नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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01 June, 2011

बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ....!!

बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ....
अब" स्वप्न पनघट" पर खड़ी-खड़ी ..
करबद्ध ...
है प्रेम जल गागरी
जमुना -जल  भरी
सर पर ...
दिन गए बीते बहुत ...
प्रभु तुमरी छाप अद्भुत ...!!
आज सहसा ठिठक ...
मनः पटल
 टटोल रही हूँ ...
प्रभु तुम हो मन में ..
तभी तो ..
अंतर्मन से
पूँछ रही हूँ ...
बताओ  तो ...
कावेरी ..नर्मदा ...गंगा ...या 
जमुना-जल   क्या है ...?
आपनी ही ..
कभी कल-कल करती  थीं किलोल......
ऐसी स्वच्छ  नदियों की ..
अपने ही द्वारा
दूषित .. प्रदूषित ..
की गयी दुर्दशा देख..
आकुल- व्याकुल  है मन ...!!


चिर परिचित
स्मित मुस्कान..
अधरों पर  धरे .... ..
धरा पर हरियाली सी ..
छटा बिखेरते अपनी..
हरित जाज्वल्यमान  करते उसे ...
दिखाते हो अपना रूप ..
 नित्य ही  तुम  सबको ....
फिर  मुझे  बुलाते हो ....
दू ....र..कहीं ...!!
और  दुगुने उत्साह से ...
तीव्र आवेग से ...
चलने लगती हूँ मैं ...
तुम्हारे निशान ढूंढते हुए ...
तेज़  कदमताल  करते  हुए  ..
नदी की धारा सी ...!!!!


चलते चलते
छलकती जाती है
गागरी ..
प्लावित ...सिंचित ...
भीगता जाता है मन ...
देते  हो  शब्द   मुझे 
और  कहते  हो मुझसे .. ..

ये प्रेम जल  ही तो ....
स्मरण है मेरा  ...
घूंघट है तुम्हारा .....
आवरण है मन का ..
आचरण है तन का ...
आंकलन जीवन का ...

गति है ..
सद्गति है ..
दुर्गति कदापि नहीं ...
स्त्रोत है ..
बहाव है  फैलाव है ..
रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!

क्षुधा मिटाता ये जल ..
झांको इसमें तो ..
पाओ ....
अपना  ही  प्रतिबिम्ब ..... .
स्वरुप है ..
सरूप  है ..सुरूप है ..
जहाँ देखो वहां ...
यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
आनंद   ही आनंद है ...!!
संजो सको तो ..
संजो लो इसे ....
और  .....
मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
बड़ी ही कठिन है ये  डगर पनघट की ....!!
टूट जाता है भ्रम मेरा ...
जाग जाती हूँ ...
चौंक कर स्वप्न से .....
और सोचती हूँ ...
सच में ...
वह दिव्य स्वप्न झूठ  कहाँ था ...?
बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!


Purity ....is a dream now..!! Please save the EARTH ...the  RIVERS .......from  pollution ...!!!


34 comments:

  1. bahut kathin hai dagar panghat ki..bahut sunder chitran...jal ka mahatv nadiyon ke bahaav jaisi chanchalta liye hue aapki yeh rachna bahut achchi lagi.

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  2. बड़ी सरलता से कठिन डगर व्यक्त कर दी।

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  3. आज ही पढ़ा खबर में "नर्मदा आज आ रही है भोपाल में ", सचमुच बहुत कठिन डगर पनघट की . पर कविता में आस्था बहुत है , सारे विषद के बावजूद , शायद गंगा फिर पावन हो जाये वर्षों से करोड़ों इसके जल में जो डाला जा रहा है .

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  4. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  5. जाग जाती हूँ ...
    चौंक कर स्वप्न से .....
    और सोचती हूँ ...
    सच में ...
    बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ..

    भावनाओं से ओत प्रोत सुन्दर रचना.

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  6. ये प्रेम जल ही तो ....
    स्मरण है मेरा ...
    घूंघट है तुम्हारा .....
    आवरण है मन का ..
    आचरण है तन का ...
    आंकलन जीवन का ...

    पूरी कविता के साथ साथ ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.

    सादर

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  7. चलते चलते
    छलकती जाती है
    गागरी ..
    प्लावित ...सिंचित ...
    भीगता जाता है मन ...
    देते हो शब्द मुझे
    और कहते हो मुझसे .. ..

    ये प्रेम जल ही तो ....
    स्मरण है मेरा ...
    घूंघट है तुम्हारा .....
    आवरण है मन का ..
    आचरण है तन का ...
    आंकलन जीवन का ...

