अबके बसंत बरसा है फाग ……
पलाश के रंग में भीगी हूँ इस तरह ,
लगता है शब्दों के अंबार पर बैठी हूँ मैं
यहाँ सब कुछ मेरा है
रूप अरूप स्वरुप ……
सब कुछ,
तुम्हारे शब्द भी मेरे हैं अब ,
तुम्हारे भाव भी मेरे हैं अब ,
मेरा अपना एकांत,
और तुम से मिले मेरे अपने शब्द ...!!
किन्तु बोध मेरा अपना ही ...
और तुम से सजी
मेरी प्रिय आकृति
आकाश पर चलचित्र की भांति
छाया सी उभरतीं ,
खिल जाता है मेरा एकांत ,
बरसाता है मुझ पर
मेरी ही पसंद के अनेक शब्द
पंखुड़ियों से
यूं करता अठखेलियाँ ,
छुप छुप कर झाँकता है,
कभी पहुँच जाता है मुझ तक
कभी फिर छुप जाता है ....
फिर कभी चुपके से आता है …
कुछ सपनो के ,कुछ भावों के
कुछ पलाश के अनमोल पल दे जाता है ……!!
पलाश के रंग में भीगी हूँ इस तरह ,
लगता है शब्दों के अंबार पर बैठी हूँ मैं
यहाँ सब कुछ मेरा है
रूप अरूप स्वरुप ……
सब कुछ,
तुम्हारे शब्द भी मेरे हैं अब ,
तुम्हारे भाव भी मेरे हैं अब ,
मेरा अपना एकांत,
और तुम से मिले मेरे अपने शब्द ...!!
किन्तु बोध मेरा अपना ही ...
और तुम से सजी
मेरी प्रिय आकृति
आकाश पर चलचित्र की भांति
छाया सी उभरतीं ,
खिल जाता है मेरा एकांत ,
बरसाता है मुझ पर
मेरी ही पसंद के अनेक शब्द
पंखुड़ियों से
यूं करता अठखेलियाँ ,
छुप छुप कर झाँकता है,
कभी पहुँच जाता है मुझ तक
कभी फिर छुप जाता है ....
फिर कभी चुपके से आता है …
कुछ सपनो के ,कुछ भावों के
कुछ पलाश के अनमोल पल दे जाता है ……!!
वो पल जो मेरे अपने हैं सिर्फ मेरे ....
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteपलाश के चटख रंग से सजे जीवन की प्रसन्नता।
ReplyDeleteअति सुन्दर ... अति सुन्दर ... अति सुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना...! बधाई ....
ReplyDeleteRECENT POST - प्यार में दर्द है.
बहुत सुन्दर...बहुत प्यारी रचना....
ReplyDeleteसादर
अनु
यूँ ही इन सुन्दर स्निग्ध शब्दों से भाव-सरिता का सतत प्रवाह बना रहे. सुन्दर काव्य-कृति.
ReplyDeleteये प्रेम है जो पलाश सा खिल उठा है मन में ...
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना
बहुत ही सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
यह रंग बने रहें , मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteअनमोल शब्द ..... अनमोल एकांत। ..
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