नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

07 February, 2012

....सूर्यास्त ...या... सूर्योदय .....!!

कभी जब आलोक तज ...
घिर घिर घिरता
हृदय तिमिर से
और बहते रहते अश्रु जल .....
किन्तु ..सांझ ढले ...तम से घिरा ...
 टप-टप गिरते  आंसुओं का ये पल ...
.सूर्यास्त ...या... सूर्योदय .....!!
एक पल में बीत ही जायेगा ....
मैं चाहूँ न चाहूँ ....
नया सवेरा ..
फिर-फिर आयेगा ही आएगा ....

नन्हें बालक की तरह ..
मेरा मन अज्ञानी बन ...
कई बार प्रारब्ध पर आँसू बहाता है ...!!
फिर ...
कई बार गुनी ज्ञानी बन ...
वही मन ..
सरस्वती सा सरस ...
खोल उर के द्वार ...
प्रज्ञा  का भण्डार ....
बांटे सबको प्यार...
धीमे से मुस्कुराता है ....

ऐ मेरे कोमल..निर्मल ..मन ...
सबसे सुंदर मन ....
जीते हुए सजग ये जीवन ..
तू मुझे मुझमे  ही..
कितने रूप दिखाता है ....!!
मुझे ही खोजता हुआ...
मुझमे ही ......
मुझे ..कितना ...कितना ...भटकाता है ...
और ..मुझे कहाँ कहाँ ले जाता है .....!!


क्या आप बता सकते हैं ऊपर वाली तस्वीर सूर्यास्त की है या सूर्योदय की ......?रचना पढ़ कर इस प्रश्न  का उत्तर ज़रूर  दें ....!!

31 comments:

  1. bahut hi sundar man ke sachitra bhaav bahut shandar rachna.haan upar ka chitra mere hisaab se sooryast ka hai.

    ReplyDelete
  2. सांझ ढल रही है ..नया सवेरा लेकर आएगी ..ये उसका वादा है..
    kalamdaan.blogspot.in

    ReplyDelete
  3. तू मुझे मुझमे ही..
    कितने रूप दिखाता है ....!!
    मुझे ही खोजता हुआ...
    मुझमे ही ......
    मुझे ..कितना ...कितना ...भटकाता है ...
    और ..मुझे कहाँ कहाँ ले जाता है .....!!
    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  4. sundar rachna....suryast ki lalima hai shayd...

    ReplyDelete
  5. कुहासे से लदी वादियों में तम को चीरते भगवान मार्तंड की लालिमा मुझे तो मोहित कर रही है . अब हम तो आशावादी है भला डूबते सूरज को कैसे देखे . आपकी कविता भी तो प्रज्ञा का भंडार है . साधुवाद .

    ReplyDelete
  6. सांझ ढल रही है..पर सुबह तो फिर आएगी.

    ReplyDelete
  7. चित्र और रचना दोनों अद्वितीय....बधाई...

    नीरज

    ReplyDelete
  8. खूबसूरत रचना...ढलती संध्या की लालीमा लिए भोर की प्रतीक्षा में..

    ReplyDelete
  9. मुझे ही खोजता हुआ...
    मुझमे ही ......
    मुझे ..कितना ...कितना ...भटकाता है ...
    और ..मुझे कहाँ कहाँ ले जाता है .....!!बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    ReplyDelete
  10. मन अक्सर सूर्यास्त को ही उदास होता है..निराश भी होता है...
    और ढलता सूरज एक नये सवेरे का सन्देश लिए रहता है..
    चित्र सूर्यास्त का ही हुआ..

    सुन्दर रचना अनुपमा जी..

    ReplyDelete
  11. बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति,....सूर्यास्त

    NEW POST.... ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...

    ReplyDelete
  12. बहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति,....सूर्यास्त
    NEW POST.... ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...

    ReplyDelete
  13. sundar bhav behtrin abhivyakti .tasveer to shayad sooryoday ki hae!

    ReplyDelete
  14. bahut hi sunder ...sunder abhivyati

    ReplyDelete
  15. अन्तर कठिन है, जीवन में भी दोनों एक ही रंग के होते हैं, अन्तर होता है तो बस थकान का..

    ReplyDelete
  16. मन ही मूढ़ , मन ही ज्ञानी - कभी खाली , कभी पूर्ण ... मेरी समझ से सूर्यास्त की तस्वीर है ... मैं चाहूँ न चाहूँ ....
    नया सवेरा ..
    फिर-फिर आयेगा ही आएगा ....

    ReplyDelete
  17. जीते हुए सजग ये जीवन ..
    तू मुझे मुझमे ही..
    कितने रूप दिखाता है ....!!bahut khub.

    ReplyDelete
  18. सुंदर रचना।
    तस्‍वीर सूर्यास्‍त की है......

    ReplyDelete
  19. मन कभी ज्ञानी ,कभी अज्ञानी ...सच में कितनी उहापोह है.... सुंदर भाव

    ReplyDelete
  20. कभी जब ह्रदय आलोक तज ...
    घिर घिर घिरता
    मन तिमिर से...
    मेरे मन और आपकी कविता के हिसाब से चित्र सूर्यास्त का है...

    ReplyDelete
  21. बहुत सुन्दर है पोस्ट.......और आपके सवाल के जवाब में मुझे लगता है ये 'सूर्यास्त' का दृश्य है |

    ReplyDelete
  22. थकान है...
    डूब जाने का सुकून है
    क्यूंकि अन्धकार को दिन भर
    किया परास्त है
    हो न हो ये छवि मेरी दृष्टि में
    सूर्यास्त है!

    ReplyDelete
  23. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ...
    मुझे भी लगता है सूर्यास्त का ही दृश्य है

    ReplyDelete
  24. मन की उड़ान कब कस दिशा ले जाती है कोई नहीं कह सकता ...
    ये सूर्यास्त लग रहा है ... कुछ पीलापन लिए है लालिमा ... गोधूली लए ...

    ReplyDelete
  25. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है ! साँझ के अँधेरे को चीर, रात के घनघोर तिमिर को हटा नया सवेरा आशा का आलोक जीवन में फैलाएगा यह प्रत्याशा ढलता सूरज ही मन में जगाता है ! मेरे विचार से यह तस्वीर सूर्यास्त की ही है ! अच्छी पहेली रची आपने ! रचना भी अद्भुत है और तस्वीर भी अनुपम ! बहुत खूब !

    ReplyDelete
  26. सुन्दर आकलन किया है।

    ReplyDelete
  27. सूर्यास्त और सूर्योदय.......

    सिर्फ देखने और समझने वाले की सोच का फर्क होता हैं
    पोसिटिव सोचने वाला सूर्योदय कहेगा और नेगिटिव सोचने वाला सूर्यास्त ....सोच अपनी अपनी

    ReplyDelete
  28. मन कभी तम में घिरता है और कभी तम को चीर कर रोशनी देखता है ... दोनों का वर्णन बहुत सुन्दर ... मैं तो सूर्योदय ही कहूँगी उस तस्वीर को देख कर ... :):)

    ReplyDelete
  29. आभार आप सभी का ...मेरे मन की ओहापोह पर आपने सक्षम विचार दिए ....

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!