प्रत्येक प्रात की
लालिमा में ,
मेरी आसक्ति से
अनुरक्त अनुरति ,
हृदय में ,
शब्दों के आवेग-संवेग में ,
उमड़ती घुमड़ती घटा सी ,
छमाछम झमाझम ....
बूंदों की खनक ,
मेरे आँगन .......
आई हुई मन द्वार ,
नव पात में,नव प्रात में
प्रस्फुटित हरीतिमा की कतार ,
सावन की बहार !!
ओ कविता
अभिनन्दन करो स्वीकार ,
तुम बरसो ऐसे ही बार बार ......!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
कवितांजलि, वर्षा को, फुहारों सी। सुघट सृजन।
ReplyDeleteओ कविता
ReplyDeleteअभिनन्दन करो स्वीकार ,
तुम बरसो ऐसे ही बार बार ......
.. हाजिर हूँ ..
बहुत खूब!
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२८-०७-२०२१) को
'उद्विग्नता'(चर्चा अंक- ४१३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय से सादर धन्यवाद अनीता जी !!
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteअप्रतिम भाव ...
ReplyDeleteसावन की कविता है, कविता का सावन है ! बहुत सुंदर
ReplyDeleteAnupama ji, yah APPROVAL hat sake to behatar hai
ReplyDeleteगगन जी सादर धन्यवाद आपकी टिपण्णी के लिए | दरअसल कई बार कुछ अजीब सी टिपण्णी भी आ जाती है इसलिए मॉडरेशन लगाया है |
Deleteस्वागत है अभिनंदन है तुम असो बार बार 😄
ReplyDeleteख़ूबसूर्स्ट अभिव्यक्ति
ओ कविता
ReplyDeleteअभिनन्दन करो स्वीकार ,
तुम बरसो ऐसे ही बार बार ......!!
सावन की बारिश जैसी खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी रचना!!
ReplyDeleteअति सुंदर आह्वान । 👌
ReplyDeleteकाव्य को मधुर निमंत्रण ही काव्य का आगमन है, सुंदर रचना!
ReplyDeleteसावन की घटाओं से मनोरम संवाद करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteजब प्रकृति रचती है अपनी कूची से कोई रचना ... वो सबसे सुंदर होती है ... बरखा भी ऐसी ही एक रचना है ...
ReplyDeleteओ कविता
ReplyDeleteअभिनन्दन करो स्वीकार ,
तुम बरसो ऐसे ही बार बार।
वाह! मुग्ध करते भाव , सुंदर शब्द चयन ।
सुंदर सृजन।
अनुपम छटा ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!!
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