जीवन का भार ...अपने अपने हिस्से का ...सभी वहन करते हैं ...!!संवेदनशील मन संवेदना से जुड़ा ही रहता है .....कभी लगता है ......जीवन में दुखों का अंत ही नहीं .........!!फिर भी मन के अन्दर एक ज्वलंत जिजीविषा ऐसी हो ,जो बुझने नहीं देती हो मन को तो .......?तो ......बहती है सरिता... मन की सरिता ....''अनुभूति ''लिए ....
पता नहीं ये भी क्या प्रारब्ध रहा ...दोनों माताओं को ...माँ को ,सासू माँ को ..अपने हाथों नहला धुला कर तैयार कर ....अंतिम यात्रा के लिए भेजा ....अपनी माँ को उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक हम बहनों ने कन्धा भी दिया ...मेरे श्वसुर हिंदी के प्रकांड विद्वान थे ....बहुत दुलार मिला उनका भी ...उन्हीं के आशीर्वाद से शायद, हिंदी मेरी इतनी प्रिय हो गयी है ...उन्होंने हिंदी की कई पुस्तकें लिखीं ....आज उन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ....इतना भावविभोर है मेरा मन ...! पूरे परिवार में हर्ष की लहर है ...''पुत्रवधू पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ा रही है ''...!!....मेरे लिए मेरा कविता संग्रह ''अनुभूति ''बहुत बड़ी बात है !!किसी भी पुरस्कार से बड़ी .....
अनुभूति लिए आज जीवन के एक पड़ाव पर खड़ी हूँ मैं ...!!
मेरी अनुभूति के प्रेरक .......जो मेरी प्राणवायु हैं ....मेरे पिता (ऊपर फोटो में ,नीली टाई में )जो मेरे साथ रहते हैं ....हर पल जिनका आशीर्वाद मुझे मिलता ही रहता है ... शायद इसलिए कायम है कुछ बचपना अभी भी मुझमे ......!!मेरे पति ...कर्मठ,शांत ...धीर गंभीर ,बुद्धिजीवी ,मेरी हर कविता में साझेदारी है उनकी ...मेरी हर कविता के प्रथम श्रोता ,... मुस्कुराते मूक प्रशंसक ...प्रथम आलोचक भी ....!!....बिन मांगे ही जिन्होंने सब कुछ दिया ...समय से हर भाव मेरा पल्लवित किया ...!!मेरे दोनों पुत्र .....अभिषेक और अधीश ....जिनकी माँ-माँ सुनने पर आज भी मैं सारी दुनिया भूल जाती हूँ ......!!भरा-पूरा बहुत बड़ा परिवार ....किसी की दीदी ...किसी की मौसी,बुआ ...भाभी,मामी,चाची ताई जी .....रिश्तों में कोई कमी नहीं .....और फिर कुछ ऐसे दोस्त ..मेरे पिता के पीछे बैठी ,मेरी उपस्थित प्रिय सखियाँ ....बहुत हैं जो उपस्थित नहीं भी हो सके ......जो शायद मुझे मुझसे ज्यादा जानते हैं ...कैसे समेटूं अपने भाव .....इतना बिखराव ....बहुत कुछ याद करने का ...लिखने का मन है ....शायद एक ग्रन्थ ही भर जाये
........ह्रदय से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ श्री डी.पी.त्रिपाठी जी ,(विचार न्यास के अध्यक्ष और ''थिंक इण्डिया '' मैगज़ीन के एडिटर इन चीफ तथा N.C.P के चीफ स्पोक्सपर्सन )का ,अपनी इतनी व्यस्तता के बावजूद मुझे आशीर्वाद देने वहां पधारे ...!!श्रीमती एवं श्री राकेश त्रिपाठी जी का ,श्री निहाल अहमद जी का .......देवेश त्रिपाठी जी का ....जिन्होंने अपने स्नेह से अनुभूति को अभिभूत किया ....!!
