रश्मी दी के विचार बहुत गहन सोच दे रहे थे .....उसी से आगे बढ़ते हुए मेरे मन के भाव ..............कुछ इस प्रकार ......आभार रश्मि(प्रभा) दी गहन चिंतन देने के लिए जिसने कविता का रूप लिया .....!!
वेग से उत्फुल्ल ह्रदय में
उछलती थीं प्रबल
मचलती ...उमड़ती ...घुमड़ती
जीवट भावों सी तरंगें
जिस धुरी को छू जाती
.बस वहीं तक किनारा ......!!!
फिर धूमिल सागर मेँ...!!
सागर के अथाह
सुनील विस्तार में सिमटी
उसके फेनिल उज्ज्वल स्पंदन में
पाती जब विस्तार
होती गति पूर्ण
करती है उन्मत्त नर्तन
भावना लेती है हिलोर
अंतर्नाद का बुलंद होता है हौसला
इसी हौसले की प्रतिध्वनि से
हुंकार करती हुई
आकार लेती है
प्रत्येक समुज्ज्वल उत्ताल लहर
क्यों बनाती है ...स्वनिर्मित
नित नया किनारा ...??
क्षणभंगुरता जीवन की
जानती है सब
फिर भी ..मानती नहीं
जिजीविषा से भरी
ओज से उल्लसित
समुज्ज्वला ... रुकती नहीं ....!!
प्रत्येक लहर का बनता ही है
अपना किनारा
फिर धूमिल ..सागर में ...!
फिर मिटने को उठती है
प्रत्येक समुज्ज्वल उत्ताल लहर
पाती है सागर से ही विस्तार
होता है सागर में ही विस्तार
जब देती है सागर को विस्तार
बनाती जाती है ...स्वनिर्मित
नित नया किनारा ...!!
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''उदास आँखों से साहिल को देखने वाले .....
हर इक मौज की आगोश में किनारा है ....''
इसी बात पर आज ये गीत भी सुनिए ........
'गर्भनाल' पत्रिका के नवम्बर २०१३ अंक में प्रकाशित हुई है और
इसी कविता का प्रसारण आकाशवाणी दिल्ली से भी आ चुका है।
यही उसकी नियति है
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति और खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteबेजोड़ भाव ..हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (05-11-2013) भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर : चर्चामंच 1420 पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में
भइया दूज की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार शास्त्री जी ....!!
Deleteवाह .... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteसुंदर गीत और भावपूर्ण जोश भरती हुई पंक्तियाँ..अनुपमा जी आज तो सोने पर सुहागा है...
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteसुन्दर एवं उत्कृष्ट रचना.. बधाई आपको ..
ReplyDeleteसुन्दर एवं उत्कृष्ट रचना.. बधाई आपको ..
ReplyDeleteइन लहरों से ही सागर का अस्तित्व है , उत्ताल अवतल फेनिल लहरे ज्वर और भाटा की प्रतीक है , उनको किसी सीमा में भला कैसे बंधा जा सकता है . बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी .
ReplyDeleteGREAT LINES WITH DEEP EXPRESSION
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना. जीवन में तरंगित भावनाएं या भावनाओं में तरंगित जीवन अपना चाहा अनचाहा किनारा पाकर इसी सतत प्रक्रिया से जीवन को समृद्ध करती रहती है. और नित ये तरंगे ना उठे तो जीवन शायद निस्सार हो जाये.
ReplyDeleteगीत भी बहुत प्यारा लगा. यह मेरे पसंदीदा गीतों में से एक है. इकतारा की पहली धुन ही काफी है ह्रदय जीतने के लिए. काश इस गीत को लिखने वाले इरशाद साब ने और गीत लिखे होते दूसरी फिल्मों में.
Chitra sa khinch gaya. Shabdon ka chayan aisa jaise bhavon se spardha kar raha ho!
ReplyDeleteChitra sa khinch gaya. Shabdon ka chayan aisa jaise bhavon se spardha kar raha ho!
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteवेग से उत्फुल्ल ह्रदय में ...
ReplyDeleteउछलती थीं प्रबल ...
मचलती ...उमड़ती ...घुमड़ती ....
जीवट भावों सी तरंगें .......
जिस धुरी को छू जाती ...
.बस वहीं तक किनारा ......!!!
