एक घना आम का वृक्ष है ,उसी की शीतल छाया में जैसे झूला झूल रही हूँ ....तेज ...और तेज पींगें लेती हुई ...!!ऊपर नीला आसमान ....और मेरी पींग और तेज ...!!
विचार कुछ हलके से ...उड़ गए मुझसे आगे ...मैं विचारों के पीछे पीछे उड़ रही हूँ ....सुखद सी अनुभूति होती है ....!!कुछ तो है ...ध्येय जिसके पीछे भाग रही हूँ ...!!
ईश्वर का ध्यान सबसे पहले आता है ...!!
आभार प्रभु ...हमें मिला है ऐसा जीवन ,हम जो चाहें कर तो सकते हैं ...
नारी हूँ मैं किन्तु अबला नहीं ....!!
यही दृढ़ सोच मन कि उड़ान को और सुन्दर बना देती है ...!!
''नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में ,
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में ...!"
जयशंकर प्रसाद जी की ''कामायनी'' की ये पंक्तियाँ कितनी सुन्दर हैं |नारी का मूल्यांकन इससे खूबसूरत शायद ही हो सकता हो ..!!
किन्तु इससे अलग भी विकास की नींव में महिला की अहम भूमिका रही है |और हर उपलब्धि के पीछे महिला का योगदान ज़रूर रहा है ..!अतीत और वर्तमान की तस्वीर देखें तो बदलाव की एक बयार साफ़ नज़र आती है |
विचार कुछ हलके से ...उड़ गए मुझसे आगे ...मैं विचारों के पीछे पीछे उड़ रही हूँ ....सुखद सी अनुभूति होती है ....!!कुछ तो है ...ध्येय जिसके पीछे भाग रही हूँ ...!!
ईश्वर का ध्यान सबसे पहले आता है ...!!
आभार प्रभु ...हमें मिला है ऐसा जीवन ,हम जो चाहें कर तो सकते हैं ...
नारी हूँ मैं किन्तु अबला नहीं ....!!
यही दृढ़ सोच मन कि उड़ान को और सुन्दर बना देती है ...!!
''नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में ,
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में ...!"
जयशंकर प्रसाद जी की ''कामायनी'' की ये पंक्तियाँ कितनी सुन्दर हैं |नारी का मूल्यांकन इससे खूबसूरत शायद ही हो सकता हो ..!!
किन्तु इससे अलग भी विकास की नींव में महिला की अहम भूमिका रही है |और हर उपलब्धि के पीछे महिला का योगदान ज़रूर रहा है ..!अतीत और वर्तमान की तस्वीर देखें तो बदलाव की एक बयार साफ़ नज़र आती है |
painting by Shubnam Gill. |
किन्तु बदलाव का यह सफर लंबे संघर्षों और चुनौतियों से भरा रहा है |तथा ये सफर आज भी जारी है |कन्या भ्रूण हत्या ,बलात्कार,दहेज और न जाने कितनी ही और कुंठाएं ...!!
''यह आज समझ तो पाई हूँ ,मैं दुर्बलता मैं नारी हूँ
अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ ''
इस प्रकार सोच लेकर विचलित हो बैठ जाना है या .....अस्फुट रेखा की सीमा में आकार अपनी कला को ,अपनी अभिव्यक्ति को देना है ,अपने स्वत्व को स्थापित करना है .....???
मैं तो यही कहूंगी .....
''असतो माँ सद्गमय
तमसो माँ ज्योतिर्गमय ...''
तम निरंतर छंटता जाता है ...!!उज्जवल प्रकाश है .....!!मैं हूँ ....मेरा अस्तित्व है ...!!मेरी अभिव्यक्ति है ....प्रखर .....मुखर ......
जैसे ...?????
जैसे जीवन है परछाईं रे ....
अहा ,पुरवा(पूर्वा ) सुहानी आई रे ....
झूले की पींग और तेज .....और तेज ....
आईये ...
