रुके हुए से शब्द
ढलक जाते हैं ...
अनायास ...
बिन मौसम भी
बरस जाते हैं नयन कभी ..
फिर भी क्यूँ
झरती हुई बारिश
आँख के कोरों पर रुकी हुई
नहीं दिखा पाती है
हृदय के समुंदर में छुपे
कुछ अनमोल मोती ........!!
*************************************
अपने ही भीतर ढूंढती हूँ खुशी जब ,
तुम मुझे बहुत अपने से लगते हो ,
बंद है मुट्ठी मेरी,
ढलक जाते हैं ...
अनायास ...
बिन मौसम भी
बरस जाते हैं नयन कभी ..
फिर भी क्यूँ
झरती हुई बारिश
आँख के कोरों पर रुकी हुई
नहीं दिखा पाती है
हृदय के समुंदर में छुपे
कुछ अनमोल मोती ........!!
*************************************
अपने ही भीतर ढूंढती हूँ खुशी जब ,
तुम मुझे बहुत अपने से लगते हो ,
बंद है मुट्ठी मेरी,
सम्बल है मेरे पास तुम्हारा ,
तभी तो
दुख में भी
होती तो है बिन मौसम बरसात
फिर भी
होती तो है बिन मौसम बरसात
फिर भी
गिरते नहीं आँख से आँसू
और सुख में
हँसते हँसते
आँख छलछला जाती है ...!!
..
बहुत सुंदर भाव ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार।
यही तो मुश्किल है यहाँ पूरी तरह कुछ नहीं होता ,परस्पर विरोधों का तालमेल हर जगह !
ReplyDeleteयही तो मुश्किल है यहाँ पूरी तरह कुछ नहीं होता ,परस्पर विरोधों का तालमेल हर जगह !
ReplyDeleteसुंदर भाव
ReplyDeleteहोली की अग्रिम शुभकामनायें :)
विरोधाभास है आंसुओं का ,
ReplyDeleteदुःख में सूखे , सुख में छलके !
अपने गहरे भीतर अधूरेपन की तलाश में ....सिर्फ एहसास व एहसास कि.... तुम सच में अपने से लगते हो...
ReplyDeleteसुखद अहसास पिरोये नारी मन का बयान...
ReplyDeleteसमझ से परे है इसका राज.. अति सुन्दर कहा है..
ReplyDeleteसंबल जीने की शांति देता है ... आंसुओं का क्या वो तो छलक आते हैं बिन बताए ...
ReplyDeleteसम्बल है मेरे पास तुम्हारा ,
ReplyDeleteमेरे सभी अपनों का ,
और बढ़ता जाता है
रोज़ इसका दायरा ,
स्व का दायरा बढ़ता जाता है जब..ऐसा ही होता है, तब आँसूं भी मीठे लगते हैं..
दुख में गिरते नहीं आँख से आँसू ।
ReplyDeleteऔर सुख़ में छलक जाते हैं आँख से आँसू ।।
beautiful lines ....and amazing feeling ...
ReplyDeleteअपने ही भीतर ढूंढती हूँ खुशी जब ,
तुम मुझे बहुत अपने से लगते हो ,
बंद है मुट्ठी मेरी,
सम्बल है मेरे पास तुम्हारा ,
Bahut sundar :-)
तुम मुझे बहोत अपने से लगते हो ......सच तो है.....यह आँसू मेरे दिल की ज़बान हैं.....मैं रोऊँ तो रो दे आँसू ...मैं हँस दूँ तो ...हँस दे आँसू .....इनसे ज्य़ादा अपना भला और कौन है
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (14.03.2014) को "रंगों की बरसात लिए होली आई है (चर्चा अंक-1551)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteशुभप्रभात ....हृदय से आभार राजेंद्र जी आपने चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान दिया ...!!
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteआपकी छोटी छोटी रचनाएं बहुत तीखी होती हैं.
ReplyDeleteकभी ख़ुशी कभी गम :)
ReplyDeleteमन बाहर जब मिल कर चाहें,
ReplyDeleteतब कैसे न खुलती रोहें।
अनुपम भाव संयोजन .........
ReplyDeletekhushi aur dukh dono me sath nibhate hain aansu ....bahut sundar bhaw anupma jee ....
ReplyDeleteशुभप्रभात ....हृदय से आभार यशोदा ...हलचल पर मेरी रचना हलचल देगी ......बहुत प्रसन्न हूँ ...!!
ReplyDeletebahut sundar ............man ka bhav aansuon me hi to chupa hota hai ...........
ReplyDeleteप्रेम से भीगी रंगों में सनी
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeletelazabab.....
ReplyDeleteअपने ही भीतर ढूंढती हूँ खुशी जब ,
ReplyDeleteतुम मुझे बहुत अपने से लगते हो
सुन्दर प्रस्तुति भावों की |
भावुक शब्द , भावनाओं से ओत प्रोत |
बहुत ही सुन्दर रचनाएं....
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
उसका पता तो उस बंधन में ही है. अति सुन्दर कृति.
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