किसलय का डोलता अंचल ,
नदी पर गहरी स्थिर लहरें चंचल
झींगुर की रुनक झुनक सी नाद ...
करती हैं कैसा संवाद
पग धरती विभावरी ,
धरती श्यामल शीतलता भरी,
आ रही रजनी परी ...!!
कोलाहल से दूर का कलरव ,
मन शांत प्रशांत नीरव
अनृत से प्रस्थान करते ,
नीड़ की ओर उड़ते पखेरू ,
मणिकार की मणि सा ...
स्निग्द्ध धवल मार्ग दर्शाता विधु
शब्द बुनते भाव इस तरह
फिर लरजती लरजाती सी उतरती है ,
मन में
जैसे
कोई मणि सी कविता ...!!
नदी पर गहरी स्थिर लहरें चंचल
झींगुर की रुनक झुनक सी नाद ...
करती हैं कैसा संवाद
पग धरती विभावरी ,
धरती श्यामल शीतलता भरी,
आ रही रजनी परी ...!!
कोलाहल से दूर का कलरव ,
मन शांत प्रशांत नीरव
अनृत से प्रस्थान करते ,
नीड़ की ओर उड़ते पखेरू ,
मणिकार की मणि सा ...
स्निग्द्ध धवल मार्ग दर्शाता विधु
शब्द बुनते भाव इस तरह
फिर लरजती लरजाती सी उतरती है ,
मन में
जैसे
कोई मणि सी कविता ...!!
अहा ! बहुत सुन्दर शब्द चयन ... कोमल भाव
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-06-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2361 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
हार्दिक आभार आपका दिलबाग जी |इस मंच से मेरे शब्द ,मेरे भाव बहुत लोगों तक पहुँचेंगे ,कृतार्थ हूँ आपने मेरी अभिव्यक्ति को सम्मान दिया |
Deleteसुन्दर भावों को प्रस्तुत करती मनमोहक रचना.
ReplyDeleteसुंदर भावों से ओतप्रोत रचना , बधाई
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय !!
ReplyDeleteसच में मणि सी ही कविता ।
ReplyDeleteसच में अति सुन्दर भावमय कविता। बधाई।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteमनमोहक रचना संगीता जी | प्रकृति ही कविता की सबसे बड़ी प्रेरणा है |हार्दिक शुभकामनाएं आपको |
ReplyDeleteवाह ! संध्याकाल का सुरम्य चित्रण !
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