नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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13 December, 2012

कल्पना सी साकार हो रही ...!!




स्निग्ध उज्जवल चन्द्र  ललाट  पर .....
विस्तृत  सुमुखी सयानी चन्द्रिका ....भुवन  पर ....



निखरी है स्निग्धता ..
बिखरी है   चन्द्रिका .........



पावस ऋतु  की मधु बेला ...

  बरस रहा है मधुरस ...
सरस हुआ   है मन ..
बादल की घनन घनन ...
झींगुर की झनन  झनन ..
जैसे लगे बाज रही ... ...
  किंकनी  की खनन खनन ..
मन करता  मनन  मनन...
धन्य हो रहा जीवन प्रतिक्षण..



चांदनी स्निग्ध स्वर्ग सी ...
विभा बिखेर  रही ..
डाल-डाल झूल रही  ...
 बेलरिया फूल रही....
पात पात झूम रही ....
झूम झूम लूम रही ....
 प्रीति  मन चहक रही ..
रात रानी महक रही ....


शीतल  समीर साँय  साँय डोले ..
धरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
मन गुन गुन बोले .......
तन्द्रा तिर तिर जाए ........
 हाय...ऐसे में ..
कहीं निशा बीत न जाए ..

जीवन की जय करती ..
प्रकृति सजीव हो रही .
भर भर गागर ..
अद्भुत प्रेम उँडेल रही  ....

कल्पना सी साकार हो रही ...!!


 O Mother nature .. ....!!!
Can I see YOU with the eyes that I have ...?
Can I pray to YOU with the hands that I have ....?
Can I worship YOU with the mind that I have ...?
I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!
Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!



44 comments:

  1. वाह...
    बादल की घनन घनन ...
    झींगुर की झनन झनन ..
    जैसे लगे बाज रही ... ...
    किंकनी की खनन खनन ..
    मन करता मनन मनन...
    धन्य हो रहा जीवन प्रतिक्षण..
    यूँ लगा जैसे कोई तान छिड़ी हो..
    सुन्दर संगीतमय प्रस्तुति.

    सादर
    अनु

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  2. बहुत सुन्दर शब्द चित्र...

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  3. हृदय से आभार यशोदा जी ....

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  4. सचमुच आपके शब्दों में प्रकृति सजीव हो उठती है... बहुत सुन्दर लिखती हैं आप अनुपमा जी

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    Replies
    1. हृदय से आभार संध्या जी .....

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    2. उत्कृष्ट लिंक चयन .....और बीच मे अपनी रचना देख सुबह सुबह प्रभु प्रसाद मिल गया ....
      हृदय से आभार संध्या जी .....आपने वार्ता के लिए मेरी कृति चुनी ......

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  5. प्रकृति का मनमोहक चित्रण।

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  6. शीतल समीर साँय साँय डोले ..
    धरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
    मन गुन गुन बोले .......
    तन्द्रा तिर तिर जाए ........
    हाय...ऐसे में ..
    कहीं निशा बीत न जाए .

    खुबसूरत चित्रों संग मन के भावनाओं को उकेरती रचना

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  7. मन गुन गुन बोले .......
    तन्द्रा तिर तिर जाए ........
    ----------------------------
    बेहद ही मासूम और दिलकश रचना...

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  8. प्रकृति रूप को सँवार रही है, हम मुग्ध हो देखते है

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  9. संगीता की लहरियों पर तिरती बहुत भावपूर्ण कविता । आपका शब्द-संयोजन बहुत कोमल शब्दावली से

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  10. एक एक शब्द दिल में उतर आये. सुन्दर कृति.

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  11. प्रकृति को संगीतमय शब्दों में बांध दिया है ... बहुत सुंदर

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  12. प्रकृति वर्तमान है। जो इसका लुत्फ़ ले सके,जीवन धन्य है उसका।

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  13. बहुत ही सुन्दर काव्यात्मक चित्रण |आभार अनुपमा जी |

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  14. ....लगा जैसे प्रकृति- राग बज गया !

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    1. सुंदर टिप्पणी .....खुश कर दिया आपने ....आभार संतोष जी ...

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  15. बहुत उम्दा,प्रकृति का मनमोहक चित्रण ,,,, बधाई अनुपमा जी,,

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  16. बरसों बाद छायावाद के रंग में रंगी कोई रचना देखने को मिली.. साधुवाद!!

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  17. प्रकृति की छठा निराली है ...

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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  18. शीतल समीर साँय साँय डोले ..
    धरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
    मन गुन गुन बोले .......
    तन्द्रा तिर तिर जाए ........
    हाय...ऐसे में ..
    कहीं निशा बीत न जाए
    अनुपम भावों का संगम ... यह अभिव्‍यक्ति

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  19. बहुत ही सुन्दर चित्रों को लगाया है आपने जो साकार सी कल्पना को आकार दे रहा है .

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  20. ध्वनियों के साथ प्रकृति का अनूठा चित्रण ।

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  21. बहुत सुन्दर चित्र खींचा है आपने

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  22. खुबसूरत रचना..

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  23. संगीतमय शब्दों में प्रकृति का खुबसूरत अनूठा चित्रण.........

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  24. बेहद खूबसूरत, मन को प्रसन्न करती हुयी आपकी यह रचना .. शुभकामनायें अनुपम जी

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  25. बेहद खूबसूरत, मन को प्रसन्न करती हुयी आपकी यह रचना .. शुभकामनायें अनुपम जी ..

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  26. प्रकृति का बेहतरीन चित्रण. सुंदर मनमोहनी रचना.

    शुभकामनायें अनुपम जी.

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  27. कल्पना सी साकार हो रही...बहुत खूब , शानदार

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  28. कल्पना लोक को ले जाता एहसास ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  29. सहृदय गुणी जानो को आभार ...

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  30. बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण ..बहुत सुन्दर

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  31. भावपूर्ण रचना शीतल समीर साँय साँय डोले ..
    धरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
    मन गुन गुन बोले .......
    तन्द्रा तिर तिर जाए ........
    हाय...ऐसे में ..
    कहीं निशा बीत न जाए ..

    जीवन की जय करती ..
    प्रकृति सजीव हो रही .
    भर भर गागर ..
    अद्भुत प्रेम उँडेल रही ....

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    Replies
    1. ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है मधु जी ...

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  32. प्रीति मन चहक रही ..
    रात रानी महक रही ....
    bahut sundar sajiv chitran ....

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  33. प्रकृति का एक झोंका सा मेरे भीतर बह गया |- शब्द सक्रिय हैं

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  34. This is one of the most beautiful poems I have ever read. Too beautiful!

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  35. रात रानी की सुगंधि भरती, चांदनी यूँ ही झर झर झरती...सुंदर भाव ! प्रकृति की अनोखी छटा बिखरेती सुंदर कविता..आभार अनुपमा जी !

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!