जीवन की परिभाषा.... !!
वसुंधरा के उद्दाम ललाट पर
सूरज की ललाम आशा
प्रातः की कवित्त विरुदावली है या
मेरी कविता की अभिलाषा !!
तुम्हारे शब्दों में उल्लसित
मेरे व्योम की विभासा
तुम्हारी कविता है
या मेरी उड़ान की अपरिमित जिजीविषा !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति ''
''सुकृति ''
प्रकृति के साथ एकाकार होकर ही जीवन में काव्य को अनुभव किया जा सकता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति की निखार चहुंओर प्रस्फुटित हो रही है । जिजीविषा यूं ही बनी रहे ।
ReplyDeleteयूँ ही कविता की अभिलाषा बानी रहे और प्रकृति प्रदत्त कविताएँ लिखती रहें ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
मुग्ध करती रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (02-08-2021 ) को भारत की बेटी पी.वी.सिंधु ने बैडमिंटन (महिला वर्ग ) में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। (चर्चा अंक 4144) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
रविंद्र सिंह यादव जी आपका सादर धन्यवाद आपने मेरी रचना का चयन चर्चा मंच हेतु किया |
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 2 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सादर प्रणाम दी!! आपका हृदय से धन्यवाद मेरी रचना के चयन हेतु।
Deleteआहा अति मनमोहक भावपूर्ण प्रकृति और मन की युति से उत्पन्न सकारात्मक सृजन।
ReplyDeleteप्रणाम
सादर।
यह अपरिमित जिजीविषा ही है जो जूझने को प्रेरित करती है।
ReplyDeleteतुम्हारे शब्दों में उल्लसित
ReplyDeleteमेरे व्योम की विभासा
तुम्हारी कविता है
या मेरी उड़ान की अपरिमित जिजीविषा !!--बहुत सुंदर रचना...।
भावपूर्ण रचना।
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ReplyDeleteतुम्हारे शब्दों में उल्लसित
मेरे व्योम की विभासा
तुम्हारी कविता है
या मेरी उड़ान की अपरिमित जिजीविषा !!वाह सुंदर कथन जो कि स्वयं में ही परिभाषित हो रहा है। भावभारी रचना।
तुम्हारी कविता है
ReplyDeleteया मेरी उड़ान की अपरिमित जिजीविषा
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन।
वाह लाजबाव रचना
ReplyDeleteवसुंधरा के उद्दाम ललाट पर
ReplyDeleteसूरज की ललाम आशा
प्रातः की कवित्त विरुदावली है या
मेरी कविता की अभिलाषा !!
मनभावन , सुकोमल शब्दावली से सजी रचना | हार्दिक शुभकामनाएं अनुपमा जी |
बहुत ही प्यारी और भावनात्मक रचना
ReplyDeleteप्रकृति को प्रतीक बना कर मन के एहसासों को शब्दों के माध्यम से सुंदरता से ढ़ाला है आपने अनुपमा जी बहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत सृजन
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