नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

29 March, 2014

अनुकृति ...!!


आप सभी को बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि मेरा द्वितीय काव्य संग्रह पुस्तक मेले में ही बाज़ार में आ चुका है |प्रकाशन संस्थान ने छापा है |

इसमें प्रारम्भ में ही मैंने  बुआ जी की कविता दी है |
कवयित्रि -कुमारी लक्ष्मी वर्मा मेरी बुआ सम हैं । उन्होने शादी नहीं की |नेक दिल अपने उसूलों पर स्थिर ...!!इतना कुछ है उनके पास जो उनसे लेने का मन करता है |उनके पास बैठ कर ही कितनी ऊर्जा मिलती है !!
एम ए (हिन्दी)
जन्म-1 जून 1926 ।आर्य समाज मंदिर भोपाल में शिक्षिका थीं !
सिर्फ 12 साल की उम्र में बुआ जी ने यह कविता लिखी थी जब उनके गुरु जी ने कहा था स्मृति पर निबंध लिख कर लाओ और उन्होने कविता लिख डाली |
जब भी बुआ से मिलती हूँ ,हमारा आदान प्रदान का सिलसिला शुरू हो जाता है । मुझसे फरमाइश कर कर के ढेर सारे छोटे ख्याल सुनतीं हैं । राग काफी सुनाओ ,राग तिलक कामोद सुनाओ ,होरी सुनाओ। …!!

फिर वे अपनी कवितायेँ ज़रूर सुनाती हैं । और ख़ास तौर पर ये वाली कविता सुनाना कभी नहीं भूलतीं ।जब भी वे कविता सुनाती हैं ,उनकी आँखों की चमक देखने लायक होती है। ।!!एक बच्चा मन दीखता है आज भी उनके अंदर!!
इस बार जब बुआ से मिली ,लगा उम्र कुछ हावी हो रही है । बार बार पूछतीं ....''मैंने तुमको कविता सुना दी …?'' उन्हें याद दिलाना पड़  रहा था ''बुआ जी आप कविता सुना चुकीं हैं ।''फिर संतुष्ट होकर ,थोड़ी उदास होकर ,चुप हो जातीं । 
आज  भी बुआ जी की  दमदार आवाज़ में यह कविता सुनकर मन मौन से भर जाता है |उनके आशीर्वाद स्वरूप  यह कविता मैंने अपनी किताब ''अनुकृति '' में भी दी है। ।!!और अपने ब्लॉग पर  भी हमेशा हमेशा के लिए रखना चाहती हूँ |जिससे जब भी मन करे पढ़ सकूं।कविता पढते हुए उनके व्यक्तित्व को याद कर सकूं और उनसे अपने लिए भी उससे शक्ति लूं .!! ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ ,उनको लम्बी आयु दें ताकि बुआ जी का शुभाशीष  हम पर बरसता रहे । 
इस कविता में मेरी आदरणीय बुआ जी के भाव हैं जो मैंने  बड़े सम्मान से सँजोने की कोशिश की है !
हालाकि  ये भाव उदास करते  हैं मन को |किन्तु ये कविता उनकी सबसे पसंदीदा कविता है और इसको सुनाते वक़्त उनके चेहरे के भाव भी  पुरानी यादों से भरे चमक रहे होते हैं |इस कविता से बुआ जी को विशेष लगाव है |
उन्होने  अपनी माँ व भाई कि स्मृति में यह रचना लिखी !!


स्मृति ॰


तुम पूछ रहे थे मुझसे
जब मधुर याद बचपन की 
मैं ढूंढ रही थी मन में
दुख भरी घड़ी जीवन की 

भूले अतीत की स्मृति 
सोयी सी आज जगी सी 
मैं खोल रही थी निज को 
कुछ खोयी हुई ठगी सी 


वे दुर्दिन दुखमय रातें 
शशि तारे भी मुसकाते
अंकित हो मानस पट पर 
थे चित्रपटी से जाते 

क्योंकर वे याद मधुर हैं 
कैसे मैं आज बताऊँ 
क्या सोयी हुई व्यथाएं 
फिर से मैं इन्हें गिनाऊँ 


मैं नहीं बता सकती हूँ 
क्यों याद दुखती मुझको 
पर नहीं गिना सकती हूँ 
क्योंकर वे प्रिय हैं मुझको 

अस्फुट सी धुंधली  रेखा 
माँ तेरी खिंच जाती है 
नन्हें भाई की छवि तब 
हिय पट पर छा जाती है 

भाई का देख किलकना 
लख नभ पर शशि को हँसते 
झट मृदुल कारों का बढ़ना 
रो रो कर ऊपर तकते 

जब मचल गोद में आता 
मैं झट से उसे उठाती 
बहला मीठी बातों से 
मैं सुख विभोर हो जाती 

सरिता की मृदु लहरों में
पग पुलक पुलक कर धरना
शंकित हो मन में डरते 
माँ तेरा उसे झिड़कना 

बचपन की ये क्रीड़ायेँ
भाई की सुध मैं पाती 
सरिता की कल कल ध्वनि में 
अब उसकी सुधि है आती 

दो ही इन मधुर क्षणों में 
मैं तन्मय सी हो जाती 
निर्दय विधि की वे यादें 
माँ स्वप्ना भंग कर जातीं 

सुंदर सुकुमार अनुज का 
था रुक्म क्षीण मुख जिस दिन 
भय से शंकित थे हम सब 
माँ तू आदिर थी उस दिन 

वह शून्य रात्रि की बेला 
उर में थीं  कंपन करतीं 
निस्तब्ध नियति की घातें 
बन अश्रु दृगों में भरतीं

