नहीं कोई ठाँव सा ....
काग़ज़ की नाव सा ...
बहता हूँ जीवन की नदिया में ...
शनै: शनै: डूबता हुआ ....
क्षणभंगुर जीवन ...
किंकर क्षणों मे ही ...
आकण्ठ डूब जाऊँगा ...
अब तुम पर ..
सब तुम पर है ..
पार लगाओ ...
मेरा जीवन सुधार दो ....
सँवार दो ..
अरज बस इतनी ही है ..उद्धार करो ...!!
हे प्रभु कल्याण करो। .!!
काग़ज़ की नाव सा ...
बहता हूँ जीवन की नदिया में ...
शनै: शनै: डूबता हुआ ....
क्षणभंगुर जीवन ...
किंकर क्षणों मे ही ...
आकण्ठ डूब जाऊँगा ...
अब तुम पर ..
सब तुम पर है ..
पार लगाओ ...
मेरा जीवन सुधार दो ....
सँवार दो ..
अरज बस इतनी ही है ..उद्धार करो ...!!
हे प्रभु कल्याण करो। .!!
अरे अनुपमा जी...आपसे ये उम्मीद न थी...
ReplyDeleteऔर प्रभु आपकी अरज न सुने ऐसा संभव है क्या???
रचना सुन्दर!!!
सस्नेह
अनु
मन मोहनी मधुर मनुहार..
ReplyDeleteइश्वर से आर्द्र प्रार्थना , शुद्ध ह्रदय से, वो सुनता जरुर है . भक्तवत्सल तो नंगे पांव दौड़े आते है , फिर डूबने की बात ही कहा है , उबारेंगे ही , बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..
ReplyDeletesunder bhav..............
ReplyDeleteबहुत खूब ....शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteprabhu se prem bhara mnuhar pasand aaya.........
ReplyDeleteबहुत शानदार भाव अभिव्यक्ति,,,,शुभकामनाये,,,,
ReplyDelete,तुम जो मुस्करा दो,
नहीं कोई ठावँ(ठाँव ) सा ....
ReplyDeleteकाग़ज़ की नावँ (नाव )सा ...बढ़िया रचना है प्रभु अर्चना है ,प्रभु कहतें हैं उद्धव जी को इंगित कर -उधौ मोहे संत सदा अति प्यारे ,मैं संतन के पाछे जाऊं संत न मोते न्यारे ,संत मिलें तो मैं मिल जाऊं संत न मोते न्यारे ,सत की नाव खेवटिया सतगुरु ,भाव सागर से तारे .... संगीत बद्ध कीजिए इस रचना को ..बढिया प्रस्तुति है आपकी जीवन की नश्वरता पर -पानी केरा बुदबुदा ,अस मानस की जात,देखत ही बूझ जाएगा ज्यों , तारा परभात (प्रभात ) जैसे प्रभात होते ही तारे ओझल हो जाते हैं दृश्य पटल से वैसे ही यह जीवन पानी के बुलबुले सा अल्पकालिक है ,क्षण भंगुर है ,अल्प कालिक द्रव्य की मूलभूत कणिकाओं सा है .बधाई इस रचना के लिए जो भाव विरेचन करवाने में समर्थ है .
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
मेरा जीवन सुधार दो ....
ReplyDeleteसँवार दो ..
या डूब ही जाने दो ...
अरज बस इतनी ही है ..
हे प्रभु .......मुझे सिधार दो
प्रेम भरी बिनती
बिल्कुल, प्रभु का आसरा
ReplyDeleteसुंदर रचना
जीवन तो क्षणभंगुर ही है .... सुंदर भक्ति भाव से लिखी रचना
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteगहरे भाव......
ReplyDeleteआध्यात्म भाव की कविता
ReplyDeleteअच्छी भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteTeachers day ki shubhkamnayen ...
ReplyDeletesundar links ke sath achchhi vartaa ...
bahut abhar Sandhya ji Blog varta par meri rachna lene ke liye ...
बहुत सुन्दर.. ये अरज कि हमें सुधार दो तो ठीक लगी.. पर सिधार दो का मतलब समझ नहीं आया मुझे.. शायद मैं सही समझ नहीं पा रहा हूँ..
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
Madhuresh ..
Deleteआध्यात्म भाव से आत्मा की प्रार्थना है ..भाव सागर पार करो प्रभु ..भव सागर तर जाऊं ...कुछ इस तरह ...!!भव पार लगा कर मोक्ष पाने की प्रार्थना है मन में ....सिधार दो का अर्थ जीवन मरण के फेर से दूर करने से है ...
पता नहीं मैं ही अपने भाव लिखने में कितना सक्षम हुई हूँ ...
आत्मा का भजन है ये ...परमात्मा से ...Bahut abhar itni ruchi se aapne ise padha ...
काग़ज़ की नाव जीवन को सही राह दिखाती है, और भवसागर पार लगाती है।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता |आभार
ReplyDeleteसुन्दर अनुपमाजी ...जीवन नैय्या का बिम्ब ज़रूर परिचित था लेकिन बहुत ही नए ढंग से प्रस्तुत किया
ReplyDeleteकागज़ की नाव ... जीवन की अनिश्चितता को पानी में उतर बताती है
ReplyDeleteमन के भाव ,अर्ज़ के नाव.....!
ReplyDeleteखुबसूरत!
आमीन ... प्रभू के चरणों में जो प्रार्थना होती है ... प्रभू उसको सुनता है ...
ReplyDeleteसुन्दर भावमय रचना ....
बहुत सुन्दर अनुपमाजी..मेरी पोस्ट मे आप का स्वागत है..
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार
ReplyDeleteमेरा जीवन सुधार दो ....
ReplyDeleteसँवार दो ..
या डूब ही जाने दो ...
अरज बस इतनी ही है ..
...बहुत ही अच्छी कविता .आभार
pyari si vinti..
ReplyDeletewaise Anulata jee ke baato se sahmat..
apko aise vinti ki kyon jarurat:)
I have full faith in GOD ...!!Vinti to karanaa hi chahiye ...Mere Prabhu doobane thodi denge mujhe ....
Deletepaar to karayenge hi ...:))
ईश्वर की मर्जी जो चाहे दे दे ....यह विश्वास और समर्पण इस जीवन रूप नाव को भली भांति खेता है !
ReplyDeleteगहरे मर्म लिए हुए शब्द हैं आपके......
ReplyDeleteइस सुन्दर काव्यांजलि के लिए आभार !!
bahut abhar Shastri ji ...!!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteहर क्षण गुँजाइश
रहती है कहीं
जीवन संवरता
भी है और
सुधरता भी
है तो
केवल यहीं !
सुंदर दर्शन भरी कोमल कविता । कागज की नाव सा ही तो है हमारा जीवन । इसे प्रभु ही सुधार और सिधार सकते हैं ।
ReplyDeleteअब तुम पर ..
ReplyDeleteसब तुम पर है ..
पार लगाओ ...
.......सुंदर भक्ति भाव से लिखी रचना अनुपमा जी
abhar aap sabhi ka ...
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