धुली-धुली सी धरा का ...
खिला-खिला सा ये रंग जीवन ...!!
बरसती पुरज़ोर घटा का...
बिखरी अलकों से टप...टप...टपकता ..
भीगा-भीगा सा ये रूप जीवन...!!
रुक जाता है मुसाफिर
छिन-छिन...पल-छिन...
पग थम जाते हैं तब ..
पग थम जाते हैं तब ..
ऊँचे-ऊँचे दरख्तों का..
ये झूम कर लहराना ...
पुरकैफ़ हवाओं का ..
जैसे छेड़े कोई तराना ...
मद्धम-मद्धम सा ये संगीत जीवन...!!
कितनी पुलक फैली है ...
धरा के इस मनोहारी रूप में ...
छाओं और धूप में ...
छाओं और धूप में ...
देख भर-भर नयन ...
रंगों में विस्तृत ...
रागों में वर्णित ..
धरा का ये यौवन ..ये सौंदर्य जीवन...!!!!
Gungunaane ka mann ho raha hai.. :-)
ReplyDeleteकितनी पुलक फैली है ...
ReplyDeleteधरा के इस मनोहारी रूप में ...
छाओं और धूप में ...
देख भर-भर नयन ...
रंगों में विस्तृत ...
रागों में वर्णित ..
धरा का ये यौवन ..ये सौंदर्य जीवन...!!!!
मन को द्रवित करने वाली यह पंक्तियाँ सीधे ह्रदय में उतर गयी .....आपका आभार
बहुत सुन्दर वर्णन प्रकृति का
ReplyDeletebahutb sundar prakartik varnan .sundar chintr ....
ReplyDeleteBLOG PAHELI NO.1
सौन्दर्य से भरा उल्लासमयी जीवन....... बहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रकृति की बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.........प्रकति की अनुपम छटा को समेटे ये पोस्ट लाजवाब है........अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर देर के लिए माफ़ी के साथ आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ..........कभी फुर्सत मिले तो मेरे अन्य ब्लॉग भी देखें उम्मीद है आपको पसंद आयेंगे|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन प्रकृति का
ReplyDeleteइस रचना में प्रकृति का जो दृश्य आपने साकार किया है वह बरबस ही मन को मोह लेता है। अनुपम छटा की अनुपम प्रस्तुति।
ReplyDeleteधरा भरी है, सुन्दरता से।
ReplyDeleteऊँचे-ऊँचे दरख्तों का..
ReplyDeleteये झूम कर लहराना ...
पुरकैफ़ हवाओं का ..
जैसे छेड़े कोई तराना ...
मद्धम-मद्धम सा ये संगीत जीवन...!!
बेहतरीन काव्य चित्र
सादर
धुली-धुली धरा का बहुत ही सुंदर चित्रण किया. रचनाकार ने हमें इतनी सुंदरता दी है,यदि जीवन भर समेटते रहें तो भी हाथ खाली रह जाएंगे.
ReplyDeleteअनुपम प्रकृति स्पंदन रागात्मक शैली में जीवन में आस उल्लास जगाती पोस्ट .बधाई ! ... .जय अन्ना !जय श्री अन्ना !आभार बेहतरीन पोस्ट के लिए आपकी ब्लोगियाई आवाजाही के लिए;
ReplyDeleteबृहस्पतिवार, १८ अगस्त २०११
उनके एहंकार के गुब्बारे जनता के आकाश में ऊंचाई पकड़ते ही फट गए ...
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Friday, August 19, 2011
संसद में चेहरा बनके आओ माइक बनके नहीं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
बहुत बढ़िया लिखा है आपने
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना..लाजवाब।
ReplyDeletekonkan ka saundarya likhwa raha hai yeh sab aapse par dekhane ki nigah ka dam hai inme bahut sundar
ReplyDeleteprakriti gati hui nazar aa rahi hai- alaukik saundarya
ReplyDeleteप्रकृति की मनमोहक छटा बिखेरती ,आल्हादित करती सुँदर कविता . आभार .
ReplyDeleteकितनी पुलक फैली है ...
ReplyDeleteधरा के इस मनोहारी रूप में ...
छाओं और धूप में ...
सचमुच... बहुत सुन्दरता से पिरोये हैं आपने खुबसूरत भावों को...
सादर बधाई...
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण..
ReplyDeletesunder varnan
ReplyDeleteये झूम कर लहराना ...
ReplyDeleteपुरकैफ़ हवाओं का ..
जैसे छेड़े कोई तराना ...
मद्धम-मद्धम सा ये संगीत जीवन...!!
बहुत प्यारे शब्दों के साथ , भावनाओं को स्थान देती रचना ,मोहक है जी / आभार ...
ऊँचे-ऊँचे दरख्तों का..
ReplyDeleteये झूम कर लहराना ...
पुरकैफ़ हवाओं का ..
जैसे छेड़े कोई तराना ...
मद्धम-मद्धम सा ये संगीत जीवन...!!
बहुत खूबसूरत रचना पढकर सारा आलम ही गूंज गया |
सुन्दर रचना दोस्त |
प्रकृति की खूबसूरत यात्रा कराने के लिए आभार !
ReplyDeleteजीवन के रंग-बिरंगे अनेक चित्र, एक ही कैनवास में।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
prakti ka sundar varann....
ReplyDeleteप्रकृति का बहुत सुन्दर वर्णन,सौन्दर्य मयी सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है आपने हमारी इस पेंटिंग पर ....इसे पढ़कर बहुत खुशी मह्सूस हो रही है और हम बार बार ये सोच रहे हैं कि.. क्या वाकई में ये पेंटिंग इतनी सुंदर है जितनी आपकी कविता.....
ReplyDelete.धरा के इस मनोहारी रूप में ...
छाओं और धूप में ...देख भर-भर नयन ...रंगों में विस्तृत ...
रागों में वर्णित .. धरा का ये यौवन ..ये सौंदर्य जीवन...!!!!
आपके शब्दों से हमारी पेंटिंग का जीवन तो जरूर सौंदर्य हो गया है.....
ऊँचे-ऊँचे दरख्तों का..
ReplyDeleteये झूम कर लहराना ...
पुरकैफ़ हवाओं का ..
जैसे छेड़े कोई तराना ...
मद्धम-मद्धम सा ये संगीत जीवन...!!
sunder
rachana
आभार आप सभी का ...मेरे भाव पसंद करने के लिए....
ReplyDeleteशास्त्री जी आपका आभार ..मेरी कविता को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए...!!
ReplyDeleteVandana ji abhar aapka meri rachna tetaala par lene ke liye....
ReplyDeleteप्रकृति का इतना सुन्दर वर्णन किया हैं की
ReplyDeleteठहर के, इसे जी लेने का मन करता हैं !You have given a name to Pragya's painting.
वर्णित सौंदर्य मनोहारी है...!
ReplyDeleteकल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यशवंत आपका बहुत-बहुत आभार ...मेरी पोस्ट को हलचल पर स्थान देने के लिए ...
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सुँदर कविता
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