फिर यात्रा जारी रखें उज्जवल प्रकाश की ओर......
शुभकामनाएं
ReplyDeleteस्वत्व ही ईश है,उसके लिए यदि संहार ज़रूरी है तो वही सही ....
ReplyDeleteनारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में
ReplyDeleteपीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में ...!"
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर प्रस्तुति ,,,
RECENT POST : प्यार में दर्द है,
झूले की पींग और तेज .....और तेज ....
ReplyDeleteवाह ... अनुपम भाव लिये उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत खूब ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव हमें चलते रहना है बस चलते रहना है
ReplyDeleteक्योंकि लड़की हूँ मैं
bahut badhiya ...
ReplyDeleteशब्द-शब्द आशा, उत्साह और आत्मविश्वास से भरे...
ReplyDeleteचलो चलें उज्जवल प्रकाश की ओर...शुभकामनायें अनुपमा जी
ReplyDelete''असतो माँ सद्गमय
तमसो माँ ज्योतिर्गमय ...''
प्रकाश ही प्रकाश है चारों ओर...ऐसी अनुभूति कितनी आह्लादकारी है..बधाई !
झूले की पींग और तेज .....और तेज ....
ReplyDeleteआईये ...
फिर यात्रा जारी रखें उज्जवल प्रकाश की ओर....
!!
''असतो माँ सद्गमय
ReplyDeleteतमसो माँ ज्योतिर्गमय ...''
प्रकाश हर पल बना रहे
अस्तित्व प्रखर....अभिव्यक्ति मुखर...विरल होता तम निरंतर....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कल्पना अनुपमा....ये यात्रा तो चलती रहे निरंतर ....
कोशिशें तो जारी हैं....
आभार इस सार्थक रचना के लिए....
मन जीवन रौशन करे दाता....
ReplyDeleteबहुत आभार शिवम भाई ......इस आलेख को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान दिया ...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!आभार.
ReplyDeleteभान रहे बस इतना कि नारी तू शक्ति है | ....सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteअहम् ब्रम्हास्मि भी जीवन को प्रखर उजास देता है .बहुत सुन्दर आह्वान .
ReplyDeleteयात्रा चलती रहे...निरंतर....
ReplyDeleteएक गहन अंधकार के अतीत से आरम्भ हुयी यह यात्रा है.. मशालें कई ने उठाईं, बस आवश्यकता है कि उस मशाल को बुझाने न दिया जाए!! तम से निकलकर ज्योति में पदार्पण का वह शुभ दिन अवश्य आएगा..
ReplyDeleteइदि शुभम!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी विवेचना .
ReplyDeletebahut sundar ............hamari yatra jaari rahni chahiye .........
ReplyDeletebilkul!!!
ReplyDelete''नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में ,
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में ...!"
bahut achhi lagi ye!!!
हर बुराई से जूझती नारी प्रकाश की हल्की सी किरण की आशा लिए .... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआज चर्चा मंच पर शशि पुरवरजी ने इस आलेख का लिंक दिया है ....|आभार शशि जी ...
ReplyDeleteसच ,बिलकुल ऐसे जी जज्बे और विश्वास की जरूरत है आज के इस माहौल में ।
ReplyDeleteइसी विश्वास की आवश्यकता है आज...
ReplyDeleteएक एक शब्द दिल में उतरता गया ...क्योंकि दिल से महसूस किया था ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अनु
ReplyDeleteएक एक शब्द दिल में उतरता गया ...क्योंकि दिल से महसूस किया था ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अनु
ReplyDeleteउज्जवल प्रकाश की ओर यह प्रखर, मुखर यात्रा इसी तरह सतत जारी रहे और आपकी कलात्मक अभिव्यक्ति इसी प्रकार सुंदर आकार लेती रहे ! अनन्त शुभकामनायें स्वीकार करें ! विश्वास जगाती बहुत ही सशक्त प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार आप सभी का ....ह्रदय से ...
ReplyDeleteअहो!
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