...
फिर यात्रा जारी रखें उज्जवल प्रकाश की ओर......