क्या -क्या भर लूँ
मन की इस झोली में ....!!
कैसे समेट लूँ सब कुछ -
अपनी छोटी सी मुठ्ठी में ....!!
जीवन के बसंत का छाया
आनंद ही आनंद है .
जैसे खिले -खिले फूल सा
खिला -खिला मन -
और खिलखिलाती हैं
खुशियाँ संग -संग.
उस दिन असंख्य कुसुमों की सुरभि से
भर उठी थी हथेली मेरी ...!
सुरभिमय प्राणवायु ले
महक उठा था
कण-कण मन का !
सुरभिमय प्राणवायु ले
महक उठा था
कण-कण मन का !
वही एक सूखे हुए फूल से
आज भी महकता है
खुशबू सा बिखेरता हुआ ....
यादों का फिर बहना .........!!
और साथ ही महकता है ,
खुशबू सा बिखेरता हुआ ....
यादों का फिर बहना .........!!
और साथ ही महकता है ,
मेरी प्रिय किताब का ये पन्ना ...!!
कितना विस्तार दिया तुमने -
समुद्र जैसा अथाह -
आत्मसात कर लिया है मैंने -
समेट लिया है...
अपने आप को
उन दृश्यों को नयनों में .-
और मूँद कर पलकों को -.
अब समेट लिया हैअपने आप को
कल -कल करती
बहती हुई
सुरभित नदिया ..!
उन यादों से अब
बह निकले हैं भाव मेरे -....!
झरने लगे हैं ...!
निरंतर बहते हुए ...!!
आगे बहती हूँ
बहती ही रहती हूँ --
हैं साथ वही यादें ...!!!
सुरभित नदिया ..!
उन यादों से अब
बह निकले हैं भाव मेरे -....!
झरने लगे हैं ...!
निरंतर बहते हुए ...!!
आगे बहती हूँ
बहती ही रहती हूँ --
हैं साथ वही यादें ...!!!
झरती हूँ झर-झर सी -
झरने जैसी ..!!
फिर और सिमटते हुए -
बन जाती हूँ -
बन जाती हूँ -
पतली सी धार-
और सूक्ष्म
एक बूँद ...!!
उलटी गिनती ...?
कितनी सुखद है ये अनुभूति
इतने अपार विस्तार को
सूक्ष्म किया है मैंने ... ..!!
अब तुम
फिर करो--
नया विस्तार ....
और फिर....
विस्तार समेटती हूँ मैं . .......!!
उलटी गिनती ...?
कितनी सुखद है ये अनुभूति
इतने अपार विस्तार को
सूक्ष्म किया है मैंने ... ..!!
मूँद कर पलकों को ...
बुने हुए अतीत के ख्वाब -
जी लिए हैं फिर से -.
अपनी इस छोटी सी कृति में ...अब तुम
फिर करो--
नया विस्तार ....
और फिर....
विस्तार समेटती हूँ मैं . .......!!
तुम
ReplyDeleteफिर करो--
नया विस्तार ....
और फिर....
विस्तार समेटती हूँ मैं!!
बहुत खूब लिखा है
sundar rachna ke saath sundar abhivyakti,ke liye bahut bahut aabhaar
ReplyDeleteकितना विस्तार दिया तुमने -
ReplyDeleteसमुद्र जैसा अथाह -
आत्मसात कर लिया है मैंने -
समेट लिया है...
उन दृश्यों को नयनों में .-
और मूँद कर पलकों को -.
अब समेट लिया है
अपने आप को
बन गयी हूँ मैं ..
कल -कल करती
बहती हुई
सुरभित नदिया ..!
उन यादों से अब
बह निकले हैं भाव मेरे ....!ek awiral bahti nadi se khyaal
बन गयी हूँ मैं ..
ReplyDeleteकल -कल करती
बहती हुई
सुरभित नदिया ..!
उन यादों से अब
बह निकले हैं भाव मेरे
वाह वाह,और इन्ही भावों से प्रस्फुटित हुई इतनी सुन्दर कविता .बधाई..
Excellent kavita anupama, vistar same leti hoo main touched my heart and soul. Beautiful rachna.
ReplyDeleteजीवन के बसंत का छाया
ReplyDeleteआनंद ही आनंद है .
जैसे खिले -खिले फूल सा
खिला -खिला मन -
और खिलखिलाती हैं
खुशियाँ संग -संग.
inn panktiyon ko main facebook pe status bana raha hoon..:)
bahut khub!!
अब तुम
ReplyDeleteफिर करो--
नया विस्तार ....
और फिर....
विस्तार समेटती हूँ मैं . .......!!
बहुत ही सुन्दर ।
ट्यूलिप के फूलों सी आपकी रचना अप्रतिम है...भाव और शब्द दोनों अद्भुत बुने हैं आपने...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूब
ReplyDeleteसुन्दर भावमयी रचना
बुने हुए अतीत के ख्वाब -
ReplyDeleteजी लिए हैं फिर से -.
