नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

06 August, 2011

फिर रीत सा क्यूँ जाता है मन ...?

आज वर्षा  के संग 
Painting by Pragya Singh.
स्मृतियों का रंग मिला है ...
बेरंग पानी में घुल-मिल गयीं हैं .स्मृतियाँ ...
हिल-मिल जैसे स्मृतियों की वर्षा है ... ..
एक सावन की धारा..
मन में जो बहती है ...
दूर रह कर भी हमें....
आस-पास कर देती है .. 
साथ बीते हुए लम्हों का..
यादों की बरसात ले ..
ये रंग जो बरसता है ..
सावन की फुहार है ...
भीगता मन बार-बार  है ..
भीग गया है तन-मन इस तरह ...
घुल-मिल ....
इसी बेरंग पानी में..
अब मिल गया है..
मेरे आंसुओं का रंग भी ...!!
आज ये बेरंग पानी के संग कैसी वर्षा है ...?
कुछ रंग देती है भिगा कर मुझे ..अनायास ..  ..!!
और अंसुअन संग धो देती है ...
वही खिले-खिले रंग ...!!
बह रही हैं रंगीन स्मृतियाँ जैसे ....
मन स्मृतियों में भी ..ढूँढता  है ...तुम्हें ....!!
तुम्हारे बिन घुल से जाते हैं ये रंग...!!
धुंधला सा पड़ता ये चित्र जीवन... 
फिर रीत सा क्यूँ जाता है मन ...?

कुछ यहाँ परिकल्पना पर भी पढ़ें....
आभार....

42 comments:

  1. यादों के पीछे भागता मन एकाकी हो जाता है ... कारण स्पष्ट नहीं होता

    ReplyDelete
  2. स्मृतियों में भी ..ढूँढता है ...तुम्हें ....!!
    तुम्हारे बिन घुल से जाते हैं ये रंग...!!
    फिर रीत सा क्यूँ हो जाता है मन ...?

    मन हो रहा है कि बस पढ़ता जाऊँ !

    बेहतरीन!


    सादर

    ReplyDelete
  3. स्मृतियों की बात ही कुछ और है.. भावों में खो सा जाना..

    ReplyDelete
  4. इसी बेरंग पानी में..
    अब मिल गया है..
    मेरे आंसुओं का रंग भी ...!!

    सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई -- देवी ||

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  6. दुबारा पढ़्ने को जी किया.. कुछ कुछ अपनी यादों सा लगा.

    ReplyDelete
  7. यादे होती ही ऐसी है... जितना दूर जाप इन यादो से, उतनी ही करीब होती है...अच्छी अभिवयक्ति....

    ReplyDelete
  8. मन के भावो का सुन्दर समन्वय्।

    ReplyDelete
  9. जिसकी अधिक प्रतीक्षा होती है उसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता |अच्छी बाव्पूर्ण रचना |
    बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  10. दूर रह कर भी हमें....
    आस-पास कर देती है ..
    साथ बीते हुए लम्हों का..
    यादों की बरसात ले ..
    ये रंग जो बरसता है ..
    सावन की फुहार है ...

    कितना सच है ये ...इसको पढ़ कर वाकई में वो पुराने दिन याद आ गए ...पर सच है की ..हम दूर रह कर भी यही हैं ...आसपास...और हमारे बीते हुए कल और आने वाला कल वाकई में ..सावन की फुहार है.....जो पीले फूल की तरह हमारे जीवन में महक रहा है....

    हमारी पेंटिंग पर आपने इतनी सुंदर कविता लिखी है...इससे हमको और कुछ नया बनाने की प्रेरणा मिलती है ....

    ReplyDelete
  11. वर्षो का इंतज़ार ...यादे भीगे मन की....आंसुओं का साथ ...और ऊपर से ये सावन की बरसात का साथ .....बढ़िया समावेश के साथ ...खूबसूरत प्रस्तुति

    ReplyDelete
  12. दूर रह कर भी हमें....
    आस-पास कर देती है ...
    साथ बीते हुए लम्हों का..
    यादों की बरसात ले ..
    ये रंग जो बरसता है ..
    सावन की फुहार है ....

    बहुत ही सुंदर पक्तियां हैं ....वाकई में इसको पढ़ कर अपने बीते हुए दिन याद आ गए ...पर सच है ..दूर रहकर भी हम यही है...आसपास ...हमारे बीते हुए कल और आने वाले कल पर यूँ ही रंग बरसता रहेगा ..सावन की फुहार लिए ...इस पीले फूल की तरह हमेशा महकेगा.....

    हमारी पेंटिंग पर आपने इतनी सुंदर कविता लिखी है ....आपके लिखने से हमको और कुछ नया बनाने की प्रेरणा मिलती है...

