मांगी थी मैंने ..
प्यारी सी ज़िन्दगी .....!!
एक टुकड़ा-
धूप की चाह...
एक स्नेहिल-
धूप का स्पर्श ....!!
हवाओं में भी हो ...
भीनी भीनी सी-
एक खुशबू धूप ...
धूप ही धूप ...
बस सुबह की धूप ...!!
पर जीवन की -
हर पल..पल -पल
होती हुई प्रगति में -
ये संभव तो नहीं ....!!
क्योंकि सुबह की धूप
तो आएगी ही ..
हाँ निश्चित ही आएगी ...
लेकिन फिर..
देखते ही देखते
सिर चढ़ जाएगी ...
बन जाएगी ..
दोपहर की धूप ..
और दे जाएगी ..
चिलचिलाती गर्मी ..
और...
तिलमिलाते एहसास ...!!
और मैं..
कहती रह जाऊंगी...
मुझे चाहिए ..
बस सुबह की धूप ......!!
फिर जीवन भागेगा ...
इस दौड़ में इस भाग में ..
इस भोग में विलास में ..
इस शह में मात में ..
इस शह में मात में ..
होना पड़ेगा शामिल ...
सांझ ढल जाएगी ..
हो जायेगा अँधेरा ...
दूर ...हो जायेगा ..
मुझसे भी मेरा साया....
मुझसे मेरा सवेरा ....
मैं कहती रह जाऊंगी ...
मुझे चाहिए ..
बस सुबह की धूप ...!!!
फिर समय तो -
बीतेगा ही ...
हाँ निश्चय ही ...
आएगी फिर वही ..
सुबह की धूप ...
रहेगी ..रुकेगी ..
कुछ पल मेरे साथ ..
किन्तु ..पलक झपकते ही -
बीत जायेंगे वो ...
गुनगुने-गुनगुने ..
मीठे मीठे..
रेशमी-गुलाबी पल ...
और मैं ...
कहती रह जाऊंगी ...
कभी उदास ..
कभी हंसकर ...
मुझे चाहिए ..
बस .......
बस सुबह की धूप .........................................!!!!!!!!!!!
बस सुबह की धूप .
आपकी कविता पढ़ी.किसी का एक बहुत पुराना शेर याद आ गया.
ReplyDeleteशेर है:-
सुबह होती है,शाम होती है.
उम्र यूँ ही तमाम होती है.
मन का क्या है , उसे तो हमेशा सुबह की धूप ही पसंद है . चिलचिलाती दोपहर की धूप में तपती जिंदगी, मानव की कठिन परीक्षा की घडी और तप कर निकले कंचन के मानिंद तरह बना देती है .
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है आपने.
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर कविता..बधाई.
ReplyDelete________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!
बहुत सुंदर भाभीजी ,सुबह की धुप का क्या चित्रण किया है आपने /कड़ी धुप में मेहनत करने वालों के लिए सुबह की गुनगुनी धुप हर दिन एक नया सवेरा और एक नई आशा की किरण लेकर आता है/बधाई
ReplyDeleteSab kuch nishchit to nahi rahta ... aane waala jaata bhi hai ... har subah ki shaam to hoti hi hai ... lajawaab rachna ...
ReplyDeleteअद्भुत रचना...आप को इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई...
ReplyDeleteनीरज
दोपहर की धूप से बचने का उपाय , दुष्यंत के शब्दों में -
ReplyDelete"जीयें तो अपने बागीचे में गुलमोहर के तले,
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए "|
कविता के माध्यम से ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा गढ दिया।
ReplyDeleteमुझे चाहिए ..
ReplyDeleteबस .......
बस सुबह की धूप ..........................bahut hi badhiyaa
सुबह की धूप तो बहुत भाति है, लेकिन दोपहर की धूप ही संघर्ष का प्रतीक है!
ReplyDeleteबेहतरीन, बहुत ही सुन्दर और जीवन के यथार्थ को बयान करती एक खूबसूरत रचना!
Anurag Benawri दोपहर की धूप ही दिलाती शीतलता का अहसास
ReplyDeleteउसी से होता भोर की कोमलता का आभास
पीड़ा बिन सुख निराधार है
दोनो का आपस में गहरा सरोकार है..
आदरणीय अनुपमा जी..कैसे एक ही दिन में सरे जीवन की झांकी दिखा दिया आपने, हर उतर चढाव हर रंग रूप ..सच में हमारा एक दिन सही मायने में एक जीवन का प्रतिनिधित्व करता है..
