देखती थी आइना फिर सोचती थी
कौन हूँ मैं ..?क्या करूँ मैं ....?
कुछ करूँ मैं...... कुछ बनूँ मैं .....!!
कुछ बने पहचान मेरी ......!
खिली -खिली मन की बगिया -
तितली बन जाऊं .....?
अद्भुत सुंदर जीवन ....!!!!
फिर भी चैन न पाऊँ ।
सांझ ढले मंदिर का दीपक
रोज़ जलाऊँ ...
प्रभु चरणों में शीश नवाऊँ -
चैन न पाऊँ...
कर्म रथ पर--
जीवन पथ पर --
कर्म निरंतर करते करते -
धन ये पाया --
देखा मैंने --- आकृती है साथ मेरे --
मेरी छाया.......!!
डोर थी एक मन में मेरे -
जोश था वो साथ देता ...
खींच लाइ मन को मेरे-
बन गयी फिर एक काया ...!!
आकृती से स्वकृति ---
फिर सुकृती ...
बन गयी पहचान मेरी ...!!!
देखती हूँ आइना अब सोचती हूँ ---
सुकृती ---पहचान मेरी !!!!!!!
सुकृती- पहचान मेरी !!!!!!!!!!!
कौन हूँ मैं ..?क्या करूँ मैं ....?
कुछ करूँ मैं...... कुछ बनूँ मैं .....!!
कुछ बने पहचान मेरी ......!
खिली -खिली मन की बगिया -
तितली बन जाऊं .....?
अद्भुत सुंदर जीवन ....!!!!
फिर भी चैन न पाऊँ ।
सांझ ढले मंदिर का दीपक
रोज़ जलाऊँ ...
प्रभु चरणों में शीश नवाऊँ -
चैन न पाऊँ...
कर्म रथ पर--
जीवन पथ पर --
कर्म निरंतर करते करते -
धन ये पाया --
देखा मैंने --- आकृती है साथ मेरे --
मेरी छाया.......!!
डोर थी एक मन में मेरे -
जोश था वो साथ देता ...
खींच लाइ मन को मेरे-
बन गयी फिर एक काया ...!!
आकृती से स्वकृति ---
फिर सुकृती ...
बन गयी पहचान मेरी ...!!!
देखती हूँ आइना अब सोचती हूँ ---
सुकृती ---पहचान मेरी !!!!!!!
सुकृती- पहचान मेरी !!!!!!!!!!!
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteस्वयं से संवाद - अच्छा है . स्वयं संवाद को विश्व संवाद बना लो . और मज़ा आएगा . साथ ही और बिम्बों का इस्तेमाल शायद अनुभवों की वैविध्यता को और भी ला सके . नहीं तो बिम्बों का गुंजन ज्यादा खुद को दोहराता हुआ सा लगने लगेगा . बस इतना ही
ReplyDeletemarvellous
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली कविता लिखी है आपने। बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर, सशक्त और सार्थक रचना...शुभकामनाएं।
ReplyDeleteस्वसंवाद...!!
ReplyDeleteखुबसूरत अभिव्यक्ति...
सादर...
डोर थी एक मन में मेरे -
ReplyDeleteजोश था वो साथ देता ...
खींच लाइ मन को मेरे-
बन गयी फिर एक काया ...!!
बेहतरीन।
सादर
आत्म मंथन स्वयं से संवाद अपनी पहचान की तलाश ..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !!!
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