अपनी इस छोटी सी कृति में ...
bahut sundarta ke saath aapne apne ateet ko jee liya hai....
तुम
ReplyDeleteफिर करो--
नया विस्तार ....
और फिर....
विस्तार समेटती हूँ मैं!!
बहुत खूब
शब्दों में समेटी भावनाओं की बानगी है आपकी रचना
न गयी हूँ मैं ..
ReplyDeleteकल -कल करती
बहती हुई
सुरभित नदिया ..!
उन यादों से अब
बह निकले हैं भाव मेरे
वाह वाह,और इन्ही भावों से प्रस्फुटित हुई इतनी सुन्दर कविता .बधाई..
समेटने के प्रयास में कितना कुछ पुनः फैल जाता है।
ReplyDeleteउमंग्पूर्ण व खुशी प्रदान करती अभिव्यक्ति ! मेरे ब्लोग पर भी आएं !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बेहतरीन!
ReplyDeleteअसंख्य फूल हथेली पर, हथेली से पन्ना , समुद्र ,फिर नदिया,झरना ,पतली धार, फिर बूंद पलकों में ....यादों का एक रास्ता दिखता है !! बहुत ही सुंदर लिखा है !बहुत अच्छा लगा पढ़कर !
ReplyDeletebahut sundar rachnaa hai... aur bhaav bhi us nadiya kee tarah bah nikle ... kal aapki yah rachnaa charchamanch par hogi... aapkaa aabhaar ..
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
तुम फिर करो नया विस्तार
ReplyDeleteऔर विस्तार समेटती मैं ...
बहुत सुन्दर एहसास ...
चित्रों ने मन मोह लिया !
फिर और सिमटते हुए -
ReplyDeleteबन जाती हूँ -
पतली सी धार-
और सूक्ष्म
एक बूँद ...!!
उलटी गिनती ...?
कितनी सुखद है ये अनुभूति
इतने अपार विस्तार को
सूक्ष्म किया है मैंने ... ..!!
बस जब विस्तार को समेट कर सूक्ष्म किया जाता है उसके न्यूनतम स्तर पर तभी सार्थक होता है जीवन्……………बेहद गहन भावो की उम्दा प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर और भाव प्रवण रचना
ReplyDeleteVery beautiful and touching creation !
ReplyDeleteआदमी जिजीविषा से भरपूर एक बहुत ही खूबसूरत रचना ! अति सुन्दर !
ReplyDeleteइतनी सुन्दर कविता...बहुत खूब... बहुत ही सुंदर ..
ReplyDeleteबन गयी हूँ मैं ..
ReplyDeleteकल -कल करती
बहती हुई
सुरभित नदिया ..!
उन यादों से अब
बह निकले हैं भाव मेरे
सुन्दर कविता .बधाई..
बहुत सुन्दरता से भावो को व्यक्त किया है
ReplyDeleteबन गयी हूँ मैं
ReplyDeleteकल-कल करती
बहती हुई
सुरभित नदिया !
उन यादों से अब
बह निकले हैं भाव मेरे
भावों का प्रवाह निर्झर सा अच्छा लग रहा है।
विभ्रम की घडिया अतीत हुई
ReplyDeleteकलरव इस सांध्य मलय का
मलयानिल मकरंद घोले
अब पट रजनी के भाते है
प्रेम- सुतीर्थ स्नान सुहाता है
प्राण पपीहा की सरस ध्वनि
जीवन वर्त्ति सा भाता है ..
अद्भुत सौन्दर्य वाली रचना . मन आल्हादित हुआ .
bahut dino ke baad koi aisi kaviat dekhio , jiska title aur photo aur kavita , teeno hi ek dusare ke saath nyaay karte hai , aapko badhayi ..
ReplyDelete-----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
दिल छू लेने लायक रचना ....शुभकामनायें आपको
ReplyDeleteआप सभी ने मेरी कविता को पसंद किया -विस्तार समझा और पसंद भी किया -मेरे लिए सौभाग्य की बात है .आपका बहुत बहुत आभार .साथ ही इश्वर का भी क्योंकि उसकी मर्ज़ी से ही अब कुछ -कुछ संभव सा होता प्रतीत होने तो लगा है ....!!कितना अंततः होता है ये भी उसकी मर्ज़ी पर ही है .!
ReplyDeleteआप साथ देंगे तो हरी दर्शन का मार्ग साफ़ दिखता जाएगा .पुनः बहुत बहुत धन्यवाद.
आज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण दिन "अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस" के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को "सुगना फाऊंडेशन जोधपुर "और "आज का आगरा" की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ.. आपका आपना