जग त्यक्त कर ही ....
तुममें अनुरक्त हुई ...
तुम्हारी छब हृदय में रख ..
स्वयं से भी प्रेम में ..
आसक्त हुई ......
प्रेम का वर्चस्व ...
है तुममे ही सर्वस्व .....
प्रसन्नता से चहकती ...
अल्हड़ सी ..खिलखिलाती ...
वर्षा की झमाझम में भीगती ....
जीवन का राग गाती ....
जीवन मार्ग पर ...
मदमाती ..चलती रही ...........उनमत्त ......
जीवन की राह कठिन है ...
.....छप ....छपाक ...
कुछ कीचड़ सा उछला ...
कुछ छींटे पड़े ....
औचक भयासक्त हुई .. ......!
रे मन .....चंदरिया मैली क्यों हुई ...?
हे ईश्वर ...मन मे तुम हो ...
फिर ये डर कैसा ...???
इक पल को भ्रमित हुई ...
क्रोध से आक्रोश से भरमाई भी ...
डगमगाई भी ...
लगा ...
ईश प्राप्ति का लक्ष्य ......
कहीं बिसर ना जाऊँ ..
रम ना जाऊँ...
चलते-चलते ....
अब इस निर्मल बारिश मे ....
धुल गया है कीचड़...
और ...टूटने लगा है भरम ...
अब जान गयी हूँ ....
राग की आत्मा सरगम में ही है ......
समर्पण प्रभु चरणों में ही है ....!!
निष्ठा और आस्था ...
हरि दर्शन में ही है ...
भीगना ही है ...
सराबोर होना ही है ...
कोई भरम ...भ्रम भी नहीं .. . ..
हृदय में तुम ही तुम हो ...
हे प्रभु ......आश्वस्त हूँ ..
प्रशस्त है मार्ग अब ....
चलती जाती हूँ ..
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1Dg7OWgPf2jxDMAKDIkbGoHYbDzK2GzlVArtZRNbEp3qHb75wYksAOSqsXGVZCaTH0uSzaTKMA_mbOHYYw-lD6jm9AaNrIFpAuM8G4rJJfNTW9XD1QJc_UZvbKM_ARAvut976fE4e_RVc/s320/image001.gif)
बजता है मन का इकतारा ..
वर्षा के निर्मल जल में भीगती ...
उज्ज्वल जल की ओर ...
ये मार्ग जड़ से चेतन की ओर जाता है ....!!
चल मन ....गंगा -जमुना तीर ...
गंगा जमुना निर्मल पानी ...
शीतल होत शरीर ...
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लगातार हो रही है बरसात ......
ये कविता लिख कर भी ...
और भीग रहा है मन ...
जाने कैसे समुंदर मे डूब गयी हूँ मैं ...
हे कृष्ण .....भव पार करो .....!!
ये भजन ज़रूर सुनिये ...
चल मन ....
ReplyDeleteगंगा -जमुना तीर ...
गंगा जमुना निर्मल पानी ...
शीतल होत शरीर ...
भावमय करते शब्दों के साथ ही मधुर गीत के लिए आपका आभार ...
तेज बारिश के साथ आपकी सुन्दर सारगर्भित रचना पढने में बड़ा ही आनंद आरहा है
ReplyDeleteप्रेम का वर्चस्व ...
ReplyDeleteहै तुममे ही सर्वस्व .....
प्रसन्नता से चहकती ...
अल्हड़ सी ..खिलखिलाती ...
वर्षा की झमाझम में भीगती ....
जीवन का राग गाती ....
जीवन मार्ग पर ...
मदमाती ..चलती रही ...........उनमत्त ......
पुरवा हवा सी भावनाएं
अनुओं शब्दों का जादू ... मधुर रचना प्रेममयी ...
ReplyDeleteजड़ में चेतन छिपा हुआ है,
ReplyDeleteवही साँस संचालित करता।
खूबसूरत रचना ...कुछ कुछ भीगी भीगी सी
ReplyDeleteचलते-चलते ....
ReplyDeleteअब इस निर्मल बारिश मे ....
धुल गया है कीचड़...
और ...टूटने लगा है भरम ...
अब जान गयी हूँ ....
राग की आत्मा सरगम में ही है ......
समर्पण प्रभु चरणों में ही है ....!!
....उत्कृष्ट भक्तिमय अभिव्यक्ति...
ह्रदय में उठते संगीत को कह पाना बड़ा मुश्किल होता है..कुछ ऐसी ही स्थिति है अभी मेरी..बस..
ReplyDeleteमन भीगा ...आत्मा भीगी .... चल पड़ी परमात्मा से मिलने .... सुर और साहित्य का अनोखा संगम
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर. आभार.
ReplyDeleteसुन्दर..................बहुत सुन्दर अनुपमा जी....
ReplyDeleteजाने कौन सी स्याही भरती हैं आप अपनी कलम में...जो ऐसी महकती हैं आपकी रचनाएँ...
सस्नेह
अनु
इश्वर भक्ति के रस में पगी रचना अंतस को छू गई . "बरसा बादल प्रेम का भीग गया सब अंग ".. एक साधक की आत्मा की भावभीनी पुकार ..
