नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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10 February, 2012

ये जीवन ...तुम्ही से मिला ....!!

पुनः उर्जा संचारित हुई ...
पूर्व से उदय हुआ प्रकाश ...
मिथ्या से दूर ...
शाश्वत सत्य के पास ...
कर  रही  थी राग का अभ्यास ..
राग पूर्वी ....सुनते  हुए.. हुआ आभास ...
सूरज  का पूर्व  से ..
मन का पूर्वी से  ..
कैसा अनादी ..अनंत ..अपूर्व रिश्ता है ...!!
जैसे पहली बार सुनकर भी ..
कोई राग सुनी हुई क्यों लगती है ...?

पहली बार देख कर भी ..
कोई जाना पहचाना क्यों लगता  है ...?
पहली बार मिलकर भी ..
कोई चिर परिचित क्यों  लगता है ...?
पहली बार पढ़ कर भी ..
कुछ  शब्द मन में बसे हुए ...
रचे  हुए क्यों लगते हैं ....?????

जीवन की यात्रा ...
जो सदियों से चल रही है ...!!

कुछ नया नहीं है ...
आती-जाती  सांस  है बस ...
पल का साथ है बस ...
कुछ आंसू ...जो जिंदगी हमें  देती है ...
फिर भी  ... हम दे सकें  जिंदगी को ...
एक  मुस्कान है बस ..!!


कहाँ से आते हैं ये भाव ......
जो कभी जिए ही नहीं ...?
कहाँ से आते हैं वो शब्द ...
जो कभी गढ़े ही नहीं .......?

ओह विस्मित हूँ ...जब देखती हूँ ....
मेरा अपना कुछ भी नहीं ....
करती रही हूँ .. सतत प्रयास ...
फिर भी ...
मेरे बस में कुछ भी नहीं ...
न देना ..न पाना ...
न प्रेम ...न बैर ...
न सुख ..न दुःख ..
न समर्पण ..न अहंकार ...
न स्मृति ..न विस्मृति ..
न क्रिया ....न प्रतिक्रिया ...
बस संचयन  ही कर पायी हूँ अपने भीतर ...
अब तक ...तुम्हारा ही दिया ...!!
ये रंग ये रूप ..
ये छाँव ये धूप
रक्षक भी तुम ही हो प्रभु .....!!
ये मन ..ये जीवन ...तुम्ही से मिला ....!!

*पूर्वी-राग का नाम है 

28 comments:

  1. पहली बार देख कर भी ..
    कोई जाना पहचाना क्यों लगता है ...?
    पहली बार मिलकर भी ..
    कोई चिर परिचित क्यों लगता है ...?
    पहली बार पढ़ कर भी ..
    कुछ शब्द मन में बसे हुए ...
    रचे हुए क्यों लगते हैं ....?????

    आत्माएं जुडी होती हैं शायद..कहीं ना कहीं..
    ईश्वर ने जो दिया उसके सिवा क्या है हमारे पास...??
    सच है!! हमने सृजन तो कभी किया ही नहीं..बस संचय किया ..

    बहुत बहुत सुन्दर अनुपमा जी..

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  2. बस संचयन ही कर पायी हूँ अपने भीतर ...
    एकदम मन की बात!
    बहुत सुन्दर, सार्थक अभिव्यक्ति.

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  3. कहाँ से आते हैं ये भाव ......
    जो कभी जिए ही नहीं ...?
    कहाँ से आते हैं वो शब्द ...
    जो कभी गढ़े ही नहीं .......?

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं !

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  4. पहली बार देख कर भी ..
    कोई जाना पहचाना क्यों लगता है ...?
    पहली बार मिलकर भी ..
    कोई चिर परिचित क्यों लगता है ...?
    पहली बार पढ़ कर भी ..
    कुछ शब्द मन में बसे हुए ...
    रचे हुए क्यों लगते हैं ...संभवतः ईश्वर का कोई सन्देश ...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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  5. बढ़िया प्रस्तुति ||

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  6. ''ये रंग ये रूप ..
    ये छाँव ये धूप
    रक्षक भी तुम ही हो प्रभु .....!!
    ये मन ..ये जीवन ...तुम्ही से मिला ....!!''

    बेहतरीन लाईनें.....

    गहरे भाव।

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  7. sabhi kuch to ishwer ne hi banaya hai sab usi ka diya hai hum to sirf uska sanchayan karte hain.adhyaatmvaad ke darshan hote hain aapki rachnaon me.

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  8. चेतना के तल पर कण-कण एक है , सारा भँवर उसी सागर का है बस बुद्धि विभेद है इसलिए कोई पह्चान सदियों पुरानी लगती है..आपके अनुपम भाव ह्रदय को विभोर कर रहे हैं..

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  9. सब उसी का और उसी को समर्पित कर दो बस यही तो है जीवन

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  10. सूरज का पूर्व से ..
    मन का पूर्वी से ..
    कैसा अनादी ..अनंत ..अपूर्व रिश्ता है ...!!
    जैसे पहली बार सुनकर भी ..
    कोई राग सुनी हुई क्यों लगती है ...?

    बहुत सुन्दर ... मन रचना के साथ बहता चला गया ..

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  11. कहाँ से आते हैं ये भाव ......
    जो कभी जिए ही नहीं ...?
    कहाँ से आते हैं वो शब्द ...
    जो कभी गढ़े ही नहीं .......?
    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  12. कविता के भाव हमें अनंत की शक्तियों से दर्शन कराते हैं। एक आध्यात्मिक विचार मन में भर जाता है और मन कहता है हमें अपने है और नहीं है के बीच एक संतुलन बिठाने की जरूरत है। यानि संतोष और असंतोष के बीच संतुलन। इससे हमारी जिंदगी के बीच फर्क पड़ेगा।

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  13. कोई कहीं से भर देता है,
    जीवन के अनपूरे घट

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  14. अनुपम भाव , मै डूबता उतरता रहता हूँ आपकी शब्द-श्रद्धा में.

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  15. पहली बार देख कर भी ..
    कोई जाना पहचाना क्यों लगता है ...?
    पहली बार मिलकर भी ..
    कोई चिर परिचित क्यों लगता है ...?
    पहली बार पढ़ कर भी ..
    कुछ शब्द मन में बसे हुए ...
    रचे हुए क्यों लगते हैं ....?????

    जीवन की यात्रा ...
    जो सदियों से चल रही है ...!!

    रचना का एक - एक शब्द एक चलचित्र की भांति जीवन के सन्दर्भों को उद्घाटित करता है ...!

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  16. बहुत ही गहरी और भावपूर्ण अभिवयक्ति.........

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  17. सब कुछ तुम्ही से मिला प्रभु..... नमन

    मन को सुकून देती रचना

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  18. सब कुछ तुम्ही से मिला प्रभु...शाश्वत सच...

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  19. सब कुछ तुम्ही से मिला प्रभु.....

    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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  20. बहुत खूब..प्रभु की लीला न्यारी है।

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  21. सार्थक एवं सुंदर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।

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  22. आभार ....आप सभी का ...

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  23. इस रचना में एक तरल संवेदना है जो मेंहदी के रंग और अंसुओं के संग कहीं छुपी .. घुली-मिली है।

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!