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19 July, 2021

प्रेम तब भी जीवित होगा


मैं शब्द हूँ

नाद ब्रह्म ...

प्रकृति में रचा बसा ...!!

हूँ तो भाव भी हैं

किन्तु ,

मौन रहूँगा तब भी


भावों का अभाव न होगा !!

प्रतिध्वनित होती रहेगी

गूंज  मेरी , अनहद में 

उस हद से परे भी

प्रकृति की नाद में ,

जल की कल कल में

वायु के वेग में

अग्नि की लौ में  ,

धृति  के धैर्य में,रंग में ,बसंत में,

और आकाश के विस्तार में

पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक !

प्रभास तब भी जीवित होगा !!

 प्रेम तब भी जीवित होगा ...!!!


अनुपमा त्रिपाठी 

''सुकृति ''



13 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२१-०७-२०२१) को
    'सावन'(चर्चा अंक- ४१३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    Replies
    1. हृदय से सादर धन्यवाद अनीता जी, मेरी रचना के चयन हेतु!

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  2. मौन रहकर भी जो सारे भावों का जन्मदाता है वही तो प्रेम का प्रदाता है, सुंदर रचना!

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  3. शब्द से सब गुंजित है। सारी ऊर्जा का स्रोत वह प्रथम शब्द। गहरी अभिव्यक्ति।

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  4. धृति के धैर्य में,रंग में ,बसंत में,

    और आकाश के विस्तार में

    पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक !

    प्रभास तब भी जीवित होगा !!

    प्रेम तब भी जीवित होगा ...!!!बेहद उत्कृष्ट सृजन - - साधुवाद।

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  5. बहुत सुन्दर रचना

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  6. बहुत ही सुन्दर

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  7. सुन्दर रचना

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  8. वाह, शब्दों की माया का सुंदर वर्णन।

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  9. अति सुन्दर सृजन एवं भाव ।

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  10. बहुत ही लाजवाब सृजन
    वाह!!

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!