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18 January, 2012

लो फिर आई है चिड़िया ........!!

भोर से पहले ही उठ जाती
सूखे सूखे त्रिण चुन लाती
बुलबुल सी उड़-उड़ ...
रे मन चुलबुल ...
बाग़ में चहचहाई  है चिड़िया
मन भाई है चिड़िया ..!!
लो ,फिर आई है चिड़िया....

राग विभास की आस .....
चुने हुए शब्द विन्यास ....
सींचती-उलीचती ....
घट भर-भर लायी है चिड़िया ...

सृष्टि पर बिखरा ...
सुरों के  रंगों का..तरंगों  का ..उमंगों  का   .
राग लालिल सा  लालित्य ..
बुन-बुन गुन लायी है चिड़िया ......
राग के ख्याल में खोयी  हुई ...
कुछ जागी सी कुछ सोई हुई ...
सुलक्षण  सुमंगल परंपरा निभाती ...
दिए की बाती ...
पूजा की थाली में ..
ज्यों  जलती जाती .....
पञ्च तत्व..
से पांच सुरों का राग गाती  ....
सुध बुध बिसराती..उन्माती ........
माघ के आगमन पर ..
मन के आँगन पर ..
सुघड़ नीड़ पर...
बैठी  झूलती .... इतराती ....मुस्काती ...सुस्ताती है चिड़िया  ...
अब लो फिर आई है चिड़िया ...!!!!


*विभास और ललित ये दोनों राग सूर्योदय से पहले गए जाने वाले राग हैं ...
*सुरों की उत्पत्ति भी पञ्च तत्वों से ही होती है ...
*राग  विभास  में  पांच स्वरों का प्रयोग होता है...पंचम जाती का राग है ...!!

37 comments:

  1. ये चिड़िया रोज़ आये , प्रकृति के शाश्वत गीत सुनाये

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  2. मन के आँगन पर ..
    सुघड़ नीड़ पर...
    बैठी झूलती .... इतराती ....मुस्काती ...सुस्ताती है चिड़िया ...
    अब लो फिर आई है चिड़िया ...!!!!
    इन चित्रों के साथ भावनाओं का सुन्‍दर संयोजन किया है आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  3. बहुत सुन्दर अनुपमा जी..कविता भी संगीत भी...
    दोनों अदभुद...

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  4. vaah ri chidiya teri ajab khaani fir bhi kisi ne teri baat nhin maani bhtrin rchnaa ke liyen mubarkbaad .akhtar khan akela kota rajsthan

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  5. सुरों और रागों से सजी अभिव्यक्ति ...

    बहुत खूब ....आनंदमयी

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  6. वाह...बेजोड़ चित्र ...बेजोड़ रचना...बधाई

    नीरज

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  7. मन के आँगन में चिड़िया चहचहाने लगी है होठ आपके गीत को धीमे-धीमे गुनगुनाने लगा है , राग की तो उतनी समझ नहीं है पर आनंद से भर उठी आपको पढ़कर..

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  8. खुबसूरत चित्रण अभिवयक्ति............

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  9. सबसे पहले तो चित्रों के लिए ...
    लाजवाब!
    बड़े मन भावन हैं।
    बिम्ब और विन्यास देखते बनता है। संगीत के तत्वों का समागम कर आपने इसके सुरों को बहुत ही सुरीला बना दिया है।

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  10. नित्य भोर में जो उठ जाती।
    सूखे-सूखे तृण चुन लाती।।
    चीं-चीं करके हमें जगाती।
    इसीलिए चिड़िया कहलाती।।
    --
    बहुत सुन्दर रचना!

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  11. *विभास और ललित राग सुनाती..रोज ये आए चिड़िया..अनुपम...

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  12. बुन-बुन गुन लायी है चिड़िया ......
    राग के ख्याल में खोयी हुई ...

    बहुत सुन्दर, लाजबाब भाव.

    राग के ख्याल में खोई हुई
    चिड़िया की कल्पना करता मन
    कितने अनुपम और अनमोल
    भावों का सर्जन कर लेता है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  13. वाह सुन्दर गीत ,सुन्दर रचना.

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  14. bahut sundar kavita... rag me baare me achhi jankari mili...

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  15. यह तो अच्छे से गायी जा सकती..

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  16. is chidiya ka swagat hai
    mere ghar roz :)

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  17. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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  18. pakshee prem jhalak rahaa hai
    itne kareeb se kitnon ne pakshiyon ko ab tak samjhaa hai?
    excellent

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  19. बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन रचना
    welcome to new post...वाह रे मंहगाई

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  20. Bahut hi pyaari lagi ye kavita aapki, bahut saraahna! :)

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  21. बहुत ही सुन्दर और बालमन को लुभाने वाली कविता |

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  22. बेहतरीन ..शब्दों का प्रयोग तो अति सुन्दर है ..
    मन को भा गयी ये कविता..
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
    kalamdaan.blogspot.com

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  23. बहुत सुन्दर रचना।

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  24. बहुत सुन्दर प्रस्तुति|

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  25. कल 20/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  26. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें

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  27. Bahut sundar rachna. shabd chayan bahut umda..

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  28. बेहद सुंदर चित्रों से सजी सुंदर रचना बधाई

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  29. kavita aur chitra dono ati sunder.............

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  30. आपकी रचनाओं को पढ़ना हो या प्रकृति के साथ जीना हो ...अद्भुत साम्य है दोनों में!

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