धीरे धीरे चलती रही ,
वक़्त के साथ सिमटती रही यादें।
किसी अमुआ की फुनगी पर
बुलबुल की तरह ,
किसी नीम की टहनी पर
चुलबुल की तरह ,
चम्पई सुरमई गीतों में
महकती रही यादें
मेरे साथ साथ यूँ ही
चलती रही यादें !!
कभी बादलों के गाँव में
चंदा की तरह ,
कभी आसमान की छाँव में
सूरज की तरह ,
कभी धरती पर चमेली सी
उड़ती ,ठहरती महकती रही यादें
मेरे साथ साथ यूँ ही
मचलती रही यादें !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (१४-०८-२०२१) को
"जो करते कल्याण को, उनका होता मान" चर्चा अंक-४१५६ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी कृति को चर्चा मंच का पटल देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी एवं शास्त्रीजी |
Deleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteयादें और प्रकृति से सजे कोमल बिंब रचना को उत्कृष्ट बना गई।
अभिनव सृजन अनुपमा जी।
अपना पथ धरती हैं यादें,
ReplyDeleteबड़ा विवश करती हैं यादें।
सुन्दरता से उभारा है यादों का उतरना।
वाह...
ReplyDeleteप्रिय अनुपमा जी सुंंदर भावपूर्ण एहसास
मेरी चंद पंक्तियाँ-
सफर तो चलेगा समेट कर मुट्ठी भर यादें
कुछ तो सौगात मिला
ऐ जिंदगी चंद अनछुए एहसास के लिए
दिल से शुक्रिया है तुम्हारा।
सादर
बहुत अच्छी कविता।सादर अभिवादन
ReplyDeleteज़िन्दगी यादों का पिटारा ही तो है अनुपमा जी। अच्छी कविता हेतु अभिनंदन आपका।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन! सच में यादें कुछ ऐसी ही होती है!
ReplyDeleteकभी कभी सोचता हूँ कि गर यादें तो क्या होता
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता अनुपमा त्रिपाठी "सुकृति " जी 🌹🙏🌹
ReplyDeleteप्रकृति की सुंदर उपमा से सज्जित यादें.. यादों का अनोखा अहसास ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन
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