हमारी संस्कृति का प्रतीक ....शक्ति की पूजा में जिसका बहुत प्रयोग होता है ...!!
उस रक्तिम गुड़हल पर मेरी रचना ...
जीवन पथ ...
मग सर्प डगर पर ...
ऋतु का पुनरावर्तन ...
पुनि भोर की आहट हुई ...
श्लथ पथ पर जागी किसलय अनुभूति ..
नव पर्ण पल्लवित हुए ...
सुपर्ण आये ..
पुष्पित आभ लाये ..
सुविकसित हरीतिमा सुलभा छाई ..
हरित भरित धरा हुई ...
बीता रीता क्षण ...
पुनि पुनि ध्याऊँ ..
गाऊँ स्वस्ति स्मरण ...
शुभ शकुन वरन ...
भयो तमस स्कंदन ..
मन सरिता में स्पंदन ...
अरुणिमा लालिमा लाई ...
माँ स्मृति मन मुस्काई ...
देख देख हुलासाऊँ रक्तिम गुड़हल ...!!
माँ शक्ति द्वार तुझे चढ़ाऊँ ...
मन मगन स्वस्ति गाऊँ ...
माँ ने झट ..पट खोले ...
हिय मूक पुनि बोले ...
कुंजित गुंजित फुलबगिया में ...
आयो ..भर डाल -डाल लद छायो .....
सुषमाशाली रक्तिम गुड़हल ....
उस रक्तिम गुड़हल पर मेरी रचना ...
जीवन पथ ...
मग सर्प डगर पर ...
ऋतु का पुनरावर्तन ...
पुनि भोर की आहट हुई ...
श्लथ पथ पर जागी किसलय अनुभूति ..
नव पर्ण पल्लवित हुए ...
सुपर्ण आये ..
पुष्पित आभ लाये ..
सुविकसित हरीतिमा सुलभा छाई ..
हरित भरित धरा हुई ...
बीता रीता क्षण ...
पुनि पुनि ध्याऊँ ..
गाऊँ स्वस्ति स्मरण ...
शुभ शकुन वरन ...
भयो तमस स्कंदन ..
मन सरिता में स्पंदन ...
अरुणिमा लालिमा लाई ...
माँ स्मृति मन मुस्काई ...
देख देख हुलासाऊँ रक्तिम गुड़हल ...!!
माँ शक्ति द्वार तुझे चढ़ाऊँ ...
मन मगन स्वस्ति गाऊँ ...
माँ ने झट ..पट खोले ...
हिय मूक पुनि बोले ...
कुंजित गुंजित फुलबगिया में ...
आयो ..भर डाल -डाल लद छायो .....
सुषमाशाली रक्तिम गुड़हल ....
गुडहल के पुष्प देखकर इतनी सुँदर भाव वाली कविता पढ़कर सुबह सुबह ह्रदय प्रफुल्लित हुआ. शब्दों ने कविता में चार चाँद लगा दिया . धनात्मक उर्जा का संचरण उत्साह भर रहा है . अति सुँदर .
ReplyDeleteरक्त, शक्ति, दुर्गा और गुड़हल, बड़ा ही अनुपम संयोजन प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteसुन्दर फूल पर सुन्दर रचना......
सादर
अनु
मन प्रसन्न हो जाता है जैसे इन फूलों से , आपकी कविता भी उतना ही उत्फुल्ल कर रही है !
ReplyDeletegudahal ke phool ki tarah sundar aur aakarshak rachana
ReplyDeleteसही कहा आपने अनुपमा जी.. रक्तिम गुड़हल यानी लाल गुड़हल शक्ति का प्रतीक है..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteमाँ शक्ति द्वार तुझे चढ़ाऊँ ...
ReplyDeleteमन मगन स्वस्ति गाऊँ ...
माँ ने झट ..पट खोले ...
हिय मूक पुनि बोले ...
कुंजित गुंजित फुलबगिया में ...
आयो ..भर डाल -डाल लद छायो .....
सुषमाशाली रक्तिम गुड़हल ....यह गुडहल का भाग्य और उससे जुड़ा हमारा सौभाग्य
बहुत सुदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
sundar phulon ke sath sundar rachna ..............meri bagiya me gudhul ke 50 alag alag rang avam prajati ke paudhe hai
ReplyDeleteअब काली पुजा के दिन आ रहे हैं ..... शक्ति की पुजा पर समर्पित गुड़हल पर लिखी रचना बहुत सुंदर है ....
