चलता चलता..
सूर्य भ्रमण कर ..
जब थककर ..
निशि की ओट में छुप जाता है ..
निशि की ओट में छुप जाता है ..
मन अन्धकार छा जाता है...
तभी ..समझ से दूर.. सोच भी मेरी ..
रूठ जाती है मुझसे ..
तब...तमस हटाती...
सोच दुलारती ..
एक आस का दीप जलाती..
तुम्हारी छब ...
तुम्हारी छब ...
दिखती है स्वप्न में.....!!
मन क्षीण..उद्विग्न सा ..
अटकता है ..भटकता है...
सोच रुपी निधि ..ढूँढता हुआ ..
सोच रुपी निधि ..ढूँढता हुआ ..
मन प्रश्नों की विधि ..ढूँढता हुआ ....
..और ढूँढता ..तुम्हें...
रेत के तपते.. वीरान ..रेगिस्तान में...!!
महसूस होती है ...
पाँव में पड़े छालों की जलन...
महसूस होती है ...
पाँव में पड़े छालों की जलन...
तुम्हारे शीतल आँचल की छाँव पाने के लिए ...
जी चाहता है जब....
बुन लेता है मकड़ी की तरह मन..
अपने ही लिए जाले...
इस मायाजाल से निकलने को .....
जब छटपटाती है रूह..मेरी ...
तुम्हारी एक झलक पाने को.......
तुम्हारे एक स्पर्श से ही ....
फिर अपनेआप में
सिमट जाने को .........
तुम्हारे एक स्पर्श से ही ....
जैसे तोड़कर मकड़ी के जाले को ......
छुई-मुई की तरह ..फिर अपनेआप में
सिमट जाने को .........
जी चाहता है जब...
माँ... तुम बहुत याद आती हो...!!
दुर्गा रूपिणी तुम मेरे लिए .
आज भी दूर कर देती हो ...
प्रभु से पहले स्मरण करूँ तुम्हें ....
अदम्य शक्ति से भरा ..
वो रूप तुम्हारा...
सुख में..दुःख में ...हर पल ...
माँ ..तुम बहुत याद आती हो......!!