मृदुल राग की बानगी ,
नभ घन भर लाई ,
कुंतल सी उड़ती कारी
उजियारी मन पर छाई ...!!
जा री बदरी बांवरी
निरख न मेरो भेस ,
मुतियन बुंदियन बाट तकूँ मैं,
कब सुलझाऊँ केस ……?
आस घनेरी छाई नभ पर ,
बरसे मन हुलसाती ,
पतियाँ भीगी ,
लाई मुझ तक
कुहुक कोयलिया गाती …!!
निमुवा फूले मनवा झूले ,
मियां मल्हार की बहार ,
सावन की ऋतु नेह बरसता ,
हरियाई मनुहार …!!
नभ घन भर लाई ,
कुंतल सी उड़ती कारी
उजियारी मन पर छाई ...!!
जा री बदरी बांवरी
निरख न मेरो भेस ,
मुतियन बुंदियन बाट तकूँ मैं,
कब सुलझाऊँ केस ……?
आस घनेरी छाई नभ पर ,
बरसे मन हुलसाती ,
पतियाँ भीगी ,
लाई मुझ तक
कुहुक कोयलिया गाती …!!
निमुवा फूले मनवा झूले ,
मियां मल्हार की बहार ,
सावन की ऋतु नेह बरसता ,
हरियाई मनुहार …!!
सावन का सुंदर चित्रण...वर्षा की रिमझिम फुहार भी मन भावन है..अनुपमा जी
ReplyDeleteह्रदय से आभार अनीता जी !!
Deleteउम्दा रचना
ReplyDeletekyaa baat hai
ReplyDeleteआहा ! मृदुल राग की अनुपम बानगी .
ReplyDeleteसुंदर बर्षा गीत । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
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"कब सुलझाऊ कैश "शब्दों का मार्मिक प्रयोग ।प्रकृति राग बहा हैं सस्वर।बधाई ।
ReplyDeleteछगन लाल गर्ग।
प्रकृति का अनुपम चित्रण। मन को प्रसन्न कर गया। बधाई। सस्नेह
ReplyDeleteसावनी ऋतु का क्या खूब वर्णन किया है।
ReplyDeleteसावनी मृदुल फुहार ...
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!!
ReplyDeleteनिमुवा फूले मनवा झूले ,
ReplyDeleteमियां मल्हार की बहार ,
सावन की ऋतु नेह बरसता ,
हरियाई मनुहार …!!///
बहुत बढिया अनुपमा जी |झमाझम सावन में आपकी अंतस को हर्षाती रचना पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है |सस्नेह शुभकामनाएं आपके लिए |
निमुवा फूले मनवा झूले ,
ReplyDeleteमियां मल्हार की बहार ,
सावन की ऋतु नेह बरसता ,
हरियाई मनुहार …!!
मीठी सी भाषा और सुंदर चित्रण सावन का...
मन हरा भरा हो गया दी !!!