नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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18 February, 2011

32-दूर गगन में उड़ता पाखी


दूर गगन में उड़ता पाखी ,
अब क्यों उड़ता है एकाकी ,
मन-भाई उन्मुक्त उड़ान,
देखकर स्वर्णिम  विहान ,
 विस्तृत नभ मैं लूँ  पहचान ......!!

 पंख पसारे उड़ता जाता ,
सीमाहीन क्षितिज तक जाता ,
ऊपर से जग छोटा दिखता, 
खूब हवा से बातें करता ,
नापता है आसमान...!!

जिजीविषा खींचे ले जाती  ,
विजय गान करता रसपान,
गैरों की दुनियां में रहता ,
 जग दर्शन का मेला है ,
तो फिर क्यूँ आज अकेला है ...?

सुन ले पाखर प्रीत की पाती ,
अंत  नहीं है इस उड़ान का ,
वसुधा पर है आशियाना ,
देख विहंगम दृश्य धरा का ,
नीड़ से दूर चले मत जाना ...!!

क्यूँ खोया है सपनो में.......?
पंछी  वो तो है देस बेगाना ,
है तुझको वापस ही आना ,
नैन बिछाए राह तके   है 
छोटी सी पाखरिया  ....!!!!!

29 comments:

  1. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  2. बहुत सुंदर भाव ..एक पक्षी का क्या जीवन होता है ..खुला आकाश और स्वतंत्रता ...काश इंसान भी इस पक्षी से कुछ सीख पाता...सार्थक रचना के लिए बधाई

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  3. जिजीविषा खींचे ले जाती ,
    विजय गान करता रसपान,
    गैरों की दुनियां में रहता ,
    जग दर्शन का मेला है ,
    तो फिर क्यूँ आज अकेला है ...?
    ...
    किस पिपासा को लिए ओ बावरा
    badhiyaa

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  4. क्या खुब लिखा है आपने जीवन के रंगों का सही विवेचन....

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  5. बड़ी सुन्दर व अर्थभरी कविता।

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  6. वसुधा पर उतरा बसन्त!
    छा गये हृदय पर रंग अनन्त!
    बहुत सुन्दर रचना!

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  7. आपकी कविता बहुत सुन्दर है ... सहज सरल भाषा में आपने असरदार तरीके से पंछी के उड़न के बारे में कहा है ...

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  8. sunder rachna. bahut hi sahaj bhasha me apne bhavo ka prayog kiya hai.
    mere blog par tippani karne ke liye shukriya.

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  9. अनुपमा जी आपका ब्लाग पहली बार देखा । 'दूर गगन में उरता पाखी'बहुत सरस कविता है । लय का निर्वाह आपने बखूबी किया है । कभी समय मिले तो लघुकथा की वेब साइट http://www.laghukatha.com/
    भी देखिएगा । हाइकु लिखें तो हमारे हाइकु ब्लाग http://hindihaiku.wordpress.com/
    के लिए ज़रूर भेजिए ।
    रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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  10. सुंदर रचना ,उम्दा भाव

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  11. बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

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  12. अनुपमा जी...

    कविता सरस लगी है तेरी...
    भाव मुखर हैं, शब्द चुने से...
    हर इक पंक्ति. रही सधी सी...
    जीवन के हैं, रंग बुने से...

    सुन्दर भाव...

    दीपक....
    आज से में भी आपका फोल्लोवेर हुआ....

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  13. आपके विचार नितांत मौलिक व सुन्दर हैं.तुकबंदी के चक्कर में कहीं-कहीं खटकता है.जब तुक न बन रहे हों तो छंदमुक्त ,अतुकांत कविता भी रस भर सकती है !

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  14. अंत नहीं है इस उड़ान का ,
    वसुधा पर है आशियाना ,
    देख विहंगम दृश्य धरा का ,
    नीड़ से दूर चले मत जाना.

    प्रेरक और सुन्दर भाव हैं पढ़कर. मज़ा आ गया.

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  15. बहुत ही सुन्‍दर सहज शब्‍दों में बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  16. एक पक्षी ,खुला आकाश और स्वतंत्रता, बहुत सुन्दर रचना.

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  17. बहुत सुन्दर शब्द रचना,गहन भाव लिए हुए.
    सलाम

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  18. अंत नहीं है इस उड़ान का ,
    वसुधा पर है आशियाना ,
    देख विहंगम दृश्य धरा का ,
    नीड़ से दूर चले मत जाना ...

    बहुत खूबसूरत ... सरल, मीठी रचना .... बहुत कुछ कहती हुयी ... सन्देश देती हुयी .... लाजवाब ...

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  19. सुन्दर कविता
    शुभकामनाये

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  20. आप सभी का ह्रदय से आभार जिन्होंने आपना अमूल्य समय देकर मेरी रचना को पढ़ा और अपने विचार दिए .

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  21. भविष्य में भी यही स्नेह बनाये रखिये -
    सही या त्रुटी -सभी बातों का मार्गदर्शन करते रहिएगा .
    एक बार पुनः आभार.

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  22. बहुत ही सुन्दर रचना !

    देख विहंगम दृश्य धरा का ,नीड़ से दूर चले मत जाना ...!!
    क्यूँ खोया है सपनो में.......?
    पंछी वो तो है देस बेगाना ,है तुझको वापस ही आना ,नैन बिछाए राह तके है छोटी सी पाखरिया ....!!!!

    जीवन दर्शन को कितनी सहजता से कह दिया आपने ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !

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  23. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!