    ReplyDelete
  13. स्मृतियों में भी ..ढूँढता है ...तुम्हें ....!!
    तुम्हारे बिन घुल से जाते हैं ये रंग...!!
    फिर रीत सा क्यूँ जाता है मन ...?

    बहुत सुंदर भाव...

    ReplyDelete
  14. सावन स्मृतियों को भी नम कर देता है।

    ReplyDelete
  15. वर्षा के सहारे विरह के भाव का मार्मिक चित्रण अत्यंत सुन्दर एवं प्रशंशनीय है.

    ReplyDelete
  16. बहुत खुबसूरत भावाभिव्यक्ति...
    सादर...

    ReplyDelete
  17. वाह ...बहुत ही अच्‍छी शब्‍द रचना ।

    ReplyDelete
  18. इसी बेरंग पानी में..
    अब मिल गया है..
    मेरे आंसुओं का रंग भी ...!!
    बरसात में आंसू इसलिए ही छिप जाते है .. बेहतर अभिव्यक्ति .

    ReplyDelete
  19. fir reet sa jaata hai man..vyakul man asafal prteeksha yahi to halat hogi man ki.fir rijhim barasta saavan bhi kahan bhaayega.
    achchi abhivyakti Anupama ji.

    ReplyDelete
  20. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  21. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  22. इसी बेरंग पानी में..
    अब मिल गया है..
    मेरे आंसुओं का रंग भी ...!!

    बहुत सुंदर..... मन के भावों की संवेदनशील अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  23. बहुत सुन्दर कविता ,
    वर्षा की रूत में यादो का आना सहज ही है ..

    बधाई
    आभार
    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete
  24. आपकी कविता के एक-एक शब्द मन को छू जाते हैं। स्मृतियाँ कभी भी बेरंग नही होती हैं। ये तो हमारे जीवन की बेशकीमती धरोहर होती हैं। इन्हे रंगना हम सबके मनोभावों पर निर्भर करता है।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  25. आपने ठीक कहा प्रेम सरोवर जी ...

    आज वर्षा के संग
    स्मृतियों का रंग मिला है ...
    बेरंग पानी में घुल-मिल गयीं हैं .स्मृतियाँ ...
    हिल-मिल जैसे स्मृतियों की वर्षा है ... ..

    पानी बेरंग है ..जिस रंग रंगों उसी रंग रंग जाता है ..बेरंग पानी में आज स्मृतियों का रंग मिला है ....और वही रंग बरस गए हैं मन पर ...

    कविता पसंद करने के लिए आपका ह्रदय से आभार ...

    ReplyDelete
  26. nice post

    मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

    ReplyDelete
  27. स्मृतियों में भी ..ढूँढता है ...तुम्हें ....!!
    तुम्हारे बिन घुल से जाते हैं ये रंग...!!
    फिर रीत सा क्यूँ हो जाता है मन ...?

    सुन्दर प्रस्तुति, सादर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  28. बहुत ख़ूबसूरत, भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी रचना! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  29. मन के भावों को खूबसूरत शब्दों में पिरोया है ..एक कसक बनी ही रह जाती है ...

    ReplyDelete
  30. बेहतरीन!सुन्दर प्रस्तुति ....

    ReplyDelete
  31. सावन की बरखा, ठंडी होती चाय और आकाश पटल पर चलती मन की स्मृतियों की तस्वीरें .. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    (चाय की बात आप की कविता में नहीं, लेकिन बरखा की बात हो तो मुझे चाय के बिना अधूरी लगती है ..)

    ReplyDelete
  32. आप सभी का आभार ...मेरी रचना को अपनी प्रशंसा के रंग देने के लिए ...!!
    कृपया यही स्नेह बनाये रखें...!!

    ReplyDelete
  33. अनुपमा जी ...कुछ तो है आपकी रचना में जो बरबस ही मुझे खिंच लाया ..मन को छू गया बहुत कुछ ....

    ReplyDelete
  34. मन भींगता है तो सब कुछ भींगा भींगा ही दीखता है।
    और सावन सब कुछ बिंगा क्यों देता है खास कर मन ...?

    ReplyDelete
  35. आपकी कविता पढ़कर प्रसाद जी पंक्ति याद आयी

    बस गयी एक बस्ती है स्मृतियों की इसी ह्रदय में
    नक्षत्र लोक फैला है , जैसे इस नील निलय में
    जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छायी
    दुर्दिन में आंसू बनकर वाह आज बरसने आयी

    भावों की सुन्दरतम प्रस्तुति . आभार

    ReplyDelete
  36. रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!