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25 March, 2014

जय भारती के पूत आज !!


असंख्य दिव्य रश्मियाँ
खिली हुई प्रभास सी ,
हैं दिव्य यूं दिशाएँ भी
कि माँ तुम्हें पुकारती ,


फ़लक पे छा रहा है नूर
लक्ष्य भी खिले हुए

उठो सपूत बढ़ चलो
ये  पग हैं क्यों रुके हुए

माँ शारदा का हस्त भी
वृहद है यूं सपूत पर
कि गाओ मन के राग यूं
उदीप्त हों निखर ये स्वर....

खिले हुए कमल सी आज
खिल रही दिशा दिशा,
है ज्योत्सना प्रकाशिनी
सुदीप्त  है प्रखर निशा

के बढ़ चलो तरंग सी
निसर्ग की है रागिनी
के बढ़ चलो उमंग सी
देती है वीणा वादिनी ...!!

प्रबुद्ध मन का मार्ग है ,
खिला हुआ प्रशस्त भी
है सुरभि पुष्प की बही
समीर में उराव भी !!

धरा पे स्वर्ग लाने की
जो हमने तुमने की थी बात
है अब समय रुको नहीं
जय भारती  के पूत आज


है अब समय रुको नहीं
जय भारती  के पूत आज !!

13 comments:

  1. आपकी कविता पढ़ कर प्रसाद जी काी 'हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती...' याद आ गई !

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  2. प्रबुद्ध मन का मार्ग है .. अब तुम रुको नहीं …

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  3. प्रेरक ... अलोकिक भाव हैं रचना में ... यूँ ही कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं ...
    जय भारती जय भारती ... स्वर्ग ने भी जिस तपोवन कि उतारी आरती ..

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  4. शंख नाद करती सुंदर कविता .....

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  5. माँ भारती की पुकार अनसुनी न जाये..सुंदर कोमल व प्रेरित करते भाव सुमन..आभार अनुपमा जी !

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  6. बहुत सुन्दर...अद्धभुत ..:-)

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  7. प्रबुद्ध मन का मार्ग है ,
    खिला हुआ प्रशस्त भी
    है सुरभि पुष्प की बही
    समीर में उराव भी !!

    बेहतरीन अभिव्यक्ति आह्वान करती

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  8. प्रबुद्ध मन का मार्ग है ,
    खिला हुआ प्रशस्त भी
    है सुरभि पुष्प की बही
    समीर में उराव भी !!


    वाह क्‍या बात है

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  9. बहुत ही ओजपूर्ण रचना....बधाई अनुपमाजी..

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  10. आनंद-आनंद हो गया मन इतनी अच्छी कविता को पढ़कर. अति सुन्दर सृजन.

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