ReplyDeleteभूल जाऊं या याद रखूं ..
ReplyDeleteनिर्मल जल में रहूं या कीचड में ..
अथाह समुंदर में भी फंस जाऊं तो भी ..
हमारा बेडा पार करने वाला तो एक ईश्वर ही है ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
हृदयस्पर्शी.... मन की चेतना जगातीं पंक्तियाँ ....
ReplyDeleteहे प्रभु ......
ReplyDeleteआश्वस्त हूँ ..
प्रशस्त है मार्ग अब ....
चलती जाती हूँ ..
अपने आप में लीन ...
बजता है मन का इकतारा .
प्रभु प्रेम में पगी विलक्षण प्रस्तुति ! मन को हर पंक्ति के साथ जैसे शीतल सा करती जाती है !
ईश्वर के प्रति इतनी आसक्ति ? वाह। दुष्यंत कुमार की यह कविता याद आ रही है;
ReplyDeleteजो कुछ भी दिया अनश्वर दिया मुझे
नीचे से ऊपर तक भर दिया मुझे
ये स्वर सकुचाते हैं लेकिन,
तुमने अपने तक सीमित कर दिया मुझे।
धन्यवाद अनुपमा जी।
ममस्पर्शी सुंदर पंक्तियाँ ,,,,अनुपमा जी ,,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
ममस्पर्शी सुंदर पंक्तियाँ,,,,अनुपमा जी,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
प्रेम से उमड़ पुनि भक्ति रस में मन भींगा और भीगता रहा पावस की फुहारों सरीखा
ReplyDeleteजब मन में लगन लग जाती है तो बारिस भीगकर भी नहीं भीगता और कभी कभी ज्यों ज्यों दुबे श्याम रंग त्यों त्यों उजवल होय ...
ReplyDeleteवो आकर खुद भिगाने लगे
ReplyDeleteफुहारों में अगर आने लगे!
बहुत सुंदर !
प्रेम का वर्चस्व ...
ReplyDeleteहै तुममे ही सर्वस्व .....
प्रसन्नता से चहकती ...
अल्हड़ सी ..खिलखिलाती ...
वर्षा की झमाझम में भीगती ....
जीवन का राग गाती ....
प्रेमरस में ओतप्रोत भीनी भीनी सी रचना...आभार!
भावमयी करती मनमोहक रचना.. मधुर गीत सुनाने के लिए आपका आभार .अनुपमा जी..
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर पोस्ट....सब कुछ भीग गया ।
ReplyDeleteआपकी इस कविता के नामाकरण से लेकर उसकी अंतर्वस्तु में निहित कथ्य तक कविता को एक नया संस्कार देते हैं। यदि कविताएं जड़ से चेतन की ओर हमारी यात्रा को लेजाने में सफल हुईं तो उसकी इससे बड़ी सार्थकता कुछ और हो ही नहीं सकती।
ReplyDeleteमदमाती ..चलती रही ...........उनमत्त ......
ReplyDeleteजीवन की राह कठिन है ...
.....छप ....छपाक ...
कुछ कीचड़ सा उछला ...
कुछ छींटे पड़े ....
औचक भयासक्त हुई .. ......!
रे मन .....चंदरिया मैली क्यों हुई ...?
हे ईश्वर ...मन मे तुम हो ...
फिर ये डर कैसा ...???
उन्मत्त ,चदरिया ,में,कर लें,
दिगम्बर विष्णु पलुकर साहब को आपने सुनवाया ,कैंटन की सुबह खिलखिला उठी ,झामाजह्म बारिश यहाँ भी है ,बढ़िया रचना समर्पण और दास्य भाव की भक्ति की .
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ललित जी ...!!
ReplyDeleteचल मन ....गंगा -जमुना तीर ...
ReplyDeleteगंगा जमुना निर्मल पानी ...
शीतल होत शरीर ...
मन रे प्रभु मिलन की आस ...
सुंदर, भक्ति पूर्ण रचना ..
सादर !
राग की आत्मा सरगम में ही है ......
ReplyDeleteसमर्पण प्रभु चरणों में ही है ....!!
निष्ठा और आस्था ...
हरि दर्शन में ही है ...
आपकी इस प्रस्तुति पर कुछ भी कहने के लिए शब्द नहीं है मेरे पास.
नमन ,सादर नमन.
जड़ से चेतन की ओर .. को सच कर दिया है आपने.
अनुपम भजन सुनवाने के लिए आभार,अनुपमा जी.
ReplyDeleteआपकी यह अभिव्यक्ति प्रभु मिलन के लिए एक अदभुत तडफ
ReplyDeleteका अनुभव कराती है.बार बार पढकर कर भी फिर से पढ़ने का
मन करता है.आप स्वयं भी इसे जरूर बार बार पढ़ती होंगीं?
बहुत आभार राकेश जी ...ये पंक्तियाँ मुझे भी बहुत पसंद हैं ...!!
ReplyDeleteअपना स्नेह एवम आशिर्वाद बनाये रखें.हृदय से आभार ...!!