''एक सांस मेरी ''इसका विमोचन भी उतना ही महत्व पूर्ण है .....!!रश्मि दी के साथ साथ यशवंत जी का भी आभार इसके संपादन में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए ...!!इसमें गुंजन अग्रवाल ,एम्.वर्मा जी,प्रियंका राठौर,डॉक्टर राजेंद्र तेला निरंतर,अंजना दयाल,नीलिमा शर्मा और दुलीचंद कश्यप जी की कविताओं के साथ मेरी भी कविताओं का संग्रह है ...!!
मैं रश्मि दी और अरुण जी को तहे दिल से आभार देना चाहती हूँ ......उन्हीं के सहयोग और सौहाद्र से ही यहाँ तक की यात्रा संभव हो सकी ....!!...!!सलिल जी आपका आभार ''अनुभूति '' को अपने शब्दों में वहां उपस्थित लोगों तक पहुँचाने के लिए...!!मेरे स्वरों की अनुभूति इस अनुभूति में छुपी ही है ..!आपका आभार आपने मुझे गीता पाठ करने का अवसर दिया .... उन छुपे हुए स्वरों को मुखरित होने का अवसर दिया ....!!सभी ब्लोगेर मित्रों का आभार जिनसे पहली बार वहां मुलाकात हुई पर ऐसा लगा ही नहीं जैसे पहली बार मिले .....हरकीरत हीर जी ,वंदना गुप्ता जी,अनु (अंजू ) चौधरी जी ,गुंजन,सुनीता शानू जी ,शिवम् मिश्र जी ,मुकेश सिन्हा जी ,अभिषेक,आनंद द्विवेदी जी ,महफूज़ जी ,एम् .वर्मा जी ,अविनाश वाचस्पति जी ,और भी बहुत सारे ब्लोगेर मित्र जो वहां उपस्थित थे ।सभी से मुलाकात हुई ।मिलकर बहुत अच्छा लगा ..!
इमरोज़ जी से भी मिलाकत हुई |कुछ लोग इस धरा के लगते ही नहीं हैं ...!!ऐसी ही शख्सियत है उनकी ...!!निश्छल ...कोमल ...प्रेम ही प्रेम ....
आनंद भाई आभार ...इस तस्वीर के लिए ...!!
पांच मार्च ...आज मेरी माँ की पुण्य तिथि है । मेरी रचना मेरी दोनों माताओं ...मेरी माँ और सासू माँ दोनों को समर्पित हैं ...क्योंकि दोनों ही बहुत हंसमुख थीं ....!!और दोनों ने रिश्तों को भरपूर जिया ...!!बहुत मृदुभाषी थीं .....कड़वा बोलना जानती ही नहीं थीं ...मुझे याद है ...कैसे हंसकर बहुत सारी कड़वी बातें जैसे पी जाया करती थीं ..शायद उन्हें कुछ बुरा लगता ही नहीं था ......मैं ताज्जुब करती थी सदा उनकी सहनशीलता पर ....उन्हीं दोनों की याद में समर्पित है आज की रचना ....कई बार उनकी याद करते हुए मैं सोचती हूँ ...
हंसकर जीवन कैसे जिया ....?
शब्द शब्द में ....
भाव का जब प्रादुर्भाव हुआ .......
तब शब्दों को नहीं ...
भावों को ही लिया ...
संस्कारों में ...जीवन में ...
अभिव्यक्ति में ....
भावों को ही जिया ...
चुनाव था ,है ,रहेगा सर्वथा यही एक मेरा ...
इस जीवन पथ पर ...
शब्द शब्द ...भाव ही बने ....
शब्द शूल नहीं ...फूल ही बने ...!!
जब शूल नहीं ...
फूल का चुनाव किया ..
जैसे भी हो ...
मन को क्रोध से , विषय से ...
विषाद से विमुख किया ...!!
कहे गए शब्दों से भी ...
खोज-खोज...ढूंढ-ढूंढ .. ,
सुंदर सुसंस्कृत भावों को ही लिया ...
उन्हीं को जिया ...
प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
जब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया ...!!!!!
इस को पढ़ते ही .... .... दोनों माताओं के आशीष का स्पर्श अनुभव कर सकती हूँ ......!!बहुत पहले की लिखी रचना है ये ....जब भी मन उदास होता है इसे पढ़ लेती हूँ .......अपने आप उदासी दूर हो जाती है ...!!