ReplyDeleteमाँ शक्ति द्वार तुझे चढ़ाऊँ ...
ReplyDeleteमन मगन स्वस्ति गाऊँ ...
माँ ने झट ..पट खोले ...
हिय मूक पुनि बोले ...
कुंजित गुंजित फुलबगिया में ...
आयो ..भर डाल -डाल लद छायो .....
सुषमाशाली रक्तिम गुड़हल ...
अनुपम भाव ... अनुपम अभिव्यक्ति
सुन्दर...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभक्तिभाव में डूबी सुंदर पंक्तियाँ...गुड़हल का चित्र भी सुंदर है
ReplyDeleteअनुपमा जी आपने रायगढ़ के मुकुटधर पाण्डेय जी की याद दिला दी .
ReplyDeleteकिंसुक कुसुम देख शाखा पर तुझे फुला आज मेरा मन फुला न समाता है
इसी तरह की लाइन लिखी है . बहुत बहुत बधाई . आपको पढ़ना सदा अच्छा लगता है .
Bahut sundar. Reminded me of school days when we used to read hindi literature. Wonderfully written.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं अलंकृत अर्चना!
ReplyDeleteसादर
रक्तिम गुड़हल के बारे में अच्छा जानकारी मिली। इसके बारे में नही जानता था. कविता के हर शब्द समीचीन प्रतीत हुए । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteजितना सुन्दर पुष्प , उतना ही सुन्दर वर्णन |
ReplyDeleteजीवन पथ ...
ReplyDeleteमग सर्प डगर पर ...
ऋतू का पुनरावर्तन ..(ऋतु के पुनरा -वर्तन ) ....ये मग क्या है ?ये मारग(मार्ग )तो नहीं ?कृपया बतलाएं ,हमें नहीं है मालूम सिर्फ कयास लगाया है .
गुडहल अच्छी रचना है (शब्द चयन )नया रूपवाद लिए हैं .बधाई .
कुछ मात्र गलती कई बार पढ़ने पर भी रह ही जाती है ...ऋतु ठीक कर दिया है ...आभार ...!!
ReplyDeleteमग का अर्थ मार्ग से ही है ...ब्रज भाषा में अक्सर कहा जाता है ...श्याम मग रोक रहे ....संगीत में भी इस शब्द का बहुतायत से प्रयोग होता है ...अभी कुछ दिन पहले ही किसी हिंदी कविता में भी पढ़ा था ....!!तब याद रह गया
बहुत आभार...!!
स्नेह एवं आशीर्वाद बनाये रहें ...!!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति....
लाजवाब...
:-) :-)
बहुत खूबसूरत वर्णन तो रचना तो खूबसूरत अपने आप हो गई :)सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत...बिल्कुल गुड़हल के फूल की तरह पावन मनभावन...शब्दों की पंखुड़ियाँ लाजवाब !!
ReplyDeleteमाँ शक्ति की पूजा के लिए सबसे उत्तम रक्तिम गुड़हल को माना जाता है और वैसी ही आपकी रचना है ..
ReplyDeleteबहुत प्यारी न्यारी प्रस्तुति मनमोहक बधाई आपको
ReplyDeletefhool ke upar badi achchi kavita.
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteसुन्दर और भावयुक्त अर्पण्
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..सूक्ष्म अंकन ..
ReplyDeleteबुत सुन्दर रचना और उसका विस्तार ...
ReplyDeleteगुडहल का फूल ... शक्ति की उपासना ... सामजस्य स्थापित किया है ... बहुत लाजवाब रचना ...
गुड़हल के बारे में अच्छी जानकारी मिली। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteAshish aur Praveen jee ne bahut sahi kaha..
ReplyDeleteitne pyare shabd sanyojan ki kya kahun...:)
प्यारी सी रचना ....
ReplyDeleteगुलहड़ सी सुन्दर रचना..
ReplyDeleteitne sunder pushp ke liye utne hi sunder bhaav -ek khoobsoorat rachnaa ke liye badhi -un hi likhati rahiye
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteआभार आपसभी का ह्रदय से ..!माँ पर अर्पित ये पुष्प आप सभी का स्नेह पा गया |
ReplyDeleteबहुत आभार शास्त्री जी !स्नेह एवं आशीर्वाद बनाये रखें .....!!
ReplyDeleteअत्यंत सुंदर रचना
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