नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

26 April, 2012

जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था ..............

तुम्हारी ही परछाईं सी ....
तुम्हारी ही राह पर चलती हुई ...
तुम्हें अपने आप में ढूंढती हुई ....
खोजती हुई...
नित-नित पल्लवित प्रफुल्लित होती हुई ...
कृतज्ञ होती हुई ...
सोचती हूँ ...
संस्कृति सभ्यता का रूप
कभी बदला नहीं ...
सदियाँ बीत गयीं सो बीत गयीं ...
माँ का प्रारूप कभी बदला  नहीं ....
खून का रंग कभी बदला नहीं ...
ये कैसा गाढ़ा लाल रंग है ..
रग-रग में चढ़ गया है ...


उतरता ही नहीं ...
गहराता ही जाता है ...
सदियों से इसी तरह ..
शाश्वत सत्य सा ..
इसका रंग ...इसका रूप ....इसका असर ...!!

तुम मुझसे दूर होकर भी ..
कितनी पास हो गयी हो ... 
माँ ...
आज तुम्हें खोजते-खोजते ...
 .... सोचते सोचते .....
नहीं जानती कैसे ...
तुममे ऐसी खो गयी हूँ ...
पूर्णतः तुम्हीं में समाना चाहती हूँ ...
अभी  लगता है ...शायद ...
कुछ- कुछ  तुम्ही सी हो गयी हूँ ...
हर्षित है मन ये सोच कर ...
आज मेरा और बच्चों का ...
वही रिश्ता है ...
जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था .................
एक ही आत्मा का  बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
अनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा .........................................!!!!!!!!!!!

40 comments:

  1. एक ही आत्मा का बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
    अनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा ........!!!!!!!!!!!

    माँ - बेटी का ऐसा ही रिश्ता है ... बेटी माँ की परछाईं बन वैसी ही हो जाती है .... सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. सच है ………शाश्वत है ये ही रिश्ता ईश्वर सा।

    ReplyDelete
  3. आज मेरा और बच्चों का ...
    वही रिश्ता है ...
    जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था ...
    बिल्‍कुल सच मां का रूप प्रतिरूप लिए बेटी के अनुपम भाव ...

    ReplyDelete
  4. माँ क्या होती है यह समझ तब आता है खुद माँ बन जाते हैं | माँ से माँ तक का रिश्ता शाश्वत सत्य है |---- बहुत प्रभावित कर गयी आपकी रचना |

    ReplyDelete
  5. तुममे ऐसी खो गयी हूँ ...
    पूर्णतः तुम्हीं में समाना चाहती हूँ ...
    अभी लगता है ...शायद ...
    कुछ- कुछ तुम्ही सी हो गयी हूँ ...

    बिलकुल सच अनुपमा जी......हम हो ही जाते हैं अपनी माओं जैसे....
    मेंरे बच्चे तो अकसर कहते हैं मां, नानी जैसी बातें ना करो :-)

    सुंदर प्रस्तुति.....
    सस्नेह.

    ReplyDelete
  6. वाकई माँ का रूप नहीं बदलता..शायद इसीलिए बेटी को माँ की परछाई कहते हैं.

    ReplyDelete
  7. रक्त ने न अपना स्वरुप खोया है , न खो पायेगा ...

    ReplyDelete
  8. वही रिश्ता है ...
    जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था .................
    एक ही आत्मा का बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
    अनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा ......

    वाह!!!!बहुत सुंदर प्रभावी प्रस्तुति,..

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

    ReplyDelete
  9. sundar aur gahan rachna.

    ReplyDelete
  10. maa ke prati bahut sundar ehsaas salaam aapki lekhni ko jisme maa hi maa hai.

    ReplyDelete
  11. सदियाँ बीत गयीं सो बीत गयीं ...
    माँ का प्रारूप कभी बदला नहीं ....
    .
    .
    .शास्वत सत्य... है न..:)
    माँ कभी नहीं बदलेगी..
    बेहतरीन..

    ReplyDelete
  12. निशब्द.... शास्वत सत्य अति सुन्दर है..हार्दिक बधाई..

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...!

    ReplyDelete
  14. माँ का प्रारूप कभी बदला नहीं
    क्योंकि माँ सिर्फ और सिर्फ माँ होती है

    ReplyDelete
  15. मां वह धूरी है जिसके गिर्द परिवार का चक्र चलता है। परिधि बदलती रहे, धूरी वही रहती है। अनुपमा जी एक बेहतरीन कविता जिसमें एक सुखद अहसास समाया हुआ है।

    ReplyDelete
  16. इस भक्ति का रंग कुछ ज्यादा ही चोखा हैं जी .....

    ReplyDelete
  17. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......

    ReplyDelete
  18. बहुत सुंदर...रक्त का रंग और प्रवाह सदा से बना ही रहा है.....

    ReplyDelete
  19. बच्चों को पालने में यह तथ्य समझ आता है कि हमारा भी लालन पालन कोई कर रहा है।

    ReplyDelete
  20. बढ़िया अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  21. अनुपमा जी, आपने इस कविता के माध्यम से न केवल अपनी माँ को सच्ची श्रद्दांजलि दी है बल्कि सभी माँओं को नमन किया है. बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिये.

    ReplyDelete
  22. माँ का रिश्ता ही सर्वश्रेष्ठ है यह मैंने भी माँ को खोकर जाना.
    इस भावपूर्ण कविता के लिए आभार.

    ReplyDelete
  23. इस रिश्ते को न जाने कितनी बार कितनी तरह से व्यक्त किया गया है ...और हर रूप में यह अनूठा रहा है ....दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता है यह.....! बहुत सुन्दर अनुजी

    ReplyDelete
  24. माँ तुझे सलाम ... !! ... बहुत खूबसूरत रचना ..

    ReplyDelete
  25. maa ke liye sab kuch keh diya kuch bhi na choda...............

    ReplyDelete
  26. सुंदर प्रस्तुति! माँ अशरीरी हैं, हृदयस्थ हैं!

    ReplyDelete
  27. आपकी कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  28. भावुक करती रचना

    ReplyDelete
  29. नमन आप सभी का ....माँ के लिए मेरे भावों पर आपने अपने अमूल्य विचार दिए .....!!

    ReplyDelete
  30. आदरणीया....
    एक ऐसे रिश्ते पर जो कभी झूठा हुआ ही नहीं, पर लिखी मार्मिक रचना.

    ReplyDelete
  31. आपकी भावमय प्रस्तुति अनमोल और लाजबाब है.
    दिल को छूती हुई,ईश्वरीय भावों का संचार करती हुई.

    ReplyDelete
  32. ईश्वर सा…शाश्वत रिश्ता ,..माँ .. मार्मिक रचना......

    ReplyDelete
  33. देर से आया लेकिन अमृत पान हुआ . माँ के लिए लिखे गए शब्द सम्मोहित करते है और भावनात्मक संबल प्रदान करते है . अति सुँदर रचना .

    ReplyDelete
  34. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
    Replies
    1. वो तो ठीक है .....आगे से धन्यवाद मत लिखना ....समझीं....?

      Delete
  35. माँ को तो खो दिया पर माँ जैसी ही बड़ी बहन मिली जिसने माँ की कमी पूरी की.धन्यवाद् दीदी

    ReplyDelete
    Replies
    1. वो तो ठीक है .....आगे से धन्यवाद मत लिखना ....समझीं....?

      Delete
  36. तुम मुझसे दूर होकर भी ..
    कितनी पास हो गयी हो ...
    माँ ...

    माँ के सम्मुख तो सारे शब्द, सारे भाव छोटे हैं... भावुक रचना...
    सादर...

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!