लिखने वाला कुछ भी लिखे ....पढने वाला ही कृति को जीवित करता है ...!!...तो मेरे लिए आप सब के भाव ,आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है ...!!...!!अब तक के .....इस छोटे से लेखन जीवन में त्रुटियाँ अवश्य की होंगी ....जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ....!!आभार पुनः आप सभी का ....
अनुभूति के इस पड़ाव से अत्यंत संतुष्ट ...अगले पड़ाव के लिए ...यात्रा जारी है .............................
पता नहीं ये भी क्या प्रारब्ध रहा ...दोनों माताओं को ...माँ को ,सासू माँ को ..अपने हाथों नहला धुला कर तैयार कर ....अंतिम यात्रा के लिए भेजा ....अपनी माँ को उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक हम बहनों ने कन्धा भी दिया ...मेरे श्वसुर हिंदी के प्रकांड विद्वान थे ....बहुत दुलार मिला उनका भी ...उन्हीं के आशीर्वाद से शायद, हिंदी मेरी इतनी प्रिय हो गयी है ...उन्होंने हिंदी की कई पुस्तकें लिखीं ....आज उन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ....इतना भावविभोर है मेरा मन ...! पूरे परिवार में हर्ष की लहर है ...''पुत्रवधू पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ा रही है ''...!!....मेरे लिए मेरा कविता संग्रह ''अनुभूति ''बहुत बड़ी बात है !!किसी भी पुरस्कार से बड़ी .....
अनुभूति लिए आज जीवन के एक पड़ाव पर खड़ी हूँ मैं ...!!
मेरी अनुभूति के प्रेरक .......जो मेरी प्राणवायु हैं ....मेरे पिता (ऊपर फोटो में ,नीली टाई में )जो मेरे साथ रहते हैं ....हर पल जिनका आशीर्वाद मुझे मिलता ही रहता है ... शायद इसलिए कायम है कुछ बचपना अभी भी मुझमे ......!!मेरे पति ...कर्मठ,शांत ...धीर गंभीर ,बुद्धिजीवी ,मेरी हर कविता में साझेदारी है उनकी ...मेरी हर कविता के प्रथम श्रोता ,... मुस्कुराते मूक प्रशंसक ...प्रथम आलोचक भी ....!!....बिन मांगे ही जिन्होंने सब कुछ दिया ...समय से हर भाव मेरा पल्लवित किया ...!!मेरे दोनों पुत्र .....अभिषेक और अधीश ....जिनकी माँ-माँ सुनने पर आज भी मैं सारी दुनिया भूल जाती हूँ ......!!भरा-पूरा बहुत बड़ा परिवार ....किसी की दीदी ...किसी की मौसी,बुआ ...भाभी,मामी,चाची ताई जी .....रिश्तों में कोई कमी नहीं .....और फिर कुछ ऐसे दोस्त ..मेरे पिता के पीछे बैठी ,मेरी उपस्थित प्रिय सखियाँ ....बहुत हैं जो उपस्थित नहीं भी हो सके ......जो शायद मुझे मुझसे ज्यादा जानते हैं ...कैसे समेटूं अपने भाव .....इतना बिखराव ....बहुत कुछ याद करने का ...लिखने का मन है ....शायद एक ग्रन्थ ही भर जाये
........ह्रदय से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ श्री डी.पी.त्रिपाठी जी ,(विचार न्यास के अध्यक्ष और ''थिंक इण्डिया '' मैगज़ीन के एडिटर इन चीफ तथा N.C.P के चीफ स्पोक्सपर्सन )का ,अपनी इतनी व्यस्तता के बावजूद मुझे आशीर्वाद देने वहां पधारे ...!!श्रीमती एवं श्री राकेश त्रिपाठी जी का ,श्री निहाल अहमद जी का .......देवेश त्रिपाठी जी का ....जिन्होंने अपने स्नेह से अनुभूति को अभिभूत किया ....!!
