स्नेह दीप्ति सा
प्रज्ज्वलित हृदय
सूर्य से लिए कांती ,
चन्द्र से लिए शांति,
दृढ़ता मन में ,
कोमलता आनन में
नारी की पहचान
दिशा बोध संज्ञान
पग अपना धरे चलो ,
ऐसे ही बढ़े चलो ...
शोभित सुशोभित होते रहें
संवेदनाओं के सभी किस्से
दाल चावल घी अचार में बसे
मेरे तुम्हारे वो सभी हिस्से !
कल्पना को साकार करना ,
संघर्षों में तपते जाना ,
सुख में मिलकर हँसते जाना
दुःख में जग से छिपकर रोना
ऐसे ही जीवन को जीना ,
संस्कृति संपृक्त
पग अपना धरे चलो
ऐसे ही बढ़े चलो ...!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृती "
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
नमस्ते अनीता जी ,
Deleteमेरी रचना को चर्चा अंक पर स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका |
वाह
ReplyDeleteऐसे ही बढ़े चलो , नारी ही सबमें बसी रहती फिर भी उतनी अहमियत क्यों नहीं ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन
धन्यवाद दी ! नारी अब तो हर क्षेत्र में अपनी कल्पना साकार कर रही है |
Deleteसंघर्षों में तपते जाना ,
ReplyDeleteसुख में मिलकर हँसते जाना
दुःख में जग से छिपकर रोना
ऐसे ही जीवन को जीना ,
संस्कृति संपृक्त
पग अपना धरे चलो
ऐसे ही बढ़े चलो ...!!
...बहुत सुंदरता से आपने नारी मन को सम्भाल लिया। कुछ भी हो पर सहर्ष बढ़े चलो।सुंदर सृजन।
संघर्ष का फल मीठा होता है!!
Deleteसुंदर कविता
ReplyDeleteआपकी कविता निश्चय ही प्रशंसनीय है अनुपमा जी। अभिनंदन।
ReplyDeleteनारी की पहचान
ReplyDeleteदिशा बोध संज्ञान
पग अपना धरे चलो ,
ऐसे ही बढ़े चलो ...
नारी है तो जग है......भावपूर्ण सृजन ,सादर
शोभित सुशोभित होते रहें
ReplyDeleteसंवेदनाओं के सभी किस्से
दाल चावल घी अचार में बसे
मेरे तुम्हारे वो सभी हिस्से !---बहुत ही अच्छी और गहन कविता। खूब बधाई अनुपमा जी।
सुंदर गहन हृदय स्पर्शी भाव, जो नारी के स्वाभाविक गुणों को गूंथकर वेदना उजागर करते हैं ।
ReplyDeleteसुन्दर भावासिक्त रचना ।
ReplyDeleteकाश इस दीप्ति से सारा जगत प्रकाशित होता रहे। सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteवाह! इस सुंदर सी कामना को परम का आशीष सदा ही मिलेगा
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन
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