फिर धूमिल सागर मेँ...!!लहर अलग नहीं है पानी से ,बुडबुडा झाग भी जीवन के आलोड़न को गति देती लहर है फिर भी। बहुत सुन्दर ज़ाज़बात। गीत भी सूना प्रकाशन के लिए प्रसारण के लिए बधाई आपकी रचनाओं के।
ये लहरें टाहि प्रेरणा देती हैं ... जब तक सांस है जीवन है ... जिजीविषा है ... जीवन की ... भरपूर जियो ... भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर विचार |
ReplyDeleteक्या बात है ... अति सुन्दर ...
ReplyDeleteवाह अनु.बहोत खूब.....!!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर । सागर की लहरों का वेग और भावनाओं का आवेग एक सा ही तो है.
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति . . .
ReplyDeletebahut hi sundar rachna...................
ReplyDeleteइस रचना को पसंद करने हेतु आप सभी का आभार ...!!
ReplyDeleteलहर का अस्तित्व माया है लहर झाग ,फेन सब जल ही है। सागर में लहर है लहर में सागर नहीं है। बढ़िया प्रस्तुति है।
ReplyDeleteक्षणभंगुरता जीवन की ..
ReplyDeleteजानती है सब ..
फिर भी ..मानती नहीं ....
जिजीविषा से भरी ....
ओज से उल्लसित ...
समुज्ज्वला ... रुकती नहीं ....!! .... जीवन के गहरे अनुभवों को शब्दों में बाँधा है,बहुत ही बढ़िया
बहुत सुंदर रचना अनुपमा जी ! सागर की हर लहर का यही जीवनवृत्त होता है कदाचित ! हर पल वह आकार लेती है, नित नये किनारे बनाती है और पल भर के बाद उसी सागर में तदात्म्य हो विलीन हो जाती है ! गहन दर्शन को अभिव्यक्ति देती सशक्त प्रस्तुति !
ReplyDelete
ReplyDeleteक्षणभंगुरता जीवन की ..
जानती है सब ..
फिर भी ..मानती नहीं ....
जिजीविषा से भरी ....
ओज से उल्लसित ...
समुज्ज्वला ... रुकती नहीं ....!!
....बहुत उत्कृष्ट और गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteक्षणभंगुरता जीवन की ..
जानती है सब ..
फिर भी ..मानती नहीं ....
जिजीविषा से भरी ....
ओज से उल्लसित ...
समुज्ज्वला ... रुकती नहीं ....!!
...बहुत उत्कृष्ट और गहन अभिव्यक्ति...
Very well written.
ReplyDeleteVinnie
लहर जब उठती है हुंकार भारती है तो किनारा मिलता है उसे ... उसद विलीन होना नहीं कहते ... मंजिल पाना कहते हैं ...
ReplyDeleteठीक कहा अपने दिगंबर जी । पति के अलग अलग जगह स्थानांतरण के साथ अलग अलग तरह अपने आप को स्थापित किया और अलग अलग मंज़िलें पाती चल रही हूँ ।समुद्र के विस्तार से .... जो मिले जैसा मिले उसे अलंकृत करते हुए जीवन में आगे बढ़ाते रहना चाहिए।निराश नहीं होना चाहिए । लहर से यही प्रेरणा लेती हूँ और फिर कुछ नई लहर उठ जाती है मन में।
Deleteफिर मिटने को उठती है ....
ReplyDeleteप्रत्येक समुज्ज्वल उत्ताल लहर .....
पाती है सागर से ही विस्तार ...
होता है सागर में ही विस्तार ...
जब देती है सागर को विस्तार ...
बनाती जाती है ...स्वनिर्मित .. ...
नित नया किनारा ...!!
बहुत सुन्दर पंक्तियां .....उत्ताल लहरें ही विस्तार देती हैं....सचमुच बहुत गहरे भाव....
भावपूर्ण पंक्तियाँ..अनुपमा जी
ReplyDeleteजितने खूबसूरत भाव उतने ही खूबसूरत शब्द । समुद्र में उठती हर लहर का अपना एक किनारा वैसे ही मन की लहर का भी अपना एक किनारा .....लहरों के माध्यम से जीवन में जिजीविषा बनी रहे ..... यही कामना है ।
ReplyDeletebahut hi pyaarirchnaa...bhasha pe aapki pakd dekh....mzaa aa gya....
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteअद्भुत!!!