''एक सांस मेरी ''इसका विमोचन भी उतना ही महत्व पूर्ण है .....!!रश्मि दी के साथ साथ यशवंत जी का भी आभार इसके संपादन में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए ...!!इसमें गुंजन अग्रवाल ,एम्.वर्मा जी,प्रियंका राठौर,डॉक्टर राजेंद्र तेला निरंतर,अंजना दयाल,नीलिमा शर्मा और दुलीचंद कश्यप जी की कविताओं के साथ मेरी भी कविताओं का संग्रह है ...!!
मैं रश्मि दी और अरुण जी को तहे दिल से आभार देना चाहती हूँ ......उन्हीं के सहयोग और सौहाद्र से ही यहाँ तक की यात्रा संभव हो सकी ....!!...!!सलिल जी आपका आभार ''अनुभूति '' को अपने शब्दों में वहां उपस्थित लोगों तक पहुँचाने के लिए...!!मेरे स्वरों की अनुभूति इस अनुभूति में छुपी ही है ..!आपका आभार आपने मुझे गीता पाठ करने का अवसर दिया .... उन छुपे हुए स्वरों को मुखरित होने का अवसर दिया ....!!सभी ब्लोगेर मित्रों का आभार जिनसे पहली बार वहां मुलाकात हुई पर ऐसा लगा ही नहीं जैसे पहली बार मिले .....हरकीरत हीर जी ,वंदना गुप्ता जी,अनु (अंजू ) चौधरी जी ,गुंजन,सुनीता शानू जी ,शिवम् मिश्र जी ,मुकेश सिन्हा जी ,अभिषेक,आनंद द्विवेदी जी ,महफूज़ जी ,एम् .वर्मा जी ,अविनाश वाचस्पति जी ,और भी बहुत सारे ब्लोगेर मित्र जो वहां उपस्थित थे ।सभी से मुलाकात हुई ।मिलकर बहुत अच्छा लगा ..!
इमरोज़ जी से भी मिलाकत हुई |कुछ लोग इस धरा के लगते ही नहीं हैं ...!!ऐसी ही शख्सियत है उनकी ...!!निश्छल ...कोमल ...प्रेम ही प्रेम ....
आनंद भाई आभार ...इस तस्वीर के लिए ...!!
पांच मार्च ...आज मेरी माँ की पुण्य तिथि है । मेरी रचना मेरी दोनों माताओं ...मेरी माँ और सासू माँ दोनों को समर्पित हैं ...क्योंकि दोनों ही बहुत हंसमुख थीं ....!!और दोनों ने रिश्तों को भरपूर जिया ...!!बहुत मृदुभाषी थीं .....कड़वा बोलना जानती ही नहीं थीं ...मुझे याद है ...कैसे हंसकर बहुत सारी कड़वी बातें जैसे पी जाया करती थीं ..शायद उन्हें कुछ बुरा लगता ही नहीं था ......मैं ताज्जुब करती थी सदा उनकी सहनशीलता पर ....उन्हीं दोनों की याद में समर्पित है आज की रचना ....कई बार उनकी याद करते हुए मैं सोचती हूँ ...
हंसकर जीवन कैसे जिया ....?
शब्द शब्द में ....
भाव का जब प्रादुर्भाव हुआ .......
तब शब्दों को नहीं ...
भावों को ही लिया ...
संस्कारों में ...जीवन में ...
अभिव्यक्ति में ....
भावों को ही जिया ...
चुनाव था ,है ,रहेगा सर्वथा यही एक मेरा ...
इस जीवन पथ पर ...
शब्द शब्द ...भाव ही बने ....
शब्द शूल नहीं ...फूल ही बने ...!!
जब शूल नहीं ...
फूल का चुनाव किया ..
जैसे भी हो ...
मन को क्रोध से , विषय से ...
विषाद से विमुख किया ...!!
कहे गए शब्दों से भी ...
खोज-खोज...ढूंढ-ढूंढ .. ,
सुंदर सुसंस्कृत भावों को ही लिया ...
उन्हीं को जिया ...
प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
जब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया ...!!!!!
इस को पढ़ते ही .... .... दोनों माताओं के आशीष का स्पर्श अनुभव कर सकती हूँ ......!!बहुत पहले की लिखी रचना है ये ....जब भी मन उदास होता है इसे पढ़ लेती हूँ .......अपने आप उदासी दूर हो जाती है ...!!