    गति है ..
    सद्गति है ..
    दुर्गति कदापि नहीं ...
    स्त्रोत है ..
    बहाव है फैलाव है ..
    रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!

    क्षुधा मिटाता ये जल ..
    झांको इसमें तो ..
    पाओ ....
    अपना ही प्रतिबिम्ब ..... .
    स्वरुप है ..
    सरूप है ..सुरूप है ..
    जहाँ देखो वहां ...
    यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
    आनंद ही आनंद है ...!!
    संजो सको तो ..
    संजो लो इसे ....
    और .....
    मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
    बड़ी ही कठिन है ये डगर पनघट की ....!!
    टूट जाता है भ्रम मेरा ...
    जाग जाती हूँ ...
    चौंक कर स्वप्न से .....
    और सोचती हूँ ...
    सच में ...
    वह दिव्य स्वप्न झूठ कहाँ था ...?
    बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!

    सुंदर रचना...बहुत अच्छी पंक्तियाँ और भावमयी ...

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  8. संजो सको तो ..संजो लो इसे ....और .....
    मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
    बड़ी ही कठिन है ये डगर पनघट की ....!!
    टूट जाता है भ्रम मेरा ...जाग जाती हूँ ...
    चौंक कर स्वप्न से .....और सोचती हूँ ...सच में ...
    वह दिव्य स्वप्न झूठ कहाँ था ...?बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!

    नदियों के जल से मन की गंगा तक पहुंचा दिया ..सुन्दर प्रस्तुति

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  9. चलते चलते
    छलकती जाती है
    गागरी ..
    प्लावित ...सिंचित ...
    भीगता जाता है मन ...
    देते हो शब्द मुझे
    और कहते हो मुझसे .. ..

    ये प्रेम जल ही तो ....
    स्मरण है मेरा ...
    घूंघट है तुम्हारा .....
    आवरण है मन का ..
    आचरण है तन का ...
    आंकलन जीवन का ...mann ko rumani kerte ehsaas

    ReplyDelete
  10. ये प्रेम जल ही तो .....
    स्मरण है मेरा ...
    घूघट है तुम्हारा..
    आवरण है मन का..
    आचरण तन का..
    आंकलन जीवन का....

    बहुत ही सुंदर और भावाबिव्यक्ति से परिपूर्ण, नयी दिशा देती हुई और प्रेम रस मैं डूबी हुई अत्ति सुन्दर रचना...
    नदिया के जल की ही भांति कल-कल बहता यह जीवन भी निरंतरता और प्रेम्पुरित रहने का सन्देश हमें देता है.
    बहुत-बहुत बधाई!!!!!

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  11. अपना ही प्रतिबिम्ब ..... .
    स्वरुप है ..
    सरूप है ..सुरूप है ..
    जहाँ देखो वहां ...
    यहाँ प्रेम ही प्रेम है ...!
    आनंद ही आनंद है ...!!
    संजो सको तो ..
    संजो लो इसे ....
    और .....
    मेरे पीछे आते हो तो सोच लो ...
    बड़ी ही कठिन है ये डगर पनघट की bahut hi bemisaal adbhoot rachanaa.badhaai aapko.

    ReplyDelete
  12. ये प्रेम जल ही तो ....
    स्मरण है मेरा ...
    घूंघट है तुम्हारा .....
    आवरण है मन का ..
    आचरण है तन का ...
    आंकलन जीवन का ...
    =========================
    सचिन ने क्रिकेट में रिकार्ड तोड़ा, अन्ना हजारे ने अनशन तोड़ा, प्रदर्शन-कारियों रेलवे-ट्रैक तोड़ा, विकास-प्राधिकरण ने झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ा। तोड़ा-तोड़ी की परंपरा हमारे देश में पुरानी है। आपने कुछ तोड़ा नहीं अपितु अपनी रचनात्मता से दिलों को जोड़ा है। इस प्रेम, करुणा और सरलता को बनाए रखिए। भद्रजनों के जीवन की पतवार है। आपकी रचना का यही सार है। साधुवाद!
    ========================
    प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
    जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
    ========================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  13. आकलन जीवन का , गति है, सद्गति है, दुर्गति कदापी नहीं, स्त्रोत हैं बहाव हैं,फेलाव हैं, रुकाव अरचन कभी नहीं
    नदी के बहाव,स्वछता, शीतलता, निर्मलता को बनाये
    रखने का एक बहुत खूबसूरत प्रयास
    " बधाई "

    ReplyDelete
  14. जाग जाती हूँ ...
    चौंक कर स्वप्न से .....
    और सोचती हूँ ...
    सच में ...
    बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की ..
    --
    जी हाँ आपने बहुत चतुराई से अपने भावों की माला गूँथी है!

