बीती विभावरी अरुणिमा
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प्रमुदित नव स्वप्न निज उर
लक्षणा समझा रही है ....!!
है सुलक्षण रंग मधु घट
स्वर्णिमा अभिधा समेटे
क्षण विलक्षण अनुरिमा
वसुधा बाग़ महका रही है .....!!
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अनुपम सुकेशिनी भामिनि ,
विहग की बोली में जैसे
किंकिणि झनका रही है ....!!
ऐश्वर्य का अधिभार लेकर ,
अंजुरी धन धान्य पूरित
आ रही राजेश्वरी
शत उत्स सुख बरसा रही है !!
वसुधा के कपाल पर
कुमकुमी अभिषेक करती
भोर की आभा में अभिनव
रागिनी मुस्का रही है !!
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7M2JBX0peIulXVyxor-63Vli8T435lkMG_QFtNo3D5VUxYKT6_xKtcT_1UoJXftpb47Ktcq7PJGSqeUiiIwEBmgA08YAveRCNrkaguSTFcwUSeLhoQ0FQp0VLumZLOadUWZbHjCl_UVV0/s1600/12804882_1346374205388607_548367001193663419_n.jpg)
जीवन है बातों में उसकी ,
शीतलता रातों में है ,
भ्रमर की अनुगूंज
मंगल गीत सुखमय गा रही है .....!!
दे रहे आशीष कण कण
प्रकृति छाया अनुराग
आ रही सुमंगला
शत उत्स सुख बरसा रही है !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०८ -२०२२ ) को 'वसुधा के कपाल पर'(चर्चा अंक -४५२७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर धन्यवाद आपका अनीता सैनी जी, मेरी इस प्रविष्टि को चर्चा मंच में स्थान दिया ❤️
Delete
ReplyDeleteदे रहे आशीष कण कण
प्रकृति छाया अनुराग
आ रही सुमंगला
शत उत्स सुख बरसा रही है !!. भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति।
बहुत ही सुन्दर रचना बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteजीवन है बातों में उसकी ,
ReplyDeleteशीतलता रातों में है ,
भ्रमर की अनुगूंज
मंगल गीत सुखमय गा रही है ....
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण और जीवन का सीख देती अभिव्यक्ति,सादर नमन 🙏
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 22 अगस्त 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सादर धन्यवाद दी मेरी कृति साझा करने हेतु!!
Deleteप्रकृति का मंजुल रूप ,अनुरूप शब्दावली में!
Deleteप्रकृति का मंजुल रूप ,अनुरूप शब्दावली में!
Deleteप्रकृति का अनूठा वर्णन तुम्हारी लेखनी से निकला है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्द विन्यास ...... रचना पढ़ते हुए वसुधा धन धान्य से परिपूर्ण लग रही थी ।।
प्रकृति का मंजुल रूप - अनुरूप शब्दावली में !
ReplyDeleteपढ़ते पढ़ते मन शीतल हो गया, सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteआहा कितनी सुंदर अभिव्यक्ति। पावन.भोर की खुशबू मन में समां गयी। अति मनमोहक शब्दावली से सुसज्जित सुंदर रचना।
ReplyDeleteसुन्दरऔर मनमोहक प्रकृति चित्रण प्रिय अनुपमा जी।
ReplyDeleteबीती विभावरी जाग री---- का स्मरण हो आया।बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌺🌺🌹🌹
भोर सुहानी आयी! सुंदर चित्रण
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