बहती चलती .बढ़ चली ...
जाने किस ओर .. ?
मन में हिलोर ..
मन के भावों को ..
गुनती...बुनती .. ...तुम संग ..
तुम पवन मैं नदिया ...!!
हरियाली बिखेरती ....
छल छल ....कल कल ...
धरा पर अविचल ...
गीत गाती तुम संग ...
चलते हुए ...राह में ...
दिशा तुम ही देते हो मुझे ....
तुम पवन मैं नदिया ....
चीर सघन बन ...
मैं बह चलूँ ...
पत्थर तोड़ ...
यूँ राह मोड़ ..
पहाड़ों पर चढ़ूँ ...
फिर झरने सी झरूँ ...
अब वेग तुम ही दो मुझे ...
तुम पवन मैं नदिया ...!!!
जाने किस ओर .. ?
मन में हिलोर ..
मन के भावों को ..
गुनती...बुनती .. ...तुम संग ..
तुम पवन मैं नदिया ...!!
हरियाली बिखेरती ....
छल छल ....कल कल ...
धरा पर अविचल ...
गीत गाती तुम संग ...
चलते हुए ...राह में ...
दिशा तुम ही देते हो मुझे ....
तुम पवन मैं नदिया ....
चीर सघन बन ...
मैं बह चलूँ ...
पत्थर तोड़ ...
यूँ राह मोड़ ..
पहाड़ों पर चढ़ूँ ...
फिर झरने सी झरूँ ...
अब वेग तुम ही दो मुझे ...
तुम पवन मैं नदिया ...!!!
चीर सघन बन ...
ReplyDeleteमैं बह चलूँ ...
पत्थर तोड़ ...
यूँ राह मोड़ ..
पहाड़ों पर चढ़ूँ ...
फिर झरने सी झरूँ ...
अब वेग दो मुझे ...
बहुत खूबसूरत भावाव्यक्ति।
अनुपमा जी, कितना सुंदर चित्र है यह बहती हुई नदी का...काश पवन भी दिख जाता, उतनी ही सुंदर कविता है आपकी...बधाई!
ReplyDeleteहरियाली बिखेरती ....
ReplyDeleteछल छल ....कल कल ...
धरा पर अविचल ...
गीत गाती तुम संग ...
चलते हुए ...राह में ...
दिशा तुम ही देते हो मुझे ....
तुम पवन मैं नदिया ....सुंदर भाव की पंक्तियाँ
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
MY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
कलकल की ध्वनि निःसृत है
ReplyDeleteभावों की अभिव्यक्ति ने मोड़ दी धाराएँ है,
ReplyDeleteहम संभल भी न पाए की उस वेग ने साथ ले लिया..........
सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteचीर सघन बन ...
ReplyDeleteमैं बह चलूँ ...
पत्थर तोड़ ...
यूँ राह मोड़ ..
पहाड़ों पर चढ़ूँ ...
फिर झरने सी झरूँ ... बहुत सुंदर नदिया की छल छल सी बहती कविता
कल कल निश्छल नदी जैसी प्रवाहित काव्य रचना .सुँदर
ReplyDeleteसाथ सदा को, पहला दूसरे को शीतल करता हुआ तो दूसरा पहले में सिहरन पैदा करता हुआ।
ReplyDeleteएक दूजे के पूरक...
ReplyDeleteपवन और नदिया...
सुन्दर...
एक दार्शनिक अंदाज़ में संबंधों को रेखांकित करती कविता.. सुन्दर!!
ReplyDeleteनदी सागर के मुहाने पर..अति उत्तम रचना..
ReplyDeleteसुंदर भाव !
ReplyDeleteचीर सघन बन ...
ReplyDeleteमैं बह चलूँ ...
पत्थर तोड़ ...
यूँ राह मोड़ ..
पहाड़ों पर चढ़ूँ ...
फिर झरने सी झरूँ ...
अब वेग तुम ही दो मुझे ...
kya baat hai.. bahut hi sundar kavita :)
palchhin-aditya.blogspot.in
बहती चलती .बढ़ चली ...
ReplyDeleteजाने किस ओर .. ?
मन में हिलोर ..
मन के भावों को ..
गुनती...बुनती .. ...तुम संग ..
तुम पवन मैं नदिया ...!!वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
अनुपमजी क्या बट है बहुत सुन्दर भावमय रचना आभार
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना, हृदयस्पर्शी शब्द ..........आभार
ReplyDeleteरचना का प्रवाह मन मोहक है।
ReplyDeleteमर्मस्पशी भाव..... बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव लिए नदिया के बारे मैं लिखी अनुपम कविता .बहुत बधाई आपको /
ReplyDeleteमेरी nai पोस्ट आपकी टिप्पड़ी के इंतज़ार मैं है /जरुर पधारें
www.prernaargal.blogspot.com
thanks.
ठंडी पवन सी ही शीतल और मधुर ये कविता!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
बहुत सुन्दर शब्द चित्र ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआपकी विशुद्ध हिंदी कविता भा गयी मन को...
पवन का वेग नदिया को दिशा देता है ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
..........हरियाली बिखेरती ..........
ReplyDeleteतुम पवन मैं नदिया ....
सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार ...........
nadiyon ki kal kal dikh bhi rahi hai, chitra me:)
ReplyDeletebahut khub!
सुंदर अभिव्यक्ति ,बेहतरीन रचना प्रवाह,..अनुपमा जी पोस्ट पर आइये,...
ReplyDelete,..
NEW POST...फिर से आई होली...
अनुपमा जी होली की शुभकामनायें |
ReplyDeleteआभार आप सभी का ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मनमोहित करती रचना...
ReplyDeleteसुन्दर भाव अभिव्यक्ति :-)
****होली की बधाई और ढेर सारी शुभकामनाए ****
उत्तम रचना...
ReplyDeleteसादर..