लिखने वाला कुछ भी लिखे ....पढने वाला ही कृति को जीवित करता है ...!!...तो मेरे लिए आप सब के भाव ,आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है ...!!...!!अब तक के .....इस छोटे से लेखन जीवन में त्रुटियाँ अवश्य की होंगी ....जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ....!!आभार पुनः आप सभी का ....
अनुभूति के इस पड़ाव से अत्यंत संतुष्ट ...अगले पड़ाव के लिए ...यात्रा जारी है .............................
बहुत सुन्दर,
ReplyDeleteचित्रावली और रचना भी!
होली की शुभकामनाएँ!
संस्कार रूपी पुष्प की माला पिरो लाई है आप . पढ़ कर मन भाव विभोर हुआ . कुल परंपरा को आगे बढाने वाली पुत्र बधू वाली बात मन को छु गई . धन्य है कुल . "अनुभूति" की सुगंध कस्तूरी की तरह फैले ऐसे हमारी कामना है .शुभात्मा माताजी की स्मृतियों को नमन .
ReplyDeleteप्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
ReplyDeleteजब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सादर
अपने हिस्से की धरती, अपने हिस्से का आकाश, बस समय हँस कर बिता दिया जाये।
ReplyDeleteखोज-खोज...ढूंढ-ढूंढ .. ,
ReplyDeleteसुंदर सुसंस्कृत भावों को ही लिया ...
उन्हीं को जिया ...
प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
सुंदर अभिव्यक्ति ! बेहतरीन प्रस्तुति ! सजीव चित्रण........
स: परिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं........
बहुत प्यारा वर्णन , लगा एक एक लाइन जैसे दिल से निकली हो ! बहुत कुछ जाना आपके बारे में ....
ReplyDeleteआभार और बधाई !
आभार ||
ReplyDeleteदिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
परंपरा को आपने आगे बढ़ाया ...बधाई ... बहुत सुंदर चित्रों सहित रिपोर्ट ॥हर शब्द जैसे हृदय से निकाला हो ... कविता सच ही आशाओं को बढ़ाती हुई ... शब्द को न ले कर भाव को लें तो जीवन सरल हो जाए ...
ReplyDeleteअनुभूति का पड़ाव नहीं है ये बल्कि सुन्दर शुरुआत है ..आपको बहुत..बहुत...बहुत..शुभकामनाये और विश्वास कि आगे कई सुन्दर पड़ाव आपके लिए पलकें बिछाए होंगे..
ReplyDeleteअभी तो शुरुआत है ... अब भावों की यात्रा का शंखनाद हो चुका है , बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteआजका दिन मेरे लिए भी ख़ास है ... आज मेरी माँ का जन्मदिन है ... आपका बहुत बहुत आभार दी !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - मिठाई के नाम पर जहर का कारोबार - ब्लॉग बुलेटिन
Deleteजीवन में इत्तेफाक क्या होता है ये धीरे धीरे समझ आता है ......आज माँ का दिन है ...मेरी और से बहुत बहुत शुभकामनायें .....माँ को प्रणाम ...!!आज से आप मेरे छोटे भाई हुए ...
Deleteआपकी दोनों माताएं जहाँ भी होंगी, बेहद खुश होंगी और उनका आशीर्वाद आपको युहीं मिलता रहेगा, हमेशा!
ReplyDeleteकविता सच में बहुत भावुक और खूबसूरत है..
आपसे तो बहुत ही थोड़ी देर की मुलाकात हो पायी, लेकिन अच्छी बात ये थी की कम से कम मुलाकात हुई.और आपके साथ साथ कई सारे और लोगों से भी मिलना हुआ.
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें!!
अनुभूति के संग ये लम्हे बेहद सुखद हैं ... एक सांस मेरी के साथ ये यात्रा यूँ ही अनवरत चलती रहे ..अनंत शुभकामनाएं के साथ बधाई ।
ReplyDeleteमन भीग सा गया पढ़ कर....
ReplyDeleteआपका मन सुकोमल है सो आपको सदा फूल मिले.....
