नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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01 April, 2011

स्निग्ध चांदनी की लोरी ........!!!

शनैः शनैः 
शांत होता है-
 कोलाहल ....
गुमसुम होता-
राग बिलावल -
रचने लगी है लोरी 
निशा बांवरी ....!!
थक कर पाखी भी सोये हैं -
पेड़ों की झुरमुट में खोये हैं -
पलक बंद पर मन जागा  है -
प्रकृति का  साथ निभाती -
जाग रही है कृति भी मेरी -
अकुलाहट बहार आने को -
ढूंढे राहें नवल- नवेली -


             घोर अँधेरा चहुँ दिस फैला -
        जीवन की आपाधापी में -
   हो जाये मन नित ही मैला -
 समय का पहिया-
अनवरत  चले -
संग भाव भरी -
है विभावरी -
 भाव न समझूं -
  शब्द ही तोलूँ ---      
      राग ही लूँ -----  
        अनुराग ना जानूँ---
          नासमझी अपनी पहचानू -
             अवरोहन  का समय हुआ है ..
                वीतरागी सा मन हुआ है .........
                    खुले ह्रदय के द्वार सखी अब ..............


उतर रही है धीरे -धीरे 
स्निग्ध ज्योत्स्ना -
मन के तीरे -
लोभान की -
सुरभी सी -
प्रवाहित-
मन मंदिर में -

महके रातरानी सी -
सुवासित-
घर आँगन में ...!!
शीतलता का-
स्पर्श है ऐसा -
धुलता जाता -
कलुष ह्रदय का -
उजला सा दिन गर्मी देता -
पर शीतल है रात सुहानी ....!!
चन्दन का जैसे हो पानी .....!!!!


निशा की लोरी -
नैन बसे -
निशा की बतियाँ -
नीकी लगें- 
अब उठ जाऊं-
कुछ नया लिखूं .....!
मन कौतुहल शांत करूँ ........................!!
स्निग्ध चांदनी की लोरी सुन ..................!
शीतल मन विश्राम करूँ ....!!!!





33 comments:

  1. महके रातरानी सी -
    सुवासित घर आँगन में ...!!
    शीतलता का स्पर्श है ऐसा -
    धुलता जाता कलुष ह्रदय का -
    उजला सा दिन गर्मी देता -
    पर शीतल है रात सुहानी ....!!
    चन्दन का जैसे हो पानी .....!!!!

    प्रकृति चित्रण से ओत प्रोत रचना ....मन के भावों को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....आपका आभार

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  2. वाह
    सुन्दर प्रकृति चित्रण

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  3. जीवन की आपाधापी में -
    हो जाये मन नित ही मैला -
    समय का पहिया चलता है -
    संग भाव भरी है विभावरी -
    भाव न समझूं -
    शब्द ही तोलूँ -
    राग ही लूँ -
    अनुराग ना जानूँ -
    नासमझी अपनी पहचानू -
    खुले ह्रदय के द्वार सखी अब -
    ..
    ..
    पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ...आकर अच्छा लगा ..बल्कि कुछ क्षण का सुकून सा मिला !
    शायद आपके कविता कि शीतलता ही थी यह !!
    आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

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  4. मनोभावो का बेहद शानदार चित्रण्।

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  5. उतर रही है धीरे -धीरे
    स्निग्ध ज्योत्स्ना -
    मन के तीरे -
    लोभान की -
    सुरभी सी -
    प्रवाहित-
    मन मंदिर में -
    sach kahu to kavi pant ki rachnaaon si snigdhta mili hai

    ReplyDelete
  6. प्रकृति का है साथ निभाता -
    जाग रही है कृति भी मेरी -
    अकुलाहट बहार आने को -
    ढूंढे राहें नवल- नवेली -

    बहुत सुन्दर रचना ...

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  7. बहुत ही सुन्दर कविता।

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  8. आपकी बतिया बड़ी नीकी नीकी लगी ... एक कोमल सुन्दर शीतल सी कविता जिसकी स्निग्धता पर भाव फिसल रहे हैं... अति सुन्दर..

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  9. सुंदर चित्रण...... प्रकृति के रंगों से भरे भाव.....

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  10. बहुत ही प्यारी रचना!

    सादर

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  11. उतर रही है धीरे -धीरे
    स्निग्ध ज्योत्स्ना -
    मन के तीरे -
    लोभान की -
    सुरभी सी -
    प्रवाहित-
    मन मंदिर में -

    bahut pyare se shabd chune hain aapne, prakriti ko lori sunane ke liye..:)

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  12. शीतलता का-
    स्पर्श है ऐसा -
    धुलता जाता -
    कलुष ह्रदय का -
    उजला सा दिन गर्मी देता -
    पर शीतल है रात सुहानी ....!!
    चन्दन का जैसे हो पानी .....!!!!
    बहुत पावन सी रचना ! औरों के मन को भी निष्कलुष करती सी ! बहुत ही सुन्दर ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  13. बहुत सुन्दर रचना

    आपका स्वागत है
    "गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"


    आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!