ReplyDelete..
आपकी प्रतिष्ठा के अनुरूप सुन्दर रचना अनुपमा जी बधाई !!
सुंदर भाव लिए रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
बस सुबह की धूप
ReplyDeleteसही अर्थ यह जीवन है सुन्दर भावाव्यक्ति, बधाई
कभी उदास ..
ReplyDeleteकभी हंसकर ...
मुझे चाहिए ..
बस .......
बस सुबह की धूप .........................................!!!!!!!!!!!
बस सुबह की धूप .
बहुत खूब !!
फिर जीवन भागेगा ...
ReplyDeleteइस दौड़ में इस भाग में ..
इस भोग में विलास में ..
इस शह में मात में ..
होना पड़ेगा शामिल ...
सांझ ढल जाएगी ..
हो जायेगा अँधेरा ...
दूर ...हो जायेगा ..
मुझसे भी मेरा साया....
मुझसे मेरा सवेरा ....
मैं कहती रह जाऊंगी ...
मुझे चाहिए ..
बस सुबह की धूप ...!!!
Just loved it Di ! :-)
फिर समय तो -
ReplyDeleteबीतेगा ही ...
हाँ निश्चय ही ...
आएगी फिर वही ..
सुबह की धूप ...
रहेगी ..रुकेगी ..
कुछ पल मेरे साथ .
बहुत सुन्दर भाव रचना के ...अच्छी प्रस्तुति
कभी उदास ..
ReplyDeleteकभी हंसकर ...
मुझे चाहिए ..
बस .......
बस सुबह की धूप
बहुत खूब ।
संवेदनाओं को विस्तार देेता है आपका शब्द संसार। अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है-शब्दों की सत्ता। समय हो तो पढ़ें और प्रतिक्रिया भी दें।
http://www.ashokvichar.blogspot.com/
कभी उदास ..
ReplyDeleteकभी हंसकर ...
मुझे चाहिए ..
बस .......
बस सुबह की धूप
जीवन का क्रम इस चाह में अनवरत चलता है और अपने अंतिम पड़ाव तक इस चाह को बनाये रखता है .......आपने अपनी रचना के माध्यम से जीवन के अनुभूत सत्यों को उजागर किया है और जीवन को नया अर्थ दिया है ......आपका आभार इस सार्थक रचना के लिए ..!
इसी आवा जाहि का नाम है जीवन.
ReplyDeleteसुन्दर कविता.
सबसे अधिक गुनगुनी है सुबह की धूप।
ReplyDeleteसुबह की धूप का उसी पल आनंद लेना ठीक है , इस बात की चिंता किये बगैर की धीरे -धीरे धूप सर चढ़ जायेगी ...
ReplyDeleteकितनी साम्यता है जिंदगी और सुबह की धूप में !
.
ReplyDeleteअनुपमा जी ,
न जाने क्यूँ धुप से मुझे विशेष मोह है । आपकी रचना में उसी धुप का सुखद स्पर्श मिला है।
कच्ची धूप गुनगुनी धूप ..
जाड़े की नर्म धूप ....और
मेरे मन के आँगन में बिखरी मासूम सी धूप ...
.
वाकई ....
ReplyDeleteमुझे चाहिए स्नेहिल धूप :-)
शुभकामनायें !
धूप की तलाश में जीवन की यात्रा... बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता!
ReplyDeleteबस सुबह की धूप...
ReplyDeleteवाह!!!बहुत बढ़िया.
सुंदर भावाभिव्यक्ति ...सम्मोहित करते शब्द ..... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeletebehad khoobsurat hai aapki kavita.
ReplyDeletesundar rachna
ReplyDeleteजीवन तो चलता ही है जैसे हमारी दिनचर्या चलती है ...!!हमें जीवन के साथ साथ चलना भी है |चलते भी हैं |हाँ ..मन ज़रूर कहता रहता है ..समय के अनुरूप ....कभी उदास कभी हंसकर ....मुझे चाहिए ....
ReplyDeleteबस सुबह की धूप ....!!
आप सभी ने इस धूप का आनंद लिया ...बहुत बहुत धन्यवाद ...!!
apna sneh banaye rakhiyega .
Subah ki dhup ki tarah hi gungunati hui rachana....bahut sundar...aabhar....
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