पवन झखोरे से लिपटी हुई
एक सुरमई चाह हूँ मैं
लहराते आँचल में सिमटी हुई
ममता हूँ मैं
रात के काजल में
आँखों का वो एक पाक सपन
तेरी खुशबू से नहाई हुई
चंपा हूँ मैं
आँख से कहती हुई ,
बन बन में भटकती हुई
तेरे दीदार की हर पल में बसी
खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति "
कोमल भाव
ReplyDeleteबहुत सुंदर अहसासों का सृजन
ReplyDeleteसुन्दर मधुर भाव..
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२४-०७-२०२१) को
'खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!'(चर्चा अंक-४१३५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर नमस्ते अनीता जी ,
Deleteह्रदय से धन्यवाद मेरी रचना के चयन हेतु !!
एक उमंग भरी प्यारी सी सुंदर रचना
ReplyDeleteआँख से कहती हुई ,
ReplyDeleteबन बन में भटकती हुई
तेरे दीदार की हर पल में बसी
खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!
बहुत ही सुंदर सृजन
मंत्रमुग्ध करती रचना - -
ReplyDeleteभीनी-भीनी खुशबू-सी ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआँख से कहती हुई ,
ReplyDeleteबन बन में भटकती हुई
तेरे दीदार की हर पल में बसी
खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मै बहुत ही लाजवाब मनभावन सृजन
वाह!!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर हार्दिक धन्यवाद आपका!!
Deleteबहुत खूबसूरत भाव संयोजन ।
ReplyDeleteखुशनुमा ख्वाहिश बनी रहना ।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजज़्बातों से लबरेज़ अहसास!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदरता से सजे खूबसूरत अहसास ...
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