नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

30 June, 2010

सागर सा विस्तार ...! -12


दूर -सुदूर ...क्षितिज तक व्यापक ---
सागर का विस्तार .....!
लहर -लहर लेहेरों में छिपाए -
अनगिनत मोतियों के हार ....!!

तट पर खड़ीखड़ी मैं देखूं -
उद्वेलित चंचल लहरें --
दौड़ -दौड़ कर भाग -भाग कर --
जीवट जीवन जी ही लें....!!!!!


दूर से दिखती हुई ..आती हुई .....
भर भर के उन्माद ..उत्साह ,उल्लास....
फिर आकर मेरे पास ....
ले जातींहैं ,

तलुए के नीचे की ,
वो ठंडी ठंडी रेत .......!
दे जाती हैं -उसी स्पर्श से -
जीवन जीने का सन्देश .....!!

देने की भावना से ओतप्रोत -
लेने की भावना से भी ओतप्रोत -
ले जाती हैं उसी स्पर्श से-
कटु अनुभवों का -
जीवन का एहसास --
दे जाती हैं उसी स्पर्श से -
उन्माद,उत्साह , उल्लास ....!!

रहे सदा ही प्रभु -कृपा --
यही रूप सागर का देखूं --
इतना ही बल देना प्रभु -
बल सबल बने --
क्रंदन न बने --
किसी की मुस्कान बने -
आंसू न बने ....
गुण सद्गुण बने अवगुण न बने --
जोश छल कर ..आक्रोश न बने ....
यही रूप सागर का देखूं --
देखूं सागर का विस्तार --
सागर का विस्तार -
मैं ले लूं सागर से विस्तार --
ले जाऊं मैं विस्तृत नभ से
विस्तृत सागर सा विस्तार ...!!!!!!
सा...गर...सा.....विस्तार..........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

16 comments:

  1. सुन्दर कविता . मात्रा कही कही गलत है सुधार लेवे.

    ReplyDelete
  2. achchha hai
    arganik bhagyoday .blogspot .com

    ReplyDelete
  3. ले जाऊं मैं विस्तृत नभ से
    विस्तृत सागर सा विस्तार ..

    bahut sundar rachna

    badhaii

    ReplyDelete
  4. आपके भावों के सागर में डूबने उतराने लगा है मन।
    ................
    अपने ब्लॉग पर 8-10 विजि़टर्स हमेशा ऑनलाइन पाएँ।

    ReplyDelete
  5. bahut sundar rachna likhi aapne.

    shukriya mere blog par aane k liye...jisse me aap tak pahuch payi.

    aabhar.

    ReplyDelete
  6. मैं ले लूं सागर से विस्तार --
    ले जाऊं मैं विस्तृत नभ से
    विस्तृत सागर सा विस्तार ...!!!!!


    behtareen.........badhiya!!

    ReplyDelete
  7. बहुत भाव पूर्ण रचना |मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
    आभार |
    आशा

    ReplyDelete
  8. बहुत बढ़िया।

    सादर

    ReplyDelete
  9. लहर -लहर लेहेरों में छिपाए -
    अनगिनत मोतियों के हार ....!!
    बहुत सुन्दर मोतियों समान शब्दों में गहन भावनाओं की लहर समेटे रचना....सादर!!!

    ReplyDelete
  10. पहले की तीन चार अंतरों तक जो लय है वह लय आखिरी अंतरे में नहीं दिखी, शब्द बहुत अच्छे हैं, कविता पढ़नी शुरू की तो बहुत अच्छा लग रहा था तीन चार अंतरों तक तो बस डूब ही गये थे परंतु उसके बाद ऐसा लगा कि किसी ने झकझोर दिया ।

    ReplyDelete
  11. अनुपम हैं भाव .... तीन बार पाठ किया ... प्रकृति को करीब और करीब ही होते पाया... आनंद आया.

    ReplyDelete
  12. बहुत ही सुन्दर रचना है...

    ReplyDelete
  13. अनमोल रचना....
    सादर बधाई....

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर भाव संयोजन।

    ReplyDelete
  15. रहे सदा ही प्रभु -कृपा --
    यही रूप सागर का देखूं --
    इतना ही बल देना प्रभु -
    बल सबल बने --
    क्रंदन न बने --
    किसी की मुस्कान बने -
    आंसू न बने ....
    गुण सद्गुण बने अवगुण न बने --
    जोश छल कर ..आक्रोश न बने ....
    यही रूप सागर का देखूं --
    देखूं सागर का विस्तार --
    सागर का विस्तार -
    मैं ले लूं सागर से विस्तार --
    ले जाऊं मैं विस्तृत नभ से
    विस्तृत सागर सा विस्तार ...!!!!!!
    सा...गर...सा.....विस्तार..........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

    ओह! अनुपम प्रस्तुति.
    संगीता जी की हलचल का नगीना.
    आपकी प्रभु भक्ति ने मेरे दिल है छीना.

    बहुत बहुत आभार अनुपमा जी.

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!