आपकी सफलता देख बहुत खुशी हुई...
ईश्वर आपको हमेश यूँ ही गाता मुस्कुराता रखें...
शुभकामनाएँ अनुपमा जी..
खोज-खोज...ढूंढ-ढूंढ .. ,
ReplyDeleteसुंदर सुसंस्कृत भावों को ही लिया ...
उन्हीं को जिया ...
प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
जब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया ...!!!!!
आज आपकी पोस्ट पढ़कर मन एक अनोखे प्रकाश का अनुभव कर रहा है...आप कितनी भाग्यशालिनी हैं जो आपको दो माओं का स्नेह मिला...संस्कार मिले. बहुत बहुत बधाई!
जब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
ReplyDeleteतब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया ...!!!!! बस ये भाव आ जाये जीवन सरल हो जाये…………आप इसी तरह जीवन के मुकाम तय करती जायें उस दिन आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा ………अनुभूति के विमोचन और सफ़लता की कामना करती हूँ हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
bhaut hi khubsurat prstuti....
ReplyDeleteआज बहुत कुछ जानने को मिला आपके बारे में , इतनी दूर से भी मै आपकी फैन हो गयी हूँ ,---------होली की शुभकामनायें |
ReplyDeletepoori post dil ko choo lene vali hai .SARTHAK PRASTUTI HETU BADHAI . ye hai mission london olympic
ReplyDeleteबहुत ही भावभीनी प्रस्तुति है यह.. मेरी ओर से माता जी को श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteआपके इन उदगार में मेरा भी नाम आया यह देखकर प्रसन्नता हुयी!! परमात्मा आपकी भावनाओं को अनुभूति दे!!
बहुत बढ़िया सजीव भाव भीनी प्रस्तुति,...
ReplyDeleteईश्वर सदा इसी तरह निरंतर प्रगति की राह दिखाए,
अनुपमा जी,होली की बहुत२ बधाई,....
@प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
ReplyDeleteजब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया .
ऑफ़कोर्स आप बहुत भाग्यशाली हैं। हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
परंपरा को आपने आगे बढ़ाया ...बधाई !
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं !
अनुपमा जी, आपने अपने मन की बाते इतनी सहज, सरल होकर लिख दिया है कि मन भावुकता से भर गया। यह तो शुरुआत है। आप जीवन में अनेक सफलताओं को हासिल करेंगी, यह विश्वास है। आपकी रचनाओं की ताज़गी और उसका शिल्प न सिर्फ़ अलग होता है, बल्कि गहन अर्थ लिए हुए भी होता है। यह कविता भी उसकी एक मिसाल है।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें..... जीवन में ख़ुशी बनी रहे .........
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई एवं होली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteकितना सहज, कितना निर्मल!
ReplyDeleteआपको ढेरों बधाई हो
प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
ReplyDeleteजब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया ...!!!!!
....कितना अच्छा हो अगर हम इसे जीवन में उतार लें ...जाने अनजाने कितनी बार हम लोग वह ज़हर उगल देते हैं...उसके छीटें हमारे जीवन पर भी पड़ते हैं .....लेकिन हम इस बात से बेखबर हैं ....बहुत ही सुन्दर...दिल से निकली इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ....और बधाइयों की तो एक लम्बी लिस्ट है.....'अनुभूति '...के लिए सबसे बड़ी बधाई .....
प्रेम ही दिया ...प्रेम ही लिया ...
ReplyDeleteजब प्रेम से हंसकर गरल पिया ...
तब ही जीवन सरल किया ....
..हंसकर जीवन ऐसे जिया ...!!!!!
....कितना अच्छा हो अगर हम इसे जीवन में उतार लें ...जाने अनजाने कितनी बार हम लोग वह ज़हर उगल देते हैं...उसके छीटें हमारे जीवन पर भी पड़ते हैं .....लेकिन हम इस बात से बेखबर हैं ....बहुत ही सुन्दर...दिल से निकली इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ....और बधाइयों की तो एक लम्बी लिस्ट है.....'अनुभूति '...के लिए सबसे बड़ी बधाई .....