![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-lZ6JqLfheARqlcWNKgX36ZSzQ7uMGY66xVPWPqC1yUkRctr66jfZGJ2RDz5FHGL-8MGARnSDVBI3ihHHo9W66ncfxOKA2foYGFya7ucReloLjI676QIsAk7HxEPLs_YJCgwjB3pDG6Cl/s1600/06-1367832119-peepal-tree-6.jpg)
बंधे हैं उससे ,
समय के साथ ,
समय की क्षणभंगुरता जानते हुए भी,
वृक्ष नहीं हिलता
अपने स्थान से ,
बल्कि जड़ें निरंतर
माटी में और सशक्त
और गहरी पैठती चली जाती हैं !!
आस्था गहराती है ,
छाया और घनी होती जाती है !!
*******************
सदियों से ...
चूड़ी बिछिया पायल पहना ,
बेड़ियों मे जकड़ा ,
अपनों का भार वहन करता
ये कैसा संकोच है ,
निडर ...स्थिर,एकाग्र चित्त ...!!
अम्मा के सर के पल्ले की तरह ........
सरकता नहीं अपनी जगह से कभी ....!!
***************************************
बहती धारा से ,
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYDY05pKBFBI6dd43J7JuNMe_WHw-zqmOUzfQTyb6j5_Xtdx3vex0tFZ4F3BL3bEqSli6Ro2RqAOAybQ57kYCBZLpEwrYm1e4XMYHbCRlOI_psJ2MHrrPE00kPQC7x7gJbqpMzc7PbeW5R/s1600/10404877_706341679401872_4692406526900899275_n.jpg)
उम्मीद भरे शब्द
शक्तिशाली होते हैं
प्रभावशाली प्रवाहशाली होते हैं
स्वत्व की चेतना जगा ,
जुडते हैं नदी के प्रवाह से इस तरह
के बहती जाती है नदी
कल कल निनाद के साथ
फिर रुकना नहीं जानती ........!!
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सभी क्षणिकाएँ मजबूती से चेतनशील होने की ओर इंगित करती है ....
ReplyDeleteकुछ ही पंक्तियों में जीवन दर्शन सिमिट आया हो जैसे ...
ReplyDeleteसुन्दर ...
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-02-2015) को "इस आजादी से तो गुलामी ही अच्छी थी" (चर्चा अंक-1899) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-02-2015) को "इस आजादी से तो गुलामी ही अच्छी थी" (चर्चा अंक-1899) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर सार्थक रचना...सभी में जीवन दर्शन क बोध होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ मजबूती से चेतनशील होने की ओर इंगित करती है
ReplyDeleteebook publisher india
आस्था कभी डिगने नहीं देती,संकोच भटकने नहीं देता और नदी तो वही है जो बहती है...अति भावपूर्ण रचना के लिए बधाई अनुपमा जी...
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