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  14. bahut sundar....kamaal ka likhti hai aap.shabd kam pad jaate tarif karne ke liye.....ati sundar
    http://kavyana.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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  15. प्यारी और मनमोहक रचना.

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  16. उतर रही है धीरे -धीरे
    स्निग्ध ज्योत्स्ना -
    मन के तीरे -
    लोभान की -
    सुरभी सी -
    प्रवाहित-
    मन मंदिर में -...


    कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना
    के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  17. shanti aur thandak bhari rachana

    bhaut he sunder kavita

    ReplyDelete
  18. shanti aur thandak bhari rachana

    bhaut he sunder kavita

    ReplyDelete
  19. लगभग एक माह पश्चात आना हुआ . नयी रचनाएं पढ़ीं. सदा की तरह संगीत और प्रकृति मय. नए वर्ष के आगमन की अग्रिम बधाई . नवत्सर पर नयी रचना का इंतज़ार रहेगा .

    ReplyDelete
  20. निशा बांवरी ....!!
    थक कर पाखी भी सोये हैं -
    पेड़ों की झुरमुट में खोये हैं -
    पलक बंद पर मन जागा है -
    प्रकृति का साथ निभाती -
    जाग रही है कृति भी मेरी -
    अकुलाहट बहार आने को -
    ढूंढे राहें नवल- नवेली -


    bAHUT KHOOB...EK BEHAD KHOOBSOORAT AUR MEETHI SI LORI...BAHUT KHOOB.

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  21. वैसी ही सुन्दर,शांत शीतल कविता :)

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  22. बेहतरीन कविता पढ़वाने का आभार
    Vivek Jain vivj2000.blogspot.com

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  23. निशा की लोरी -
    नैन बसे -
    निशा की बतियाँ -
    नीकी लगें-
    अब उठ जाऊं-
    कुछ नया लिखूं ...

    बहुत मधुर ... प्राकृति की मनोरम सुंदरता समेटे ... भीने भीने एहसास समेटे ... लाजवाब रचना ...

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  24. आप सभी के आशीर्वचन मन स्निग्ध कर गए है .......
    उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभार ......!!

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  25. बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण..बहुत सुन्दर..नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!

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  26. Sheetal..snigdh..sukomal..sundar rachana...shubhkamna

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  27. अनुपम अनुपमा जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !
    प्रणाम !
    "स्निग्ध चांदनी की लोरी ........!!!" बहुत शांतिप्रदायक है… आभार !

    उतर रही है धीरे - धीरे
    स्निग्ध ज्योत्स्ना -
    मन के तीरे -
    लोभान की -
    सुरभि - सी -
    प्रवाहित-
    मन मंदिर में -

    महके रातरानी - सी -
    सुवासित-
    घर आँगन में ...!!
    शीतलता का-
    स्पर्श है ऐसा -
    धुलता जाता -
    कलुष ह्रदय का -


    बहुत सुंदर , भावप्रवण , कलात्मक रचना के लिए साधुवाद !

    नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं !

    साथ ही

    नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
    पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!

    चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
    संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!

    *नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  28. अनुपमा जी,

    पहली बार इस ब्लॉग पर आया हूँ, कोमल शब्दों को एक सूत्र में बंधे देखा है, पढ़ा है :-
    ...
    ......
    .........
    निशा की लोरी -
    नैन बसे -
    निशा की बतियाँ -
    नीकी लगें-
    अब उठ जाऊं-
    कुछ नया लिखूं .....!मन कौतुहल शांत करूँ ........................!!
    स्निग्ध चांदनी की लोरी सुन ..................!
    शीतल मन विश्राम करूँ ....!!!!

    बहुत अच्छी कविताएँ.....पढ़ना बाकी है अभी.....

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  29. बहुत बहुत आभार संगीता जी ...!!
    अपना स्नेह एवं आशीर्वाद बनाये रखें ...!!

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  30. थक कर पाखी भी सोये हैं -
    पेड़ों की झुरमुट में खोये हैं -
    पलक बंद पर मन जागा है -
    प्रकृति का साथ निभाती -
    जाग रही है कृति भी मेरी -
    अकुलाहट बहार आने को -
    ढूंढे राहें नवल- नवेली -


    बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
    सादर/सप्रेम
    सारिका मुकेश

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!