भाई का क्षीण मलिन तन 
था श्वेत शुभ्र शैया पर 
तू चौंक उठी मृगनी सम
छू घोर व्याधि का कटु क्षण 

उस बुझते से दीपक की 
उन तीव्र प्रकाशित रो में 
पागल सा तुम को लख कर 
रह गए अश्रु नयनों  में 

तेरे मूर्छित होने से 
क्या काल हृदय फटता है 
तुझको पागल ही सा लख 
क्या विश्व नियम टलता है 

भाई को खोकर भी यदि 
तू रखती जीवन अपना 
पर हाय तुझे भी खोकर 
हो गया आज सुख सपना 

उस कुटिल कराल करों नें 
तुझको ही आज जब लूटा 
रह गए चकित से तकते 
था हाय वज्र क्या टूटा 

शशि किरणे भी अब आकर 
सोयी वह व्यथा जगातीं 
पावस की झरती घालें 
मन अश्रुमेघ बरसातीं 

मैं रुष्ट कभी हो जाती 
अपने ही इस जीवन पर 
मन रो रो कर थक जाता 
अपने एकाकी पल पर 

मैं बचपन भूलूँ कैसे 
जब तेरी ही सुधि आती 
निस्संग और श्रत मन को 
माँ तेरी याद भुलाती 

बचपन की याद मधुर है 
पर है यह घोर मधुर पन
उस मधुर असीम मिलन में 
हैं चिर वियोग के कण कण ....

******************************



प्रकाशक महोदय  ने मुझसे कहा भी कि इसे आप इस कविता को आशीर्वाद स्वरूप न देकर अंतिम पृष्ठ पर दीजिये !!मर्मस्पर्शी कविता है |पर मेरा मन नहीं माना !मेरे भाव कुछ अलग सोच रहे थे !मुझे तो कविता कहती हुई बुआ जी कि वो झलक याद आती है ,उनका वो चमकता चेहरा याद आता है !!उस बुढ़ापे से झाँकता हुआ उनका  वो बचपन दिखता है  ....!!
कविता सुनाता हुआ उनका वो बच्चा मन दिखता  है !!
अब मैं ध्यान ये दिलाना चाहती हूँ कि ,ये कविता के भाव मेरे नहीं हैं |इसकी रचयिता मैं नहीं हूँ |कहीं कुछ गलत न समझ लीजियेगा!! मेरे पाठक ,मेरे प्रशंसक ,मेरे अपने भाई बंधु मुझे बहुत प्रिय हैं !और उनके कुशलक्षेम की मैं ईश्वर से सदा प्रार्थना करती हूँ |उनका मंगल ही मेरा हित  है !!सभ्यता, संस्कृति और भावना पर लिखने वाला कवि किसी का अमंगल नहीं चाह सकता !!कृपया मेरे भावों को अन्यथा न लें !मुझे ''अनुकृति "के लिए अपना स्नेह दें !!अपनी बात स्पष्ट करने का मन कई दिनों  से था जो आज फलीभूत हुआ !!इस कविता को मेरी बुआ जी की  कविता के रूप में  ही पढ़ें !!वे इसके लिए आदर और सम्मान की  पात्र हैं !
समय समय पर आप सभी की प्रतिक्रियाएँ मिलती रहती हैं जिससे लेखन समृद्ध होता है !जिसके लिए आप सभी का हृदय से आभर !!
मेरे भाव समझने के लिए पुनः आप सभी का हृदय से आभार !!


14 comments:

  1. बधाई व शुभकामनाऐं । कविता बहुत मर्मस्पर्शी है बुआ जी की । आभार !

    ReplyDelete
  2. अनुपमा जी, अनुकृति के लिए बधाई स्वीकारें. आपकी बुआ जी की कविता अत्यंत मार्मिक है और भावपूर्ण भी, इतनी छोटी उम्र में लिखी गयी थी यह बात उसे और भी विशिष्ट बनाती है.

    ReplyDelete
  3. द्वितीय काव्य संग्रह के लिए बहुत बहुत बधाई अनुपमा जी.बुआ जी की कविता मन को छू गई..आभार

    ReplyDelete
  4. Nicely shared and very well weaved in.

    ReplyDelete
  5. पुस्तक पकाशन के हार्दिक बधाई ...!
    बुआ जी की रचना साझा करने के लिए आभार ...
    RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )

    ReplyDelete
  6. अनुकृति के लिए बधाई। .. बुआजी की कविता पर शब्द नहीं मिल रहे हैं ..

    ReplyDelete
  7. beautiful tribute and congratulations :)

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर रचना .... साझा करने के लिए आभार आदरणीया बुआ जी को सादर नमन

    ReplyDelete
  9. बुआ जी के जीवन की गहन व्यथा इस करुण कविता में ढल गई है. बहुत मार्मिक है ,

    आपका आभार कि हम पढ़ सके !

    ReplyDelete
  10. दूसरे काव्य-संग्रह के प्रकाशन के लिए बहुत-बहुत बधाई अनुपमा जी!

    और बुआ की कविता को साझा करने के लिए भी धन्यवाद.

    ReplyDelete
  11. बहुत गहन और मार्मिक कविता | प्पुस्तक प्रकाशन पर बहुत शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  12. मन मोहती कविता, अनुकृति के लिये बधाई।

    ReplyDelete
  13. भूल ही गया, अनुकृति के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई!

    ReplyDelete
  14. bahut marmik bhav hain .......booa ji to bahut badhai ki paatr hain

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!