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  15. dilko chhoo lene vali kavita k liye badhai...

    ReplyDelete
  16. सच में ...
    वह दिव्य स्वप्न झूठ कहाँ था ...?
    बड़ी ही कठिन है डगर पनघट की .....!!!!!!!!

    सुन्दर रचना.

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  17. वाह .... बहुत खूब कहा है ..

    ReplyDelete
  18. ये प्रेम जल ही तो ....
    स्मरण है मेरा ...
    घूंघट है तुम्हारा .....
    आवरण है मन का ..
    आचरण है तन का ...
    आंकलन जीवन का ...

    गति है ..
    सद्गति है ..
    दुर्गति कदापि नहीं ...
    स्त्रोत है ..
    बहाव है फैलाव है ..
    रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!

    क्षुधा मिटाता ये जल ..
    झांको इसमें तो ..
    पाओ ....
    ..
    आदरणीया अनुपमा दी, ...बड़े दिन बाद इस मधुर और मनोहारी संगीत में लौट पाया हूँ...आजकल सबने एक तरफ से तंग करने कि कसम खायी है दीदी....जिंदगी ने भी क्या करूं..!! ऐसे में आपकी रचनाओं कि ओर मुड़ना...सुखद अहसास से कम नही है...मुझे क्षमा करते रहना दीदी और अकेला मत छोड़ना कभी !

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  19. नदियों को हमने इतना प्रदूषित कर दिया है कि अब पनघट पर जाना सचमुच बहुत कठिन हो गया है, सुंदर भावों से सजी प्रभु स्मरण कराती प्रस्तुति !

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  20. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  21. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए शुक्रिया!

    ReplyDelete
  22. चिर परिचित
    स्मित मुस्कान..
    अधरों पर धरे .... ..
    धरा पर हरियाली सी ..छटा बिखेरते अपनी..
    हरित जाज्वल्यमान करते उसे ...
    दिखाते हो अपना रूप ..
    नित्य ही तुम सबको ....
    फिर मुझे बुलाते हो ....दू ....र..कहीं ...!!
    और दुगुने उत्साह से ...
    तीव्र आवेग से ...
    चलने लगती हूँ मैं ...
    तुम्हारे निशान ढूंढते हुए ...
    तेज़ कदमताल करते हुए ..
    नदी की धारा सी ...!!!!

    Wah Anupama ji..kya likha hai aapne...awak hun...aapki soch aur rachnadharmita ko namaskar.

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  23. aapki ek post marm ka behdd mere blog par show hoti hai par use mai aapke blog par nahi padh paa raha hu'

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  24. जल-सजलता है छलकती शब्द बन कर.
    तब कहीं बहते सलिल सी ,
    मुक्त-छंदा , मृदु - मरंदा ,
    अमृत - कविता बह निकलती ..

    बहुत सुन्दर .. उपदेश भी मधुर ..

    कान्तासम्मिततयोपदेश युजे -

    आचार्य मम्मट की परिभाषा का उदाहरण है ये कविता ..

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  25. गति है ..
    सद्गति है ..
    दुर्गति कदापि नहीं ...
    स्त्रोत है ..
    बहाव है फैलाव है ..
    रुकाव ..अड़चन ...कभी भी नहीं ...!!
    बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति ,लाजवाब रचना....

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  26. पर्यावावरण के प्रति आपकी चिंता जायज़ है, उसका विनाश करके हम अपना ही विनाश कर रहे हैं, यह बात कब आएगी समझ में हमारे?

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  27. आप सभी की प्रतिक्रियाएं क्रिया से जोडती हैं मुझे ...
    लगता है ..कुछ नया पढू ..कुछ नया लिखूं ...कुछ नया बाटूँ.....ये नया आवरण बहुत सुखमय है ...!!
    आप सभी का आभार ....!!
    आते रहें ..पढ़ते रहें और ..टिपण्णी द्वारा ये छोटा सा सुख देते रहें ...!!

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  28. वंदना जी आपका बहुत बहुत आभार ..अपने मेरी रचना तीताला पर ली.

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  29. बहुत बहुत बहुत सुन्दर ! पूर्णत: अभिभूत हूँ इस रचना से ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  30. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. आपकी चिंता जायज़ है. आज गंगा और यमुना गंदे नाले-सा जीवन गुजार रही हैं. नदी के अस्तित्व की चिंता जरुरी है.
    बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई.

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!