महुआ ले आई बीन के -
और तिल्ली धरी है कूट -
आज सजन की आवती -
सो कौन बात की छूट .......!!
अरी... गुड़ होतो तो
गुलगुला बनाती ....
तेल लै आती उधार...
मनो का करों जा बात की ..
मैं आटे से लाचार ........!!!!
आज मेरी दादी --''अम्मा ''--कहते थे हम सभी उनको, उनकी पुण्यतिथि है |ये बुन्देलखंडी कहावत, वो बहुत सारी चीज़ों में अपनी लाचारगी को छुपाते हुए, बहुत खुश होकर कहा करती थीं |उनकी लाचारगी अब समझ में आती है |कितना कुछ करना चाहते हैं हम और ज़िन्दगी के इस घेरे में बंध कर क्या - क्या कर पाते हैं ...!!
समय के साथसाथ पुरानी कहावते ,मान्यताएं सभी तो दम तोड़ रहीं हैं |उनकी दी हुई इस धरोहर को आप सभी तक पहुंचा कर उनको एक भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ |वो क्या गयीं मेरा बुन्देलखंडी भाषा से जैसे नाता ही टूट गया |
मेरा वो --''काय अम्मा ?''पूछना और उनका वो --''कछु नईं बेटा ....''कहना बहुत याद आ रहा है | आज उन्हींकी यादों के साथ पुनः जी ले रही हूँ अपना बचपन थोड़ी देर के लिए ....!!
मेरा वो --''काय अम्मा ?''पूछना और उनका वो --''कछु नईं बेटा ....''कहना बहुत याद आ रहा है | आज उन्हींकी यादों के साथ पुनः जी ले रही हूँ अपना बचपन थोड़ी देर के लिए ....!!
दादी माँ को याद किया ...अच्छा लगा ...विनम्र श्रद्धांजली
ReplyDeleteपुरानी कहावतें और दादी माँ। विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteदादी अम्मा को हमारी ओर से भी श्रद्धा सुमन |माँ को याद करना ईश्वर को याद करना है माँ ईश्वर का सजीव रूप होती है |
ReplyDeleteदादी अम्मा को नमन सहित श्रद्धा सुमन.
ReplyDeleteमाँ में ईश्वर के दर्शन होते हैं.माँ की याद करना ईश्वर को याद करना है.
"त्वमेव माता च पिता त्वमेव'
meri bhi shraddhanjli
ReplyDeleteअम्मा को मेरी तरफ से भी शत-शत नमन और श्रद्धांजलि ...!!
ReplyDeleteबचपन में गए ...महुआ बीना धूप में सुखाया ...और जब बरसात आई तो अम्मा का बताया व्यंजन भी खाया........कितने लम्बे सफ़र पे ले गयी ये अम्मा कि यादें ....
महुआ का जो फल होता है जिसको "कोलैया" कहते थे...उसकी सब्जी बहुत अच्छी बनती है आपने जरूर खायी होगी ?
अब तो बस यादें ही हैं..
बचपन की इन यादों में आप सभी का साथ था मेरे साथ ....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आप सभी का ...!!!
आनंद भाई ...कोलैया की सब्जी और बरी की कढ़ी.....खा कर तारो ताज़ा होकर लौटी हूँ ....!!!
बाबु ..तुम्हें पकड़ लाई हूँ अपने साथ ..
संगीता जी ..
प्रवीन जी ..
जय कृष्ण जी ..
राकेश जी ..
रश्मि प्रभा जी ..
सारा सच जी ..सच में ये सफ़र बहुत सुहाना रहा ....
अपार आशीष बरसा है अम्मा का ....हम सभी पर ...
एक बार पुनः ह्रदय से आभार ...!!!!
vibhinn lokjivan men kitani sachhayiyan hain unke ander ka ahsas jadon se kitani madhurata se bandha hain ,aapki kavita se jalakata hai .sunder prastuti,
ReplyDeleteabhar ji /
amma ko mera bhi pranam.Aap to khair bahut special thi unke lia.
ReplyDeleteलाजवाब, बहुत समय बाद इतनी भावपूर्ण आंचलिक पंक्तियां पढ़ने को मिलीं.
ReplyDeleteअपनी दादी को हम भी "अम्मा " या " बउवा" बुलाते थे ! इस माध्यम से बचपन की बहुत सी यादें पुनः ताज़ा हो गयी . आंचलिक भाषा की मधुरता इसमें थी की वो अपने परिवेश से आत्मसात थी . जीवन से बंधी हुई .
ReplyDelete''काय अम्मा ?''...सुनकर जबलपुर याद आ गया....
ReplyDeleteदादी जी को विनम्र श्रद्धांजली.