पुनः उर्जा संचारित हुई ...
पूर्व से उदय हुआ प्रकाश ...
मिथ्या से दूर ...
शाश्वत सत्य के पास ...
कर रही थी राग का अभ्यास ..
राग पूर्वी ....सुनते हुए.. हुआ आभास ...
सूरज का पूर्व से ..
मन का पूर्वी से ..कैसा अनादी ..अनंत ..अपूर्व रिश्ता है ...!!
जैसे पहली बार सुनकर भी ..
कोई राग सुनी हुई क्यों लगती है ...?
पहली बार देख कर भी ..
कोई जाना पहचाना क्यों लगता है ...?
पहली बार मिलकर भी ..
कोई चिर परिचित क्यों लगता है ...?
पहली बार पढ़ कर भी ..
कुछ शब्द मन में बसे हुए ...रचे हुए क्यों लगते हैं ....?????
जीवन की यात्रा ...
जो सदियों से चल रही है ...!!
कुछ नया नहीं है ...
आती-जाती सांस है बस ...
पल का साथ है बस ...
कुछ आंसू ...जो जिंदगी हमें देती है ...
फिर भी ... हम दे सकें जिंदगी को ...
एक मुस्कान है बस ..!!
कहाँ से आते हैं ये भाव ......
जो कभी जिए ही नहीं ...?
कहाँ से आते हैं वो शब्द ...
जो कभी गढ़े ही नहीं .......?
जो कभी जिए ही नहीं ...?
कहाँ से आते हैं वो शब्द ...
जो कभी गढ़े ही नहीं .......?
ओह विस्मित हूँ ...जब देखती हूँ ....
मेरा अपना कुछ भी नहीं ....
करती रही हूँ .. सतत प्रयास ...
फिर भी ...
मेरे बस में कुछ भी नहीं ...
न देना ..न पाना ...
न प्रेम ...न बैर ...
न सुख ..न दुःख ..
न समर्पण ..न अहंकार ...
न स्मृति ..न विस्मृति ..
न क्रिया ....न प्रतिक्रिया ...
करती रही हूँ .. सतत प्रयास ...
फिर भी ...
मेरे बस में कुछ भी नहीं ...
न देना ..न पाना ...
न प्रेम ...न बैर ...
न सुख ..न दुःख ..
न समर्पण ..न अहंकार ...
न स्मृति ..न विस्मृति ..
न क्रिया ....न प्रतिक्रिया ...
बस संचयन ही कर पायी हूँ अपने भीतर ...
पहली बार देख कर भी ..
ReplyDeleteकोई जाना पहचाना क्यों लगता है ...?
पहली बार मिलकर भी ..
कोई चिर परिचित क्यों लगता है ...?
पहली बार पढ़ कर भी ..
कुछ शब्द मन में बसे हुए ...
रचे हुए क्यों लगते हैं ....?????
आत्माएं जुडी होती हैं शायद..कहीं ना कहीं..
ईश्वर ने जो दिया उसके सिवा क्या है हमारे पास...??
सच है!! हमने सृजन तो कभी किया ही नहीं..बस संचय किया ..
बहुत बहुत सुन्दर अनुपमा जी..
बस संचयन ही कर पायी हूँ अपने भीतर ...
ReplyDeleteएकदम मन की बात!
बहुत सुन्दर, सार्थक अभिव्यक्ति.
कहाँ से आते हैं ये भाव ......
ReplyDeleteजो कभी जिए ही नहीं ...?
कहाँ से आते हैं वो शब्द ...
जो कभी गढ़े ही नहीं .......?
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं !
bahut umdaa
ReplyDeleteपहली बार देख कर भी ..
ReplyDeleteकोई जाना पहचाना क्यों लगता है ...?
पहली बार मिलकर भी ..
कोई चिर परिचित क्यों लगता है ...?
पहली बार पढ़ कर भी ..
कुछ शब्द मन में बसे हुए ...
रचे हुए क्यों लगते हैं ...संभवतः ईश्वर का कोई सन्देश ...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDelete''ये रंग ये रूप ..
ReplyDeleteये छाँव ये धूप
रक्षक भी तुम ही हो प्रभु .....!!
ये मन ..ये जीवन ...तुम्ही से मिला ....!!''
बेहतरीन लाईनें.....
गहरे भाव।
sabhi kuch to ishwer ne hi banaya hai sab usi ka diya hai hum to sirf uska sanchayan karte hain.adhyaatmvaad ke darshan hote hain aapki rachnaon me.
ReplyDeleteचेतना के तल पर कण-कण एक है , सारा भँवर उसी सागर का है बस बुद्धि विभेद है इसलिए कोई पह्चान सदियों पुरानी लगती है..आपके अनुपम भाव ह्रदय को विभोर कर रहे हैं..
ReplyDeleteसब उसी का और उसी को समर्पित कर दो बस यही तो है जीवन
ReplyDeleteसूरज का पूर्व से ..
ReplyDeleteमन का पूर्वी से ..
कैसा अनादी ..अनंत ..अपूर्व रिश्ता है ...!!
जैसे पहली बार सुनकर भी ..
कोई राग सुनी हुई क्यों लगती है ...?
बहुत सुन्दर ... मन रचना के साथ बहता चला गया ..
कहाँ से आते हैं ये भाव ......
ReplyDeleteजो कभी जिए ही नहीं ...?
कहाँ से आते हैं वो शब्द ...
जो कभी गढ़े ही नहीं .......?
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
कविता के भाव हमें अनंत की शक्तियों से दर्शन कराते हैं। एक आध्यात्मिक विचार मन में भर जाता है और मन कहता है हमें अपने है और नहीं है के बीच एक संतुलन बिठाने की जरूरत है। यानि संतोष और असंतोष के बीच संतुलन। इससे हमारी जिंदगी के बीच फर्क पड़ेगा।
ReplyDeleteमनभावन रचना.
ReplyDeleteकोई कहीं से भर देता है,
ReplyDeleteजीवन के अनपूरे घट
अनुपम भाव , मै डूबता उतरता रहता हूँ आपकी शब्द-श्रद्धा में.
ReplyDeleteपहली बार देख कर भी ..
ReplyDeleteकोई जाना पहचाना क्यों लगता है ...?
पहली बार मिलकर भी ..
कोई चिर परिचित क्यों लगता है ...?
पहली बार पढ़ कर भी ..
कुछ शब्द मन में बसे हुए ...
रचे हुए क्यों लगते हैं ....?????
जीवन की यात्रा ...
जो सदियों से चल रही है ...!!
रचना का एक - एक शब्द एक चलचित्र की भांति जीवन के सन्दर्भों को उद्घाटित करता है ...!
बहुत ही गहरी और भावपूर्ण अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteसब कुछ तुम्ही से मिला प्रभु..... नमन
ReplyDeleteमन को सुकून देती रचना
namniya kritee
ReplyDeleteman ko acchee lgtee bahut sunder rchnaa....
ReplyDeleteसब कुछ तुम्ही से मिला प्रभु...शाश्वत सच...
ReplyDeleteसब कुछ तुम्ही से मिला प्रभु.....
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति
बहुत खूब..प्रभु की लीला न्यारी है।
ReplyDeleteसार्थक एवं सुंदर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteBahut sundar likha hai.
ReplyDeleteआभार ....आप सभी का ...
ReplyDeleteइस रचना में एक तरल संवेदना है जो मेंहदी के रंग और अंसुओं के संग कहीं छुपी .. घुली-मिली है।
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