अब क्यों उड़ता है एकाकी ,
मन-भाई उन्मुक्त उड़ान,
देखकर स्वर्णिम विहान ,
विस्तृत नभ मैं लूँ पहचान ......!!
पंख पसारे उड़ता जाता ,
सीमाहीन क्षितिज तक जाता ,
ऊपर से जग छोटा दिखता,
खूब हवा से बातें करता ,
नापता है आसमान...!!
विजय गान करता रसपान,
गैरों की दुनियां में रहता ,
जग दर्शन का मेला है ,
तो फिर क्यूँ आज अकेला है ...?
वसुधा पर है आशियाना ,
देख विहंगम दृश्य धरा का ,
देख विहंगम दृश्य धरा का ,
नीड़ से दूर चले मत जाना ...!!
क्यूँ खोया है सपनो में.......?
पंछी वो तो है देस बेगाना ,
है तुझको वापस ही आना ,
नैन बिछाए राह तके है
छोटी सी पाखरिया ....!!!!!
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत सुंदर भाव ..एक पक्षी का क्या जीवन होता है ..खुला आकाश और स्वतंत्रता ...काश इंसान भी इस पक्षी से कुछ सीख पाता...सार्थक रचना के लिए बधाई
ReplyDeletesunder bhavpooran prastuti
ReplyDeletesundar rachna!
ReplyDeleteजिजीविषा खींचे ले जाती ,
ReplyDeleteविजय गान करता रसपान,
गैरों की दुनियां में रहता ,
जग दर्शन का मेला है ,
तो फिर क्यूँ आज अकेला है ...?
...
किस पिपासा को लिए ओ बावरा
badhiyaa
क्या खुब लिखा है आपने जीवन के रंगों का सही विवेचन....
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर व अर्थभरी कविता।
ReplyDeleteवसुधा पर उतरा बसन्त!
ReplyDeleteछा गये हृदय पर रंग अनन्त!
बहुत सुन्दर रचना!
आपकी कविता बहुत सुन्दर है ... सहज सरल भाषा में आपने असरदार तरीके से पंछी के उड़न के बारे में कहा है ...
ReplyDeletesunder rachna. bahut hi sahaj bhasha me apne bhavo ka prayog kiya hai.
ReplyDeletemere blog par tippani karne ke liye shukriya.
अनुपमा जी आपका ब्लाग पहली बार देखा । 'दूर गगन में उरता पाखी'बहुत सरस कविता है । लय का निर्वाह आपने बखूबी किया है । कभी समय मिले तो लघुकथा की वेब साइट http://www.laghukatha.com/
ReplyDeleteभी देखिएगा । हाइकु लिखें तो हमारे हाइकु ब्लाग http://hindihaiku.wordpress.com/
के लिए ज़रूर भेजिए ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
सुंदर रचना ,उम्दा भाव
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता.
ReplyDeleteसादर
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वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी जी के ब्लॉग पर आज मेरा लेख
jeeven ke rango ka pyara rang bikhera hai aapne..:)
ReplyDeleteबेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteअनुपमा जी...
ReplyDeleteकविता सरस लगी है तेरी...
भाव मुखर हैं, शब्द चुने से...
हर इक पंक्ति. रही सधी सी...
जीवन के हैं, रंग बुने से...
सुन्दर भाव...
दीपक....
आज से में भी आपका फोल्लोवेर हुआ....
आपके विचार नितांत मौलिक व सुन्दर हैं.तुकबंदी के चक्कर में कहीं-कहीं खटकता है.जब तुक न बन रहे हों तो छंदमुक्त ,अतुकांत कविता भी रस भर सकती है !
ReplyDeleteअंत नहीं है इस उड़ान का ,
ReplyDeleteवसुधा पर है आशियाना ,
देख विहंगम दृश्य धरा का ,
नीड़ से दूर चले मत जाना.
प्रेरक और सुन्दर भाव हैं पढ़कर. मज़ा आ गया.
बहुत ही सुन्दर सहज शब्दों में बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअनुपमा जी, बहुत सुंदर हैं आपके विचार। बधाई।
ReplyDelete---------
शिकार: कहानी और संभावनाएं।
ज्योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।
एक पक्षी ,खुला आकाश और स्वतंत्रता, बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द रचना,गहन भाव लिए हुए.
ReplyDeleteसलाम
अंत नहीं है इस उड़ान का ,
ReplyDeleteवसुधा पर है आशियाना ,
देख विहंगम दृश्य धरा का ,
नीड़ से दूर चले मत जाना ...
बहुत खूबसूरत ... सरल, मीठी रचना .... बहुत कुछ कहती हुयी ... सन्देश देती हुयी .... लाजवाब ...
सुन्दर कविता
ReplyDeleteशुभकामनाये
आप सभी का ह्रदय से आभार जिन्होंने आपना अमूल्य समय देकर मेरी रचना को पढ़ा और अपने विचार दिए .
ReplyDeleteभविष्य में भी यही स्नेह बनाये रखिये -
ReplyDeleteसही या त्रुटी -सभी बातों का मार्गदर्शन करते रहिएगा .
एक बार पुनः आभार.
बहुत ही सुन्दर रचना !
ReplyDeleteदेख विहंगम दृश्य धरा का ,नीड़ से दूर चले मत जाना ...!!
क्यूँ खोया है सपनो में.......?
पंछी वो तो है देस बेगाना ,है तुझको वापस ही आना ,नैन बिछाए राह तके है छोटी सी पाखरिया ....!!!!
जीवन दर्शन को कितनी सहजता से कह दिया आपने ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ
Bahut abhar Shastri ji .. ...!!
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