नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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08 December, 2012

धार बनी नदिया की .......

नदी की यात्रा ....समुद्र की ओर .....आत्मा की यात्रा, परमात्मा की ओर ....इसी भाव से पढ़िये ....धार बनी नदिया की ......


छवि मन भावे ...
नयन   समावे ..
सूरतिया पिया की ...

बन बन .. ढूँढूँ ..
घन बन  बिचरूं .....
धार बनी नदिया की .......


कठिन पंथ ...
ऋतु  भी अलबेली ....
बिरहा मोहे सतावे ...

पीर घनेरी ...
जिया नहीं बस में ...
झर झर झर अकुलावे .....


 विपिन घने ,
मैं कित मुड़ जाऊँ ...
कौन जो राह सुझावे .....?

डगर चलत नित
 बढ़ती हूँ........
 निज वेग मोहे हुलसावे ...

अब..कौन गाँव  है ....
कौन देस है ..
कौन नगरिया  पिया की ....


बन बन .. ढूँढूँ ..
घन बन  बिचरूं ...
धार बनी नदिया की .......


धार बनी नदिया की ....!!

मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
मैं  कल  कल बहती छल छल बहती .....
बहती बहती जाऊँ....!!!!!!

I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!



36 comments:

  1. सुन्दर विचर और प्रेम की अन्हीनव यात्रा यक़ीनन मन मोहक है ।

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    1. anupama ji bahut sundar layatmakta shilp , shabdo ke moti ............dhara me bah gaya man . badhai

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  2. बहुत सुन्दर, प्रवाहमय, गहन अभिव्यक्ति...

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  3. ज्यों धार बनी नदिया की पिया ऐसो बांह पसारे..अति सुन्दर कहा है .

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  4. सौम्य सुखद संक्षिप्त ..

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  5. बहुत सुन्दर.........
    पढ़ती गयी...गाती गयी...बहती गयी....

    सस्नेह
    अनु

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  6. बहुत सुन्दर गीत है...
    नदियों की धार सी प्रवाहित...
    गुनगुनाती हुई,, कोमल सी...
    :-)

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  7. मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
    मैं कल कल बहती छल छल बहती .....
    बहती बहती जाऊँ....

    बहुत कोमल सी सुंदर रचना ....

    recent post: बात न करो,

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  8. बहुत ही प्यारी कविता

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  9. मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
    मैं कल कल बहती छल छल बहती .....
    बहती बहती जाऊँ.

    जीवन का सन्देश देती प्रवाहमय रचना .....

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  10. मन भा गयी. एक उन्मुक्त एहसास दे गयी. सुन्दर कृति.

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  11. ईश्वर प्राप्ति का सुगम मार्ग जो बहुत कठिन है .... यूं ही धार बन बहना कहाँ सहज है ? बहुत सुंदर रचना

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  12. कठिन पंथ ...
    ऋतु भी अलबेली ...
    बिरहा मोहे सतावे ...

    प्रेम ओर विरह ... दोनों रंगों का समावेश करती आलोकिक रचना ...

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  13. आपकी प्रस्तुति का भाव पक्ष बेहद उम्दा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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  14. प्रेम और विरह का संजोग तो पुराना है और इसी विधा की सुंदर कविता. बधाई अनुपमा जी.

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  15. बेहतरीन।बहते रहना ही तो जीवन है।
    सादर
    देवेंद्र
    मेरी नयी पोस्ट
    कागज की कुछ नाव बनाकर उनको रोज बहा देता हूँ........

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  16. सलिल-प्रवाह सी कविता.. सुललित और सुपाठ्य!!

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  17. बहुत उम्दा!!शुभकामनाएँ.

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  18. sach kahan anulata jee ne padhte pathe bahte chale gaye....:) khubsurat kal-kal pravah...karti rachna:)

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  19. मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
    मैं कल कल बहती छल छल बहती .....
    बहती बहती जाऊँ....!!!!!!
    अनुपम भावों का संगम है यह अभिव्‍यक्ति

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  20. नदी की धार सी ही अविरल प्रवाहमान बहुत ही सुन्दर रचना ! बहुत सारी शुभकामनाएं !

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  21. विरह गीत!!

    कठिन पंथ ...
    ऋतु भी अलबेली ....
    बिरहा मोहे सतावे ...

    भावपूर्ण!!

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  22. बहुत खुबसूरत भाव..

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  23. बधाई सुंदर रचना के लिए !

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  24. बहुत प्यारी नदी के प्रवाह जैसी सुन्दर कविता वाह बहुत बहुत बधाई

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  25. बूंद समाना समुंद में,सो कत हेरी जाए....

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  26. भाव और विचार सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हैं इस खूबसूरत सांगीतिक बंदिश में .

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  27. वाह...धार बनी नादिया की...बहुत सुंदर रचना..भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

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  28. समस्त गुणी जानो का हृदय से आभार .....
    स्नेह एवं आशीर्वाद बनाए रखें ......!!!!

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  29. बहुत खूबसूरत अहसास

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!