चम्पक बन में बैठ सखी संग ...
वृहग वृन्द का कलरव सुनना ....
ढलते दिवस के अवरोह पर ..
राग दरबारी के ....
खरज से ...
कुछ गंभीर प्रकृति के स्वर लेना ......
फिर तजकर ....कुछ हंसकर ..
संध्या के आरोह गुनना .....
ई मन राग की पकड़ से ...
कुछ भावों का आलाप लेना ...
कुछ गाना ...गुनगुनाना ...मन बहलाना ....
कुछ मन की ...कुछ जीवन की ...
कुछ सपनों की बातों की ...
लहराती सी कवरी गूंथना ...
उराव से ....
चुन चुन चंपा के फूलों को ...
भावों की उस कवरी को ...
फिर सजाना ...संवारना ......और सजना ...
प्रियतम की अनुरागी बातों को ..
शर्म से कुछ कहना ...सुनना ...और हँसना ...
याद है ....?
और फिर इस तरह ...
वीतरागी से मन को ...
पुनः अनुराग में डुबो ........भिगो ....रंगो ......
निशीथ मन ......खिल खिल ....घर चले आना ...
याद है ....?
**
*******************************************************************************
*दरबारी-शास्त्रीय संगीत की राग का नाम है |इसकी प्रकृति गंभीर है |
*खरज -(lower octave )यानि मन्द्र सप्तक के स्वर |
*ई मन -यमन राग को मुग़ल काल में ईमन भी कहा जाता था ...
*कवरी-बालो को गूंथ कर बनाई चोटी ....
*उराव-उमंग
*निशीथ -खुशियाँ
वृहग वृन्द का कलरव सुनना ....
ढलते दिवस के अवरोह पर ..
राग दरबारी के ....
खरज से ...
कुछ गंभीर प्रकृति के स्वर लेना ......
फिर तजकर ....कुछ हंसकर ..
संध्या के आरोह गुनना .....
ई मन राग की पकड़ से ...
कुछ भावों का आलाप लेना ...
कुछ गाना ...गुनगुनाना ...मन बहलाना ....
कुछ मन की ...कुछ जीवन की ...
कुछ सपनों की बातों की ...
लहराती सी कवरी गूंथना ...
उराव से ....
चुन चुन चंपा के फूलों को ...
भावों की उस कवरी को ...
फिर सजाना ...संवारना ......और सजना ...
प्रियतम की अनुरागी बातों को ..
शर्म से कुछ कहना ...सुनना ...और हँसना ...
याद है ....?
और फिर इस तरह ...
वीतरागी से मन को ...
पुनः अनुराग में डुबो ........भिगो ....रंगो ......
निशीथ मन ......खिल खिल ....घर चले आना ...
याद है ....?
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*दरबारी-शास्त्रीय संगीत की राग का नाम है |इसकी प्रकृति गंभीर है |
*खरज -(lower octave )यानि मन्द्र सप्तक के स्वर |
*ई मन -यमन राग को मुग़ल काल में ईमन भी कहा जाता था ...
*कवरी-बालो को गूंथ कर बनाई चोटी ....
*उराव-उमंग
*निशीथ -खुशियाँ
निशीथ मन ......खिल खिल ....घर चले आना ...
ReplyDeleteआनंद...आनंद ...
बहुत सुंदर कविता में संगीत घुलमिल गया है और एक अद्भुत लय में पाठक डूब गए हैं।
ReplyDeleteस्वर लहरी, बस मन लहरी।
ReplyDeleteमें बैठ सखी संग
ReplyDeleteगयी उस में रंग ...
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(18-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
इस रचना को चर्चा मंच पर लेने हेतु बहुत आभार वंदना जी ....!!
Deleteफिर तजकर ....कुछ हंसकर ..
ReplyDeleteसंध्या के आरोह गुनना .....
ई मन राग की पकड़ से ...
कुछ भावों का आलाप लेना ...
कुछ गाना ...गुनगुनाना ...मन बहलाना ....
अनुपम भाव संयोजन एवं प्रस्तुति
मन भावन..खुबसूरत रचना...आभार
ReplyDeleteक्या कहने,
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
आपके शब्दों से संगीत निकलता हैं.
ReplyDeleteसंगीत और काव्य का मिल्न जैसे नाद और ज्योति का मिल्न हो..सुंदर !
ReplyDeleteman me basne layak shabdo ka sangeet :)
ReplyDeleteसुंदर कविता, स्मृतियों के झरोखे खुल गए और याद आगइ वह ढलती सांझ ....
ReplyDeleteजब स्मृतियों के चम्पा-कुसुम से आँचल भी भर गया और मन भी ..
शब्दों में ढली स्मृतियाँ .....चम्पक-वन में ....
अनुपमा जी आपका लेखन शब्द संयोजन और चित्रों से कथन को भाव देना बहुत ही सुन्दर और अद्भुत दृष्टिगोचर होता है मेरे व्यक्तिगत विचार में एक लेख या कविता गेय होता है तो दूसरा पढ़ने योग्य आपकी रचनाएँ पढ़ने, गेय और देखकर भी [ दृश्य] भी अर्थात त्रिआयामी लगी बधाई ********** दस में दस अंक
ReplyDeleteसंगीतमय रचना....
ReplyDeleteपिय की बातें संगीतमय स्वर-लहरी बन-बन आते रहे. उससे ज्यादा आनंददायक क्या हो. अति सुन्दर.
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ...
ReplyDeleteराग और रंग के साथ मज़ा दूना हो गया ..
सुन्दर....बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteलहराती सी कवरी गूंथना ...
उराव से ....
चुन चुन चंपा के फूलों को ...
भावों की उस कवरी को
वाह!!!
सादर
अनु
ReplyDeleteसंगीत की बारीकियों और रागों को इतिहास के झरोखे से देखती कोमल पदावली पोस्ट .बेहद की खूब सूरत .
खुशबू से मन सराबोर कर दिया आपकी पंक्तियों ने ।
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन ।
और फिर इस तरह ...
ReplyDeleteवीतरागी से मन को ...
पुनः अनुराग में डुबो ........भिगो ....रंगो ......
निशीथ मन ......खिल खिल ....घर चले आना ...
याद है ....?
वाह ... अनुपम शब्दों का संयोजन जैसे संगीत लहरी बह निकली हो ... बहुत सुंदर
वाह, बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteसखियों के साथ बीते इन अनमोल पलों को ऐसी सुन्दर सुर लहिरी में पिरोना .......तुम्हारी ही खासियत है ..वाह ..बहुत सुन्दर ....अनु !!!!
ReplyDeleteसखियों के साथ बीते इन अनमोल पलों को ऐसी सुन्दर सुर लहिरी में पिरोना .......तुम्हारी ही खासियत है ..वाह ..बहुत सुन्दर ....अनु !!!!
ReplyDeleteSo beautiful! :)
ReplyDeleteचम्पक बन में बैठ सखी संग ...
ReplyDeleteवृहग वृन्द का कलरव सुनना ....aha bade hi sukhmay pal .....anu jee ....
संध्या जी ब्लॉग वार्ता पर मेरी कृति ली ,बहुत बहुत आभार ....!!
ReplyDeleteBeautiful poem. Loved it!
ReplyDeletesabdo ke sunder chayan ka sath ek atti sunder kavita!!
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